कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब
लेख़क -डा. वेदप्रकाश उपाध्याय
एम. ए. संस्कृत (वेद), डी. फिल्, धर्मशास्त्राचार्य, डिप्. इन जर्मन
सहायकः अनुसन्धान अधिकारी,वी. आई. एस. एण्ड आई. एस.
पंजाब युनिवर्सिटी , पो. आ. साधु आश्रम, होशियारपुर (पंजाब)
आनरेरी डायरेक्टर सारस्वत,वेदान्त प्रकाश संघ (भारत)
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समर्पणम
श्रीम्रतां विद्वद्धुरिधौरेयाणां सारस्वतानां पण्डितम्मन्यदारुणद -
पंज्वरविदारणायौघरूपाणां मानवैक्यप्रतिपादकमतविभूषितमानसाना
दर्शनेन सन्मार्ग प्रदर्शनकारिणां दर्शनशास्त्राकृतनिर्मलान्त:
करणानां प्रयागविश्वविद्यालयीयसंस्कृतविभागाध्यक्षाणां
गुरूवर्याणां डा. आद्याप्रसादमिश्रमहोदयानां
करकमले समर्प्यते शोधपुस्तकमिदम् ।
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साभार:
वेदप्रकाशोपाध्यायः
उपाध्यक्ष:
सारस्वतवेदान्तप्रकाशसंघः
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विषय-सूची
1. विद्वानों के विचार
2. सहायक ग्रन्थों की सूची
3. प्रस्तावना
4. अवतार का अर्थ
5. अवतार के कारण
6. अन्तिम अवतार के कारण
7. अन्तिम अवतार की विशेषताएं
8. अन्तिम अवतार का समय
9. स्थाननिरुपण
10.संसार के सामाजिक और धार्मिक पतन का काल
11.अन्तिम अवतार सिद्धि
12.वेदों और कुरआन की शिक्षाएं
13. उपसंहार
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शोध पुस्तक पर विद्वानों के विचार
डा. गोविन्द कविराज
एम्. ए. एम्. ए. एम्. एस., एच. एम्. डी., पी. एच्. डी.,
सर्वदर्शनाचार्य व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य, आयुर्वेदविज्ञानाचार्य,
भिषगाचार्य, वैद्यरत्न, हिन्दी साहित्यरत्न, वेदान्तशास्त्री (अंग्रेजी सहित)
प्रोफेसर वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय,
पिंसिपल नेपाली, संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी - 1
प्रिय महाशय,
‘कल्कि अवतार और मोहम्मद साहब’ ग्रन्थ को मैंने पढ़ा। समस्त संसार में विस्तृत पारस्परिक सैद्धान्तिक वैमनस्य को हटाकर मानव मात्र को एक सूत्र में आबद्ध करने के लिये आपने जो अथक प्रयास किया है वह अतीव प्रशंसनीय है।
भवदीय
गोविन्द
19-10-70
सेवा में
श्री पं. वेद प्रकाश उपाध्याय
संचालक - सारस्वत वेदान्त प्रकाश संघ
प्रयाग
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प्रो. डा. श्री गोपाल चन्द मिश्र
एम. ए., पी. एच. डी. धर्मशास्त्राचार्य, वेदाचार्य
वेदविभागाध्यक्ष, संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी - 2
ईश्वरीय सृष्टि में मानवता समान है। उसके उत्थान और पतन के नियम एवं स्वरूप भी समान हैं। सभी देशों में महापुरूष या महामानव की आवश्यकता भी समय समय पर पड़ती है। किसी व्यक्ति का अवतार या महापुरूष या महामानव होना बिना ईश्वरांश के प्रकाश के सर्वथा असम्भव है। मोहम्मद साहब अरब देश की आवश्यकता के अनुरूप ईश्वरांशीय महापुरूष थे इस सत्य को मानने में किसी भी व्यक्ति को हिचक नहीं हो सकता। महापुरूष देशकाल परिस्थिति की अनुरूप भले ही एक भूभाग में सम्मानित या उपदेष्टा हो, पर उसकी महत्ता का वर्णन दूसरे देशवासी अपनी भाषा एवम् संस्कृति के अनुरूप शब्दों में करते हैं। इस भावना को डा. वेदप्रकाश उपाध्याय एम. ए. की कल्कि अवतार और मोहम्मद साहब पुस्तक विश्वास दिलाती है। यद्यपि लेखक ने हिन्दू शब्द को भारतीय का पर्यायवाची सिद्ध किया है। पर हम जन प्रसिद्धि की भ्रम को ठीक भी मानें तो इस पुस्तक में सिद्ध हुई बात मुसलमान भाइयों के विचार में दृढ़ हो जाय, हिन्दू मुसलमान नाम के दो घर मानने पर भी एक मूल पुरूष मुहम्मद साहब या कल्कि के मानने वाले होने के नाते अभिन्नता का भाईचारा बढ़ जायगा, जो दोनों सम्प्रदायों के अनुयायियों के लिये अविरोधी सहअस्तित्व को जगा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति की आभ्यान्तरिक विभिन्नता तब तक घृणित नहीं हो सकती जब तक व्यवहार अर्थात सुरक्षा, सुख दुःख सहयोग, खेलकूद आदि में भेद बुद्धि नहीं पनपती। भारत के हिन्दुओं में तथा मुसलमानों में भी अनेक सिद्धांत विचार एवं सम्प्रदाय हैं। पर वे आभ्यान्तरिक भेद, व्यवहार को प्रभावित नहीं करते इसलिये सभी हिन्दू या मुसलमान अपने में एक हैं। उसी प्रकार आभ्यान्तरिक या आध्यात्मिक सिद्धांत विचार के भेद रहने पर भी यदि मुसलमान हिन्दू व्यवहार में सुरक्षा दुःख सहयोग खेल कूद में एकता हृदय से मानने लगें - तो वह दिन दूर नहीं कि विश्वव्यापी मानवता के संहार का भय सर्वदा के लिये दूर भाग जाय।
श्री गोपाल चन्द्र मिश्र
4-11-1970
शुभाशंसी
संस्कृत विश्वविद्यालय
7 अध्यापक निवास
जगतगंज वाराणसी - 2
फोन न. 67026
15.4.1969
(1) श्री वेदप्रकाश उपाध्याय (शोधछात्र) ने हाल ही में ‘मोहम्मद साहब और कल्कि अवतार’ पर एक पुस्तिका प्रकाशित करने की योजना बनाई है। मैंने पुस्तक के प्रारूप को देखा है। लेखक ने एक विचारणीय विषय पर लेखनी उठाई है काफी खोज कर अपना मत सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। उनका अध्यवसाय तथा दृष्टिकोण सराहनीय है।
स. प्र. चतुर्वेदी, एम. ए. (संस्कृत-वेद), व्याकरणाचार्य
भूतपूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, प्रयाग विश्वविद्यालय
(2) कल्क्यवतार मोहम्मदयोस्तुलनात्मकाध्ययनवैशिष्ट् यबोधकनव्यशैली समीक्ष्य विशिष्ट तुष्यन् मदीयं मनः रचयितुर्विशिष्टविकासकासनतया आधुनिक युगीनजनैक्यसम्पादनतया च परं प्रसीदति, श्रीमानीशःरचयितारं वैशिष्टेनावलोकयत्वितिशम्।
भव्यरचनमिदमद्य विलोक्य कस्य जनस्य न हृष्येच्चेतः।
जयकिशोरविदुषः श्रीलस्य सम्मतिरस्तु रचयितुश्रियः।।
झोपाह श्री जयकिशोर शर्मा, व्याकरणाचार्य
प्रधानायार्य - सौदामिनी संस्कृत महाविद्यालय, इलाहाबाद
(3) ‘कल्कि और मोहम्मद साहब का तुलनात्मक अध्ययन’ विषयक शोधपुस्तक को पढ़कर हृदय में सर्वधर्मसमन्वय की पूर्वप्रतिष्ठित भावना और भी दृढ़ हुई। पुस्तक में प्रस्तुत अन्यान्य प्रमाणों एवं उद्धरणों को देखकर निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इस्लाम की उत्पत्ति का मूल बीज वैदिक धर्म में ही निहित है। उस (कल्कि) सन्देष्टा की धर्म विजयहेतु प्रयुक्त सामग्री में ‘घोड़ो व तलवार’ आदि का संकेत किसी भी बौद्धिक व्यक्ति को यह सोचने के लिये बाध्य कर सकता है, कि आज वह भविष्य की कल्पना का विषय नहीं अपितु भूतकाल का पात्र रह चुका है। पुस्तक का पर्यवेक्षक अन्ततः यही सिद्ध करता है, कि ‘भागवत्’ के कल्कि हमारे मोहम्मद साहब ही हैं।
वस्तुतः उस परमसत्ता की सर्वमयंता के लिए इन प्रमाणों की कोई आवश्यकता तो नहीं है। परन्तु शुभशंसा के रूप में मैं यही कहूंगा कि उपाध्याय जी का यह प्रयास हिन्दूमुस्लिम विचार-वैभिन्नय को धो डालने में समर्थ हो।
श्री अशोक तिवारी
लवेदी-इटावा (उ.प्र.)
(4) ‘कल्कि और मुहम्मद साहब साहब का तुलनात्मक अध्ययन’ विषयक शोध पुस्तक निःसन्देह नवीन, अन्वेष्णात्मक, तर्कपूर्ण विचारों से युक्त, मुसलमानों और हिन्दूओं के असमान दृष्टिकोण को एक सूत्र में बांधते हुए ऐसे संसार की स्थापना करेगी, जो कल्याण कारक, आनन्दपूर्ण एवं क्लेशरहित होगा।
श्री राम भवन मिश्र
भोज कोल्हुआ, चील्ह,
मिर्जापुर (उ.प्र.)
(5) ‘कल्कि और मुहम्मद साहब का तुलनात्मक अध्ययन’ पुस्तक पढ़ने से मुझे यह विश्वास हो गया कि कल्कि और मुहम्मद एक ही है।
श्री इन्द्रजीत शुक्ल, वर्दमान
(6) पं. वेदप्रकाश उपाध्याय द्वारा किया गया ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब का तुलनात्मक अध्ययन’ विषयक शोधकार्य मैंने भलीभांति देखा।
इस लघुपुस्तक में विद्वान् शोधकर्ता ने भारतीय पौराणिक साहित्य और इस्लामी का तुलनात्मक अध्ययन करके कल्कि अवतार के सम्बंध में जो ‘महत्वपूर्ण अन्वेषणात्मक कार्य किया है वह वर्तमान धार्मिक संघर्षों का उन्मूलन करने में अत्याधिक उपकारी होगा 1 - इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में एकेश्वरवाद का पुनः प्रसार होगी और समस्त मानवजाति में साधारण भाईचारे का प्रेम उत्पन्न होगा। हमें पूर्ण आशा है कि लघु ग्रंथ को सभी सम्प्रदाय के अनुयायी पसंद करेंगे और अपने यह प्रयास एक महान् समन्वय का सन्देश देगा।’
हमारी यह शुभकामना है कि लेखक का यह प्रयास समाज के लिए कल्याणकारी हो।
डा. रामसहाय मिश्र, शास्त्री
बहादुरगंज, इलाहाबाद
(7) इस शोधपुस्तक को पढ़ने मात्र से मुझे हिन्दू-मुसलमान दो व्यापक सम्प्रदायों के बीच उलझी गुत्थियों का सुलझना और साथ ही साथ हिन्दुत्व का वह प्राचीन व्यापक रूप पुनः समक्ष आता हुआ दिखाई पड़ रहा है।
प. राम बहादुर मिश्र
लौगावाँ, कुभियावाँ, इलाहाबाद
(8) अभी तक ऐसी कोई भी अन्वेषणात्मक पुस्तक नहीं निकली, जिसने विभिन्न सम्प्रदायों को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया हो।
अशोक कुमार जायावाल ‘सारस्वत’
सदस्य, प्रयाग कार्यकारिणी समिति
सारस्वत-वेदान्त प्रकाश संघ, इलाहाबाद (उ.प्र.)
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शोध पुस्तक सहायक ग्रन्थों की सूची
संस्कृत -
(1) ऋग्वेद संहिता (2) यजुर्वेद संहिता (3) सामवेद संहिता
(4)अथर्ववेद संहिता (5) श्वेताश्वरोपनिषद् (6) केनोपनिषद्
(7) महाभारतम् - महर्षिवेदव्यासप्रणीतम (8) श्रीमद भगवद् गीता
(9) श्रीमद भगवद् पुराणम् - महर्षिवेदव्यासप्रणीतम, गीताप्रेस गोरखपुर, सं. 2021 (10) भविष्य पुराणम् - महर्षिवेदव्यासप्रणीतम
खेमराज श्रीकृष्णदास, श्रीवेंकटेश्वर स्टीम् प्रेस, बम्बई, 1959
(11) कल्किपुराणम् - महर्षिवेदव्यासप्रणीतम, सं. 1963 श्री वेंकटेश्वर स्टीम प्रेस, बम्बई
हिन्दी -
(12) हिन्दूमुस्लिम एकता - पं. सुन्दरलाल जी, हिन्दुस्तानी कल्चर सोसाइटी, 145 मुट्ठीगंज, इलाहाबाद
(13) कुरआन
उर्दू और अंग्रेजी -
14. Shimail Tirmizi - Maulana Mohammad Zakaria
15. Sarwar-e-Alam. - Mohammad Muslim, Published at Jabyyad Press, September, 1960 A.D. Kishanganj Delhi.
16. Sirtunabi. - Shibi Nomani and Sayyad Sulaiman Nadawi, Published from - Matba Maarif, Azamgarha. Fourth Edition 1958 A.D.
17. Asah-us-Siyar.- Hakim abdul Barkat, Adur-Rauf, Publisher Noor Mohammad, Asag-ul-Matba, Karachi, September 1932 A.D.
18. Jannaul - Favaid - Sulaiman, Publisher Ashiqilahi, Khairia Press, Meratha
19. Mohammad and Mohamedenism; by Rev. Bos-worth Smith.
20. Decline and fall of the Roman Empire; by Edwerd Gibbon; Publisher from E.P. Dutton & Co. Newyork, 1210 A.D.
21. The speeches of Monommad, by Lanepoole, Published by Macmillan & Co. (London) 1882.
22. An Encyclopedia worid History-W.L.Langer, Published by George G. Harrap & Ltd. Printed in the U.S.A.
23. A History of civilization in Ancient India - by R.C. Dutt, Revssed Edition, 1893, Published by Kegan Paul, Trench Trubner & Co. Ltd. (London).
24. Apology for Mohammed - by Godfrey Higgins, Published by Allahabad Refrom Society, Dariyabad 1929 A.D.
25. Life of Mohamet. - Sir William Muir Published from Smith, Elder & Co. (London) 1877 A.D.
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प्रस्तावना
इस शोध पुस्तक में प्राचीन भारतीय परम्परा तथा इस्लामी परम्परा के समन्वय को प्रस्तुत किया गया है। इस्लामी परम्परा में जो स्थान रसूलों नबियों या पैगम्बरों का हो, वही स्थान भारतीय परम्परा में अवतारों का है। मुसलमान मोहम्मद साहब को अन्तिम सन्देष्टा मानते हैं और भारतीय परम्परा कल्कि को अन्तिम अवतार। विदेशों में केवल सन्देष्टा आते हैं और भारत में केवल अवतार, यह असम्भव है, क्योंकि सभी भूमि परमेश्वर की है उसमें वैषम्य का स्थान नहीं है। सभी देशों के तत्तद् साहित्यों में उन्हीं देशों की महिमा का गुणगान हुआ है अतः कोई भी स्वदेशी या विदेशी अपने देश को नीचा नहीं कहेगा। सन्देष्टा केवल अरब में ही आए, भारत में नहीं, यह भी एकांगी विचार है, और अवतार केवल भारत में ही नहीं, यह भी एकांगी विचार है। मोहम्मद साहब अन्तिम सन्देष्टा है, यह जानकर मुझे पुराणों में कल्कि विषयक चरित पढ़ने की उत्कणठा हुई। भारतीय परम्परा के अनुसार पहले कुछ कलियुग बीत गए, उनमें कल्कि के अवतार में जो घटनायें घटीं और इस कलियुग में जो घटनाएं घटनी हैं, उनकी तुलना मैंने मोहम्मद साहब के जीवन से की जो प्रायः समान उतरीं। अल्पमात्र जो कहीं कहीं कुछ अन्तर पड़ा वह जैसे राम के चरित्रों में अन्तर पड जाता है, उसी प्रकार हुआ, और उसका समाधान लोग यह कहकर देते हैं कि ‘‘हरि अनन्ता हरि कथा अनन्ता’’ वही कहकर मैं भी कर रहा हूँ। मैं कल्कि अवतार को कथा इसलिए नहीं कहना चाहता, क्योंकि ‘कथा कल्पितवृत्तान्ता सत्यार्थास्यायिका’ के सिद्धांत से इसको आख्यायिका ही मानना युक्तिसंगत है।
वैज्ञानिक अणुविस्फोटकों से जो सत्यानाश सम्भव है, उसका निराकरण धार्मिक एकता सम्बंधी विचारों से हो जाता है। जल में रहकर मगर से बैर करना उचित नहीं। इस कारण मैंने वह शोध किया जो धार्मिक एकता का आधार (substratum) है राष्ट्रीय एकता (National intigration) के समर्थकों द्वारा इस शोधपत्र पर कोई आपत्ति नहीं होगी। आपत्ति होगी तो कूपमण्डूक लोगों को, यदि वे कूप के बाहर निकलकर संसार को देखें तो कूप को ही संसार मानने की उनकी भावना हीन हो जाएगी। ईश्वर की आज्ञा से ईश्वरीय वाणियों का प्रचार हो, इस उद्देश्य से मैंने इस प्रकार के शोधकार्यों में हाथ डाला है। इसके पूर्व कुछ लोगों ने इस विषय पर कुछ लिखा था, या नहीं यह स्पष्ट कहा नहीं जा सकता, परन्तु ‘सरवरे आलम’ (सरवरे आलम (मोहम्मद मुस्लिम, Published at jayyad press, sept. 1960, A. D. Kishanganj, Delhi.) में इतना संकेत है कि मोहम्मद साहब और कल्कि एक ही हैं। मेरे इस शोधपत्र का प्रचार होगा, स्वदेश और विदेशों में, क्योंकि ईश्वर की सहायता से यह पुस्तक लिखी गई है। इसमें जो तर्क संगत बातें आई हैं, वह मेरे विचार नहीं, या तो वे वेदों पुराणों के विचार हैं, या मेरे अन्दर हुई ईश्वरीय प्रेरणा के।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि निखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी, और धर्म के नाम पर होने वाले कलह शान्त होंगे। यदि लोगों की बुद्धि काम करेगी, तो परस्पर एक दूसरे के पर्वो में हाथ बांटकर स्वयं एकता के प्रतीक बनेंगे। नाम से कोई हिन्दू, मुसलमान या ईसाइ नहीं बनता है। यदि मैं सिराजुल हक़ को सत्यदीप, अब्दुल्लाह को पं. रामदास या रामयश तथा अंदुर्रहमान को भगवानदास कहूंगा तो वे बुरा नहीं मानेंगे, क्योंकि उनके नामों का संस्कृत में अनुवाद यही होता है, यदि वे चाहें, तो मेरे नाम का अनुवाद अरबी भाषा में नूरूलहुदा भी कर सकते हैं। ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि सभी वर्गों में विशेषकर हिन्दू और मुसलमानों में पूर्ण मेल हो, तथा मेरा यह शोधपात्र लोगों में सद्भावना का संचार करे। विश्व में बंधुत्व हो और सभी का कल्याण हो। कल्कि और मोहम्मद साहब के तुलनात्मक अध्ययन को पढ़ कर कहीं लोगों को यह न शंका होने लगे कि मोहम्मद साहब के चरित्रों का आधार लेकर लोगों को ने कल्कि का भावी वृतान्त बना डाला है, इसलिए मैंने जिन सनातन धर्मग्रन्थों का आश्रय लिया है, उनमें से पुराणों के रचनाकाल के विषय में कोई भी लेखक किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा। पाश्चात्य इतिहासकारों ने श्रौतसूत्रों, उपनिषदों, पुराणों आदि के कालनिर्धारण करने के समय स्थान 2 पर शायद (probably) शब्द का प्रयोग प्रचुरता के किया है, जो उनके निर्णय की अनिश्चितता का प्रतीक है। सर्वप्रथम मैं ‘उन पाश्चात्य विद्वानों का मत पुराणों के रचनाकाल के विषय में क्या है’? इसका उल्लेख करके कालनिर्णय करूंगा तब विषय-वस्तु का प्रारम्भ करूंगा।
पुराणों का समय डब्ल्यू. एल. लांगर के अनुसार ईसा के 400 पर्ष बाद का है। (Puranas dis-ordered genealogies of kings compunded with legends, put in present form, fourth century, A.D. and later) इनके अनुसार रामायण और महाभारत की रचना दो सौ ई. पूर्व की है। (The mahabharat and epic-poems composed by several generations of bards, seems to have taken form about the second century B. C. Although probably revised early in our era.) लांगर महोदय के उपर्युक्त कथन में ये विप्रतिपत्तियां हैं-
1. रामायण के कर्ता बाल्मीकि और महाभारत के कर्ता व्यास जी का समकालीन होना रामायण और महाभारत की समकालीनता से पुष्ट होता है, जो नितान्त असंगत है, क्योंकि आदि कवि बाल्मीकि व्यास जी के समकालीन कभी नहीं हो सकते। इसका कारण यह हैं कि राम के ही समय के बाल्मीकि थे, जैसा कि ‘राम द्वारा परित्यक्त सीता के संरक्षण का कार्य बाल्मीकि को ही अपने आश्रम में करना पड़ता है’, इस बात से सिद्ध होता है। इतना ही नहीं, बल्कि अपने महाकाव्य की पूर्ति भी बाल्मीकि जी अपने आश्रम में करते हैं, इस बात की भी पुष्टि होती है।
2. राम की जीवन घटना त्रोता युग की है, अतः त्रोता युग में तो बाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना किया जना सम्भव है, और द्वापर युग में वेदव्यास जी द्वारा महाभारत की रचना।
3. शकराज का ईसा से मिलन भविष्य पुराण से सिद्ध है,
(एकदा तु शकाधीशों हिमतुंग समाययौ। 21
हूणदेशस्य मध्ये वै गिरिस्थ पुरूषं शुभम्।
ददर्श बलवान् राजा गोरागं श्वेतवस्त्राकम् ।। 22
को भवानिति तं प्राह स होवाच मुदान्वितः।
ईशपुत्रं च मां विद्धि कुमारीगर्भसम्भव् ।। 23
ईशामसीह इति च मम नाम प्रतिष्ठितम् ।। 31
भविष्य पुराण, प्रतिसर्गपर्व, तृतीय खण्ड, द्वितीय अध्याय) और वह शकराज विक्रमादित्य का परवर्ती (विक्रमादित्यपौत्राश्च पितृराज्यं गृहीतवान। जित्वा शकान् दुराधर्षा श्चीनतैत्तिरिदेशजान् ।। 18 , एकदा तु एकाधीशो हिमतुंगं समाययौ। 21) भविष्य पुराण, प्रतिसर्गपर्व, तृतीय खण्ड द्वितीय अध्याय) था, अतएव विक्रमादित्य का समय ईसा से पूर्व का सिद्ध होता है। विक्रमादित्य के समय में रामायण और महाभारत तथा पुराण श्रद्धा के विषय थे, अतः इन तीन कारणों से लांगर का कथन असत्य सिद्ध होता है।
भाषा की दृष्टि से पुराण पाणिनी की अपेक्षा पर्याप्त प्राचीन हैं, क्योंकि वह भाषा पणिनीय व्याकरण के बंधनों से रहित हैं। उसमें संस्कृत के शब्दों का प्रयोग आर्ष प्रयोग है, जो वैदिक और लौकिक संस्कृत के मध्यकाल का है। पाणिनि का समय लांगर के अनुसार 350 ई.पू. से लेकर 300 ई.पू. के मध्य है (Panini (? G. 350300) Encylopedia of world history, By W.L. Langer, page42) इसके अतिरिक्त बुद्ध जी का समय 563 पू. से लेकर 483 ई. पू. के मध्य है (Budhism was founded in the same period and pegion by Siddhartha (?563-483?) of the clan of Gautama and the hill of tribe of Sakya, who attained "IIIumination" (bodhi) Encylopedia of world history, By W.L. Langer, page4) बुद्ध जी ने अपना धर्म प्रचार ‘पालि’ भाषा में किया, जो उस समय की बाले चला की भाषा थी, यह बौद्ध होता है, भाषा की विकासशीलता होने के कारण संस्कृत भाषा का रूप बिगड़ कर पालि से प्राकृत तथा प्राकृत से अपभ्रंश तथा आज हिन्दी हो गया। संस्कृत भाषा की स्थिति बुद्ध जी के पूर्व सिद्ध होती है। कोई भी भाषा बहुत ही शीघ्र नहीं बदल जाती है, बदलते बदलते हजारों वर्ष लग जाते हैं। बुद्ध जी के पहले व्याकरण के नियमों में बद्ध संस्कृत भाषा का बातचीत में प्रयोग होता था, उस निश्चित व्याकरण के संस्थापक पाणिनि का समय, बुद्ध जी के समय में एक हजार वर्ष जोड़कर 1563 ई.पू. के लगभग सिद्ध होता। पाणिनि के सूत्रों की रचना से यह भी सिद्ध होता है कि उस समय लेखन के अभाव के कारण केवल कण्ठाग्र कराने की प्रक्रिया थी, जो सूत्रों के माध्यम से सुगम थी। पुराणों की भाषा पाणिनि से पूर्व की है, अतः आर्ष संस्कृत में पुराणों की रचना ई.पू. 2502 से 2563 ई. पू. के मध्य में सिद्ध होती है। ये तो रहे ऊपरी प्रमाण जो, प्रायः निराधार से हैं, क्योंकि सभी विद्वानों का मत सन्देहपूर्ण हैं और वे उन मतों की स्थापना के समय स्वयं ‘शायद’, ‘सम्भव है’ या प्रश्नवाचक चिन्हों का प्रयोग करते हैं। अब हम पुराणों के अन्तरंग प्रमाण के आधार पर उनका रचनाकाल प्रस्तुत करते हैं।
अट्ठारह पुराणों में भविष्य पुराण भी एक है, जिसमें भविष्य की बातें बतायी गई हैं। जिन स्थानों में ‘लृट’ के स्थान में ‘लट्’ लकार का या ‘लड’ लकार का प्रयोग हुआ है, वहां पर ‘व्यत्ययो बहुलम्’ सूत्र से वैदिक संस्कृत की तरह तिड् का व्यत्यय हो गया है, अतएव पुराणों की आर्ष भाषा निःसन्देह लौकिक संस्कृत से उत्कृष्ट है। भागवतपुराण द्वादश स्कन्ध, द्वितीय अध्याय में कल्कि के पैदा होने की भविष्यवाणी की गई है और उनकी विशेषता भी बताई गई है। प्रथम स्कन्ध में भी चैबीस अवतारों के प्रकरण में ‘कल्कि’ को अंतिम अवतार माना गया है। भविष्यपुराण प्रतिसर्ग पर्व से व्यास जी भविष्य में होने वाली गाथा को आदम से प्रारम्भ करते हैं कि हे मन! भविष्य में होने वाली सूत जी द्वार वर्णित कलियुग की पूर्ण गाथा सुनकर तृप्ति प्राप्त करो (‘मनः श्रृणु तता गाथां भावीं सूतेन वर्णिताम्। कलयुर्गस्य पूर्णा तां तच्छुत्वा तृप्तिमावह।। भविष्य पुराण, प्रतिसर्गपर्व, प्रथम खण्ड, चतुर्थ अध्याय, श्लोक 25’)। इस कथन से यह सिद्ध होता है कि पुराण आदम के पूर्ववर्ती ठहरे। द्वापर युग को समाप्त होने में दो हजार दो आठ वर्ष शेष रह गये थे, तब आदम का जन्म हुआ था (‘द्विशष्ट सहस्रेद्वेशेषे तु द्वापरे युगे। बहुकीर्तिमती भूमिभविता कीर्तिमालिनी। 28। इन्द्रियाणि दमित्वा यो ह्मात्मध्यानपरावणः। तस्मादादमनामासौ पत्नी हव्यभवती तथा। 29। भविष्य पुराण, प्रतिसर्गपर्व, प्रथम खण्ड, चतुर्थ अध्याय’)।
कलयुग के बीते हुये 5070 वर्ष हो रहे हैं, अतएव आदम आज से 5070 जमा 2208=7278 वर्ष पहले हुये। उस समय लेखन कला थी नहीं, अतएव श्लोकों को कंठाग्र ही रखना पड़ता था। न्यूह के समय से संस्कृत भाषा का पतन होने लगा, क्योंकि विष्णु ने प्रसन्न होकर संस्कृत भाषा को अपशब्द करके न्यूह के लिये प्रदान किया। उस भाषा का नाम म्लेच्छ भाषा रखा गया (‘म्लेच्छभाषा कृता ते वेदवाक्यपरांड् मुखा। कलेश्वर वृद्धये ब्राह्मी भाषा कृत्वाण्शवदगाम्।। 3।। न्यूहाय दत्तवन्देवो बुद्धीशो बुद्धिमः स्वम्। विलोमं च कृतं नाम न्यूहेन त्रिसुतस्य वै ।। 4।। भविष्य पुराण, प्रतिसर्गपर्व, प्रथम खण्ड’ पंचम अध्याय)। न्यूह के तीन पुत्र हुये - सिम हाम और याकूत (सिमश्च हामश्च तथा याकूतो नाम विश्रुतः ।।5। भविष्य पुराण, प्रतिसर्गपर्व, प्रथम खण्ड पंचम अध्याय)। यहां से भाषा परिवार बंटा, सिम से सेमेटिक, हाम से हेमेटिक। आदम का पूर्ववर्ती होने के कारण पुराणों का रचना काल आज से 7278 वर्ष पूर्व सिद्ध होता है, जो सर्वथा सम्भाव्य है, भले ही कुछ लोगों को आपत्ति हो। आदम के पहले अर्थात् पुराणों के काल में 4 वर्ण थे, परन्तु वे गुण और कर्म के विभाग से थे, न कि जाति के विभाग से। शूद्र ब्राह्मण बन जाता था और ब्राह्मण भी शूद्र बन जाता था (शूद्रों ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्। क्षत्रियो याति विप्रत्वं विद्याद्वैश्यं तथैच च।। 47। भविष्य पुराण, ब्रह्मपर्व, 40 अध्याय)। जब प्रजाओं का पालक परमेश्वर एक है, तो जातिकृत भेद हो ही नहीं सकता (स एक एवात्रा पतिः प्रजानां, कथं पुनर्जा तिकृतः प्रभेदः। प्रमाणदृष्टान्तनयप्रवादैः परीक्ष्यमाणो विघटत्वेति ।। 44।। भविष्य पुराणए 40 अध्याय)। चलने-फिरने की क्रिया, शरीर, वर्ण, केश, सुख, दुःख, खून, त्वक्, मांस, मेदा, अस्थि और रस की दृष्टि से तो सभी मनुष्य बराबर हैं, फिर मनुष्यों में जातिगत चार भेद क्यों हो सकते हैं (पाद प्रचारैस्तनुवर्णकेशैः, सुखेन दुःखेन च शोणितेन। लड् मांसमेदो स्थिरसैः समाना। श्चतुष्प्रभेदा हि कथं भवन्ति’ ।। 42। भविष्य पुराण, ब्रह्मपर्व, 40 अध्याय)? जो ऋग्वेद में चार-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये नाम आये हैं, उनका तात्पर्य यह नहीं हैं, कि वे जाति के सूचक हैं। उनका अर्थ है कि गुण तथा कर्म के आधार पर चार वर्णों (ब्राह्मणोतस्य मुखमासीद् बाह् राजन्यः कृतः। उरू तदस्य युद्धैश्यः पद्भ्यां शूदो अजायत।। ऋग्वेद 10-90-12, अर्थवेद 19-6-6, बा.य. 31-11, तै.आ. 3-12-5।)। चार वर्णों के कृत्यों में से जिसे जो अच्छा लगता था, उसी को वह स्वीकृत करता था।
इस प्रकार पुराणों के रचनाकाल एवं चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का वर्णन करके यह बतलाना आवश्यक समझता हूं, कि पुराणों में क्षेपक को स्थान नहीं क्योंकि भागवतपुराण में एक अध्याय में अट्ठारहों पुराणों की श्लोक संख्या दी हुई है, जिसके कारण एक भी श्लोक बढ़ाने का किसी को साहस ही नहीं।
अब मैं ईश्वर का नाम लेकर अंतिम अवतार का विवरण प्रस्तुत करूंगा जिसके लिये मुझे निर्देश विद्वर्य प्रोफेसर सरस्वती प्रसाद जी चतुर्वेदी, भूतपूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय तथा 1008 स्वामी श्री रामानन्द जी सरस्वती से मिला है, अतएव मैं इन दोनों विद्यामूर्तियों का कृतज्ञ हूं।
लेखक
पं. वेद प्रकाश उपाध्याय
एम.ए., (संस्कृत-वेद)
शोधछात्र, संस्कृत विभाग,
प्रयाग विश्वविद्यालय।
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अवतार का अर्थ
‘अवतार’ शब्द ‘अव’ उपसर्गपूर्वक ‘तृ’ धातु में ‘धण’ प्रत्यय लगाकर बना है। अवतार शब्द का अर्थ यह है कि पृथ्वी में आना। ‘ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ है कि ‘सब को सन्देश देने वाले महात्मा का पृथ्वी में जन्म लेना’। परमेश्वर सर्वव्यापी है, किसी निश्चित स्थान में उसका रहना और वहां से उसका कहीं आना जाना यह कथन उस असीम को सीमित बनाता है। कहीं उसका तेज विशेष सुव्यक्त नहीं होता, जैसे तुषाराच्छादित सूर्य का तेज मंद दीखने लगता है, परन्तु उससे सूर्य का तेज कम नहीं होता। ऊपर के सात लोकों में सर्वोच्च लोक (अर्थात् सातवें आसमान) में उसकी उपलब्धि है, जहां न तो सूर्य चमकता है और न ही चंद्रमा या तारों का दर्शन होता है (‘न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भाति कुतोण्यमग्निः। तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति।। श्वेताश्वतरोनिषद्, अध्याय 6, मंत्रा 14’)।
वहां पर ईश्वर का इतना अधिक प्रकाश (नूर) फैला हुआ है कि सूर्य और चंद्रमा की ज्योति उसके सामने क्या है। जिस प्रकार सूर्य के प्रकार से सभी ग्रह (प्लानेट) प्रकाशित होते हैं। उसी प्रकार उस परमपिता परमेश्वर के तेज से सभी प्रकाशित होते हैं। उसी से से सम्बद्ध अर्थात उनका कोई श्रेष्ट (बिलव्ड) महात्मा लोगों का कल्याण करने के लिये जगतीतल में अवतीर्ण होता है, जगतीतल में अवतीर्ण लोगों में से निर्मल हृदय एवं सच्चारित्रा किसी एक व्यक्ति या में ज्ञान भर दिया जाता है, और ईश्वर के तेज का उसे साक्षात्कार हो जाता है, जिसके कारण बिना अध्ययन किये हुए ही उसमें सर्वोत्कृष्ट ज्ञान भर जाता है। ‘ईश्वर का अवतार’ शब्द में ‘का’ शब्द सम्बंध कारक का चिन्ह है, अतः स्पष्ट ही है कि ईश्वर से सम्बद्ध व्यक्ति का अवतीर्ण होना। ईश्वर से सम्बद्ध कौन है? उससे सम्बद्ध वही है, जो उसक भक्त है। ऋग्वेद में ऐसे व्यक्ति को ‘कीरि’ (‘यो रघ्रस्य चोदिता यः कृशस्य, यो ब्रह्मणो नाघमनस्य कीरेः ऋग्वेद 2-12-6’) कहा गया है। ‘कीरि’ शब्द अर्थ हिन्दी में ‘ईश्वर का प्रशंसक’ और अरबी में ‘अहमद’ होता है। सन्देह यह उठता है, कि इस तरह तो जितने भी ईश्वर के प्रशंसक हैं, सभी अहमद कहे जाएंगे, परन्तु ऐसा नहीं है। ईश्वर की विशेष प्रशंसा करने वाले पर ‘कीरि’ शब्द या ‘अहमद’ शब्द रूढ़ हो गया। जिस पर शब्द की जो रूढ़ि हो जाती है, उससे उसी का बोध हो जाता है। ‘आदम’ भी तो ईश्वर के प्रशंसक थे, परन्तु उनका नाम ‘अहमद’ नहीं हुआ। तात्पर्य यह निकला कि ईश्वर से सम्बद्ध प्रत्येक व्यक्ति ‘कीरि’ नहीं हो सकता। यहां हमें केवल अन्तिम अवतार का वर्णन करना है, न कि सन्देष्टाओं या अवतारों का इतिहास कहना। इतना तो कहना आवश्यक समझता हूं, कि ‘अवतार’ (हिन्दू-मुस्लिम एकता, लेखक सुन्दरलाल जी, पेज 29-30) शब्द संस्कृत भाषा में और ‘प्रोफेट’ अंग्रेजी भाषा में ‘नबी’ अरबी भाषा में संसार के उद्धारकों के लिये प्रयोजनीय विश्रुत शब्द है। हर देश के लिये अलग-अलग अवतार हुए हैं। क्योंकि एक अवतार से सम्पूर्ण देशों का हित असम्भव है। परन्तु अन्तिम अवतार की बात और है, उसका जब उद्घाटन होता है, तब उसका धर्म संसार के सभी धर्मों में सन्निहित हो जाता है। अब हम ‘अवतार’ के कारणों पर विचार करते हैं।
अवतार के कारण
1. लोगों की अधर्म में प्रवृत्ति, और धर्म के वास्तविक स्वरूप से दूर हो जाना है (यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लोनिर्भवति भारत अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम्।।-गीता)।
2. मूलधर्म में मिश्रण (उपगजनतम) कर लेना अर्थात् अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिये धर्म में धर्माभास को मिला लेना।
3. धर्म के नाम पर अधर्म करना।
4. धर्म के स्वरूप से अनभिज्ञ लोगों को अधर्म का धर्म के रूप में उपदेश देना।
5. ईश्वर के भक्तों को कष्ट देना।
6. पापों एवं अत्याचारों का बढ़ना।
7. घोर हिंसा तथा अराजकता का फैल जाना।
8. अपने पेट तथा परिवार के पोषण तक ही धर्म को सीमित रखना।
9. ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपभोग की वस्तुओं का विषमता से उपभोग। (इस आज्ञा का खण्डन होने पर-ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किच्च जगत्यां जगत् तेन त्यक्तेन भुज्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।’ यजुर्वेद, 40 अध्याय, मं.1.)
10. साधुओं की रक्षा करने के लिये एवं दुष्टों का संहार करने के लिए अवतार होता है। (‘परित्राणाय साधूना विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।’)
11. धर्म के विनाशोन्मुख होने पर अवतार होता है।
12. मारकाट तथा लूटपाट के बढ़ने पर अवतार होता है।
13. युगानुसार लोगों की प्रवृत्ति को देखकर तथा उनके लिये उपदिष्ट धर्म में विश्रृड लता देखकर धर्म के पुरातन सिद्धान्तों को नया रूप देकर उनसे पालन करवाने के लिये।
उपर्युक्त कारणों के उपस्थित होने पर अवतार होता है।
अंतिम अवतार के कारण
अवतार के कारणों का संक्षिप्त विवेचन करके अब हम आपको अन्तिम अवतार के कारणों से परिचित कराना चाहते हैं।
1. बर्बरता का साम्राज्य - लोगों में क्रूरता की भावना तथा अपनी आत्मा के महत्व को समझना तथा दूसरों के प्राणों की परवाह न करना। राजाओं में दुष्टता का संचार, करों का बढ़ा देना। सच्चे धर्म को बताने वालों पर ईटों का प्रहार।
2. पेड़ों का न फलना फूलना, अगर फल फूल आएं भी, तो बहुत कम।
3. नदियों में जल की कमी।
4. अधर्म की वृद्धि - दूसरों को मार कर उनका धन लूट लेना, अधिकतर लड़कियों को मार कर पृथ्वी में गाड़ देना।
5. असमानता का प्रचार - समान भावना का समाप्त हो जाना, ऊँच-नीच छुआ-छूत आदि का प्रकोप।
6. ईश्वर को छोड़कर अन्य की पूजा - यद्यपि सृष्टि का नियामक एक ही परमेश्वर है, परन्तु उसको छोड़कर अन्य देवी देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को ही भगवान मानने की प्रवृत्ति।
7. भलाई की आड़ में बुराई - भलाई का आश्वासन देकर किसी को फंसा लेना, और उसका अनिष्ट करता। इसी को कपट कहते हैं।
8. ई र्ष्या-द्वेष तथा बाह्य आडम्बरों का प्रसार - लोगों में सहानुभूति का अभाव हो जाना। आपस में एक दूसरे को शत्रुता के भाव से देखना।
ईश्वर के प्रति श्रद्धा का अभाव हो जाना, वेषभूषा केवल दिखावे के ही लिये हो कि वे ईश्वर के भक्त हैं:
9. धर्म के नाम पर अधर्म करना - धर्मसे-हीनता और अधर्म से अनुराग।
10. साधुओं की रक्षा करना - अच्छे लोगों की समाज में दुर्गति देखकर उनकी रक्षा के लिये अंतिम अवतार।
11. ईश्वराज्ञापालन का अभाव - लोगों में वेदों के प्रति श्रद्धाहीनता, और उनकी आज्ञाओं का पालन न करना।
अन्तिम अवतार की विशेषतायें
1. अश्वारोहण-पुराणों में अन्तिम अवतार के विषय में जहां कहीं भी वर्णन हुआ है उनकी सवारी अश्व (भ्वतेम) ही बताई गई है। वह अश्व वेग से चलने वाला होगा। अश्व के विशेषण में देवदत्त नाम आया है। देवदत्त का अर्थ है - देवताओं द्वारा दिया गया।
2. खड्गधारण - अश्वारोहण के अतिरिक्त अन्तिम अवतार को खड्गधारी भी बताया गया है। (‘अश्वमाशुगमारूह्म देवदत्तं जगत्पतिः। असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्यगुणान्वितः।।’ भागवत पु. 12-2-19 आठ ऐश्वर्यों और गुणों से युक्त जगत्पालक देवताओं द्वारा दिये गये वेगगामी अश्व पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दम करेंगे।)
दुष्टों का संहार अन्तिम अवतार के द्वारा तलवार से है न कि एटम बम्ब आदि से। विचारणीय है कि यह समय अणुयुग है, न कि तलवार का युग। अवतार की सबसे बड़ी विशेषता है कि अपनी वेशभूषा तथा अस्त्र देश, काल और पात्र के अनुसार उसकी वेशभूषा भी रहती है।
3. अष्टैश्वर्यगुणान्वित - उनमें आठों सिद्धियां एवं अच्छे गुणों का सन्निधाम पुराणों में बताया गया है।
4. जगत्पति - पति शब्द ‘पा, (रक्षा करना) धातु में ‘डति’ प्रत्यय के संयोग से बना है। जगत् का अर्थ है संसार, अतः जगत्पति’ शब्द का अर्थ हुआ, संसार की रक्षा करने वाला।
5. असाधुदमन - अन्तिम अवतार की सबसे प्रशंसनीय विशेषता यह है कि वह दुष्टों का ही दमन करेगा, (3,4, और 5वें वैश्ष्टिय की पुष्टि के लिये देखिये भागवतपुराण 12-2-19) न कि अच्छे लोगों का।
6. चार भ्राताओं के सहयोग से युक्त - ‘भ्राता’ शब्द का अर्थ है सहायक। अन्तिम अवतार के सहायक चार होंगे, जो हर तरह से उसे सहायता देंगे।(‘चतुर्भिभ्र्रातृभिर्देव करिष्यामि कलिक्षयमम्’ कल्किपुराण अध्याय 2, श्लोक 5 हे देव! चार सहयोगियों के साथ मैं शैतान का नाश करूंगा।)
7. देवताओं द्वारा उसकी सहायता - धर्म के प्रसार एवं दुष्टों का दमन करने में सहायता देने के लिये देवता भी आकाश से उत्तर आएंगे।
8. कलि का निराकरण करने वाला - जिस अर्थ में ‘कलि’ शब्द प्रयुक्त होता है, उसी अर्थ में शैतान शब्द भी प्रयुक्त होता है। अन्तिम अवतार के द्वारा कलि अर्थात् शैतान की पराजय होगी।
9. अप्रतिमद्युति - अन्तिम अवतार के शरीर में इतनी अधिक कान्ति रहेगी, कि उसकी उपमा नहीं दी जा सकती, (‘विचरत्राशुना क्षोणयां हयेना प्रतिमद्युतिः। नृपलिडच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।।’ भागवतपुराण 12-2-20 वेगगामी अश्व से पृथिवी में विचरते हुए अप्रतिम कान्ति वाले पर राजाओं के वेष में छिपे करोड़ों दुष्टों का संहार करेंगे।) और न उनके समान कान्तिमान और कोई अवतार ही हुआ।
10. राजाओं के वेश में छिपे हुए दस्युओं का विनाश-अन्तिम अवतार के विषय में यह भी भागवत पुराण में है कि वह राजाओं में वेश में छिपे हुए दस्युओं का संहार करेगा।
11. शरीर से सुगन्ध का निकलना - अन्तिम अवतार के शरीर से सुगन्ध निकलेगी, (‘अथतेषां भविष्यन्ति मनांसि विश्दानि वै। वासुदेवंगरागतिपुण्यगन्धानिलस्पृशाम्।।’ भागवत पुराण 12 स्कंध, 2 अध्याय, 21वां श्लोक)
जो हवा में मिलकर लोगों के मन की निर्मल करेगी।
12. बहुत बड़े समाज का उपदेशक बनना - अंतिम अवतार बहुत बड़े समाज का कल्याणकारी होगा। धर्म से दूर अत्याचारियों का दमन करके उन्हें सीधे रास्ते पर लगाएगा।
13. माधवमास की द्वादशी शुक्ल पक्ष को जन्म - अन्तिम अवतार का जन्म शुक्लपक्ष की बारहवीं तिथि को माधवमास (वैशाख) में होगा। यह कल्कि पुराण से विदित है। (द्वादशां शुक्लपक्षस्य माधवे मासि माधवमः।
जातो ददृशतुः पुत्रां पितरौ हृष्टमानसौ।।’ कल्कि पुराण, द्वितीय अध्याय, 15वां श्लोक।)
14. शम्भल के प्रधान पुरोहित के यहां जन्म - शम्भल स्थान के प्रमुख पुरोहित विष्णुयश (‘शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।’ भागवतपुराण 12-2-18) के यहां जन्म होगा और माता का नाम सुमति (‘शम्भले विष्णुयशसो गृहे प्रादुर्भवाम्यहम्।’ कल्कि. अध्याय 2, श्लोक 4 ‘सुमत्यां विष्णुयशसा गभ्रमाधत्त वैष्णवम्’। कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 11) होगा।
ये सभी विशेषताएं अन्तिम अवतार में होंगी।
अन्तिम अवतार का समय
भारतीय धर्मग्रन्थों ने समय को चार भागों में विभाजित किया है।
1. सत्ययुग - इस युग का नाम कृतयुग है। इसकी अवधि सत्रह लाख अट्ठारह हजार वर्ष है।
2. त्रेतायुग - सत्ययुग के बाद त्रेतायुग आता है। त्रेतायुग का समय बारह लाख छियानवे हजार वर्ष तक है।
3. द्वापर युग - ‘त्रेतायुग के बाद द्वापर युग आता है, इसकी अवधि आठ लाख चैसंठ हज़ार वर्ष है।’
4. कलियुग - कलियुग की अवधि चार लाख बत्तीस हजार वर्ष है।
अवतार भविष्य में होगा परन्तु अवतार के पूर्व ही अत्याचारों से दबकर पृथ्वी जमलग्न हो जाय, तो भावी अवतार से लाभ ही क्या? गीता में भी कहा गया है, कि जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब तब अवतार होता है। साधुओं की रक्षा के लिये तथा दुष्टों के संहार के लिये, एवं धर्म के स्थापना के लिये युग-2 में अवतार होता है। (यदा याद हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहंम्।।’ - भगवद्गीता) अब यह देखना है, कि जिन जिन परस्थितियों के बाद अवतार होता है, क्या वे परिस्थितियां बीत चुकीं या बीत रही है? इतना तो निश्चित ही है कि अन्तिम अवतार कलियुग में होगा, और कलियुग को आरम्भ हुये आज से पांच हजार उन्हत्तर वर्ष हो गये (‘गतकलिः 5039’ पंचाग 2025 सं.)। अंतिम अवतार का समय कलियुग के प्रायः बीत जाने पर या कुछ बीत जाने पर है (‘इत्थ कलौ गतप्राये जनेषु खरधर्मणि। धर्मत्राणाय सत्वेन भगवानवतरिष्यति।।’ भागवतपुराण 12 स्कंध, 2 अध्याय, 17 वां श्लोक)। परिस्थिति वह रहेगी, कि केवल अपना ही पेट पालना लोगों को अभीष्ट रहेगा।
दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि अन्तिम अवतार उस समय होगा जबकि युद्धों में तलवार का प्रयोग किया जाता हो, और सवारियों में अश्व का प्रयोग होता हो। क्योंकि ‘भागवत पुराण में उल्लेख है, कि देवताओं द्वारा दिये गये वेगगामी अश्व पर चढ़कर आठों ऐश्वर्यों एवं गुणों से युक्त जगत्पति तलवार से दुष्टों का दमन करेंगे। (‘अश्वमाशुगमरूह्म देवदत्त जगत्पतिः। असिनासधुदमनमष्टैंश्वगुणान्वितः।’ भागवतपुराण 12 स्कंध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक) यह तलवारों और घोड़ों का युग नहीं है, यह तो अणुबम्ब एवं टैंकों आदि का युग है। तलवार एवं घोड़ों का समय समाप्त हो चुका है अतः अन्तिम अवतार की स्थिति तलवारों एवं घोड़ों के युग में ही होनी सिद्ध होती है। आज से लगभग 1400 वर्ष पहले घोड़ों तथा तलवारों का प्रयोग होता था और उसके लगभग 100 वर्षों बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला के संयोग से अरब में होने लगा।
जन्मतिथि का भी निरूपण होना आवश्यक है। कल्किपुराण में अंतिम अवतार का समय माधव मास, शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि दिया गया है। (द्वादशां शुक्ल पक्षस्य, माघवे मासि माघवम्। जातं............।।’ कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 15।)
स्थान निरूपण
यह तो निविवाद सिद्ध है कि अन्तिम अवतार का स्थान शम्भल ग्राम होगा। (‘शम्भले विष्णुयशसो गृहे प्रादुर्मवाम्यहम्।’ कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 4।) केवल ग्राम के नाम से ही संतोष नहीं होता, जब तक कि उसका पूरा विवरण न हो। पहले यह निश्चय करना आवश्यक है, कि शम्भल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशेषण।
शम्भल किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को शम्भल नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बतलाई गई होती। परन्तु पुराणों में कहीं भी शम्भल ग्राम की स्थिति नहीं बतलाई गई है। भरत में खोजने पर यदि कहीं कोई शम्भल नामक ग्राम मिलता है, तो वहां आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पहले कोई पुरूष ऐसा नहीं पैदा हुआ जो लोगों का उद्धारक हो। फिर अंतिम अवतार कोई खेल तो नहीं है कि अवतार हो जाय और समाज में ज़रा सा परिवर्तन भी न हो, अतः ‘शम्भल’ शब्द को विशेषता मान कर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है।
1. ‘शम्भल’ शब्द ‘शम्’ (शान्त करना) धातु से बना है। अर्थात जिस स्थान में शान्ति मिले।
2. सम् उपसर्गपूर्वक ‘वृ’ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द ‘संवर’ हुआ। ‘वबयोरभेद’ और ‘रलयोरभेद’ के सिद्धांत से शम्भल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है।
3. ‘शम्भल’ शब्द की निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों में पाठ है। ‘र’ और ‘ल’ में अभेद होने के कारण शम्भल का अर्थ होगा जल का समीपवर्ती स्थान।
लोगों को यह सन्देह होगा कि जब ‘शम्भल’ का अर्थ जल निकल रहा है, तो जल का समीपवर्ती स्थान या गांव अर्थ क्यों लिया गया? इसके उत्तर में मैं इतना ही बतला रहा हूं कि प्रसंग यहां ग्राम का है न कि जल का। जब गंगा में घोष शब्द से आप यह अर्थ करते हैं, कि गंगा के समीप स्थित गांव में घोष, न कि गंगा के जल के ऊपर घोष, तो आप शम्भल शब्द से वैसे ही क्यों अर्थ नहीं निकाल लेते? यदि गंगा में घोष, वाक्य में लक्षण मानते हैं, तो यहां भी लक्षण मानिये।
अन्तिम अवतार के स्थान के विषय में केवल इतना ही विचारणीय है कि वह स्थान, जिसके आस-पास जल हो और वह स्थान आकर्षक एवं शान्तिदायक हो। अवतार की भूमि पवित्रा होती है, अतः उस स्थान में भी पवित्राता होनी चाहिये और हिंसा आदि नहीं होनी चाहिये। साथ ही साथ वह स्थान एक तीर्थ होना चाहिये। अर्थात् लोगों का धार्मिक स्थान हो।
‘शम्भल’ का शब्दिक अर्थ है - ‘शान्ति का स्थान’, अन्तिम अवतार का स्थान शान्तिदायक, हिंसा और द्वेष में रहित होना चाहिये।
अन्तिम अवतार के लिये आवश्यक नहीं कि वह भारत में ही हो और संस्कृत या हिन्दी ही बोले। भाषा, वेशभूषा तो केवल देश-काल पात्र के अनुसार होती है। यदि अवतारों के लिये एक ही प्रकार की भाषा, वेशभूषा तथा एक ही भाषा के नाम प्रयुक्त होते तो सभी देशों के अंदर होने वाले अवतारों की भाषा तथा वेशभूषा एक ही होती। यह कहना अज्ञानता है, कि अवतार केवल भारत में ही हो। क्या भारत ही ईश्वर का प्रिय स्थान है, और अन्य देश नहीं, अथवा क्या सृष्टि केवल भारत ही है और दूसरे देश नहीं।
अतः अन्तिम अवतार भारत से बाहर भी हो सकता है और वहां उस देश की भाषा, रीति-रिवाज तथा वेषभूषा के अनुरूप उसको चलना होगा, परन्तु अधर्म एवं अन्याय के विरूद्ध।
समय को दृष्टि में रखते हुये इतना तो स्पष्ट ही है, कि भारत में आज से लगभग तेरह-चैदह सौ वर्ष पूर्व कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ, जो अन्तिम अवतार की कसौटी पर खरा उतरे।
जितने भी पुराण हैं, कल्कि के अवतार के विषय में सभी स्थान को ‘शम्भल’ बतलाते हैं। ‘सम्भल’ या ‘शम्भल’ शब्द एक ही हैं। अन्तिम अवतार ही सिद्धि प्रकरण में स्थान आदि का निर्धारण किया जायेगा।
संसार के सामाजिक और धार्मिक पतन पतन का काल
प्रत्येक महापुरूष के जन्म के पहले काफी संकटों की परिस्थिति आती है या यों कहिये कष्टमय दशाओं के बाद ही ईश्वर किसी महापुरूष को भेजता है। भारत की भी दशा आज से लगभग दो हज़ार वर्ष पहले ख़राब थी। प्राचीन भारत के इतिहास में सबसे अधिक अन्धकार और अत्याचारों का युग है जो लगभग पांच सौ ई. से प्रारम्भ होता है। वैदिक काल में मूर्तिपूजा का अभाव था, परन्तु इस समय मंदिरों में मूर्तिपूजा का सर्वत्रा प्रचलन और स्थापन हो गया था।(A History of Civilisation in Ancient India, Vol,3, Page 281)
मंदिरों के पुजारी तरह-तरह की त्रुटियों का उद्गम बने, जो धार्मिक आडम्बरों से भोले-भाले यात्रियों को लूटते थे। A History of Civilisation in Ancient India, Vol,3, Page 243)
नोट:- ‘वाचस्पत्यम्’ के अनुसार शम्भल में 60 तीर्थ हैं। वहां पर लात मनात नामक तीर्थ की भी स्थिति कुछ विद्धानों ने बताई है। लात मानत तथा कनात आदि 60 प्रसिद्ध मूर्तियों की प्राप्ति का स्थान शम्भल हैं, ऐसा मुसलमान विद्धान मानते हैं। मुसलमान विद्वान दारूल अमन को ही शम्भल कहते हैं।)
वैदिक काल में सारी हिन्दू जाति में एकता तथा समानता का व्यवहार होता था, लेकिन अब जाति-पांति के कारण अन्तरंग भेद-भाव का बोलबाला हा गया था। वैदिक काल की वर्ण-व्यवस्था, जो स्वेच्छया अपनाने पर थी, अब जाति व्यवस्था बन गई थी। इससे सामाजिक संगठन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। (A History of Civilisation in Ancient India, R.C. Dutt, Vol,3, Page 308)
स्त्रियों को दासता का पद प्रदान किया गया। A History of Civilisation in Ancient India, R.C. Dutt, Vol,3, Page 331)
विधान इस प्रकार का बना जो प्रत्यक्ष रूप् से पक्षपातपरक था। ब्राह्मण चाहे कितना ही अत्याचार क्यों न करे, मृत्यु दण्ड का भागी कभी नहीं होता था। निम्न जाति द्वारा उच्च वर्ग की पत्नी से व्याभिचार मृत्यु दण्ड को दिलाता था, तथा उच्च जाति द्वारा निम्न जाति की पत्नी के साथ व्याभिचार करने से कुछ अर्थदण्ड दिया जाता था। यदि निम्न जाति का पुरूष उच्च जाति के पुरूषों को उपदेश दे, तो गरम तेल उसके मुख में छोड़ने का विधान था, गाली देने पर जीभ काटने का विधान था।
A History of Civilisation in Ancient India, R.C. Dutt, Vol,3, Page 342-343)
शराब पीना राजाओं के महत्व की बात थी, और राजमहिपी भी शराब के नशे में मदमस्त झूमती थी A History of Civilisation in Ancient India, R.C. Dutt, Vol,3, Page 469)
मार्गो पर व्याभिचारियों का जमघट लगा रहता था।A History of Civilisation in Ancient India, R.C. Dutt, Vol,3, Page 469)
ईश्वर की खोज जंगलों और पहाड़ों में की जाती थी। काल्पनिक और मनगढ़न्त विचारों का एवं भूत प्रेतों की पूजा का धर्म था।
सम्भवतः इतनी बुरी अवस्था रोमन और पर्सियन साम्राज्य की पहले कभी नहीं थी, जितनी सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुई। बाईजेण्टाइन साम्राज्य के क्षीण हो जाने से सम्पूर्ण शासन भ्रष्ट हो चुका था और पादरियों के दुष्कर्मों और दुष्टताओं का परिणाम यह हुआ कि ईसाइ धर्म बहुत गिर गया, और इतनी खराब परिस्थिती हो गई कि आज उसकी वैसी कल्पना नहीं की जा सकती। उन बुरी परिस्थितियों को यदि स्पष्ट किया जाय, तो शायद कोई उस पर विश्वास न करे। यद्यपि उन बुराइयों का ऐसा प्रबल प्रमाण है, कि सन्देह लेशमात्र भी नहीं रह सकता। पारस्परिक संघर्षों और शत्रुता के कारण समाज मार्ग को भूल चुका था। शहरों और कस्बों में रक्त की धारा बहती थी। ईसामसीह ने सच ही कहा था, कि मैं शान्ति नहीं लाया हूं, अपितु तलवार लाया हूं।( Perhaps in no previous period had the empire of the persians of the oriental part of Roman empire, been in a more deplorable or unhappy state than at the beginning of the 7th century, In consequence of the weakness of the Byzantinc despots the whole frame of their goverment was in a state of complete dis-organization of the most frightful abuses and corruption of the priests, the Christian religion had fallen into a state of degradation scareely at this day concievably and such as would be absolutely iucredible had we not evidence of it the most unquestionable, The feuds and animosities of the almost innmerable sects had risento the greatest possible heights; the whole frame of society was loosened; the towns and cities flowed with blood. well, indeed had jesuss prphesied when he said he brought not peace, but a sword.---" Apology for Mohamed" by Godfrey Higgins, Page. 1)
इस समय अरब के एक भाग में मोहम्मद साहब का धर्म उठा, जो रोमन साम्राज्य के संघर्षों से दूर था। इस धर्म के भाग्य में यही लिखा था कि यह तूफान की तरह से सम्पूर्ण पृथ्वी में छा जायगा, और अपने समक्ष बहुत से साम्राज्यों, शासकों और प्रथाओं को इस तरह उड़ा देगा, जैसे कि आंधी मिट्टी को उड़ा देती है। ("At this time, in a remote and almost unknown colner of Arabia, at a distance from ciril broils which were tearing to piecs of Roman empire, arose the reigion of Mohamed, a religion destined to sweep like a tornado over the face of the earth to carry before it empires, Kingdoms and systems, and to scatter them like dust before tha wind." ---" Apology for Mohamed" by Godfrey Higgins, Page. 2)
अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से यह भी सिद्ध है कि मोहम्मद साहब के जन्म के पहले ईसाइयों में कितनी बुराइयां फैल गई थी। (Translation of Hloy Quran by George Sale, First translation/ Preface on pages, 25/26) इसी प्रकार सेल ने कुरआन के अनुवाद की प्रास्तावना में लिखा है - गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे, और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां उनमें से दूर हो गई थीं। वे ‘मूल धर्म’ को भूल गये थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाये हुये परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी में रोमन गिरजाघरों में बहुत सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगी और मूर्तिपूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी।
मोहम्मद साहब से पहले ईसाई धर्म और मूर्तिपूजा दोनों ने मिलकर एक नवीन रूप धारण कर लिया, जिसके कारण ईसाईयों में मूर्तिपूजा सामान्य हो गई, और एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर माननीय हो गए और मरियम (ईसामसीह की मां) को ईश्वर नहीं मां समझा जाने लगा। (The History of Struggle between Science and Religion, by Draper (Noted from Siratun Nabi, Vol. IV, Page 227)
अन्तिम अवतार सिद्धि
उपर्युक्त विवरणों में यह तो स्पष्ट ही किया जा चुका है, कि कल्कि अश्वारोही तथा खड्गधारी होगा। तलवार एवं अश्व का समय बीत चुका है, और अब जो जेट विमानों एवं अणुअस्त्रों को युग आ गया है। अन्तिम अवतार का काल निर्धारण आज से पूर्व ही सिद्ध होता है। अन्तिम अवतार के पूर्व की परिस्थितियां भी सिद्ध हो चुकी है, कि धर्म की हानि और अधर्म एवं अत्याचारों की वृद्धि होने पर अन्तिम अवतार की प्रक्रिया होगी। अब हम कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब का तुलनात्मक अध्ययन उपस्थित करते हैं।
1. अश्वारोहण एवं खड्गधारण - भागवतपुराण, द्वादश स्कन्ध द्वितीय अध्याय के उन्नीसवें श्लोक से कल्कि का देवताओं द्वारा दिये गये अश्व पर चढ़ना एवं तलवार द्वारा दुष्टों का संहार करना उल्लिखित है। (‘अश्वमाशुगारूह्य देवदत्तं जगत्पतिः। असिनासाधुदमनमष्टैश्यर्यगुणान्वितः।।’ भागवत पुराण, द्वादश स्कन्ध द्वितीय अध्याय, 19वां श्लोक।) कल्कि का घोड़ा जो देवताओं द्वारा उन्हें दिया जायगा उत्तम रहेगा, उसी पर चढ़कर वह दुष्टों का संहार करेंगे। मोहम्मद साहब को भी फरिश्तों द्वारा घोड़ा मिला था, जिसका नाम बुर्राक़ था, (The picture of Burak was published in organiser, february 8, 1969) उस पर बैठकर मोहम्मद साहब ने रात्रि को तीर्थयात्रा की थी। ("He explained to ommehani, daughter of Abu Talib that during the night he had petrformed his devotions in the temple of Jerusalem. He was going forth to make his vision known, when she confijured him not this to expose himself to the derision of the unbelievers". Life of Mohomed, ' by Sir Villiam Muir, Page 125)
मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। और उनके सात घोड़े थे। (Ash us-siyar page, 565, Jamaul Favaid, Vol 2, page 179)
अनस ने कहा है कि मैंने मुहम्मद साहब को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले पर तलवार लटकाये हुये थे। (बुखारी की हदीस)
मुहम्मद साहब के पास नौ तलवारें थीं।
1. कुल परम्परा से प्राप्त
2. जुलफ़िक़ार नामक तलवार
3. कलई नाम वाली तलवार। (असहुस्यिर, पेज 596)
2. जगद गुरू - भागवत्पुराण में अन्तिम अवतार को जगत्पति कहा गया है। (भागवतपुराण, द्वादश स्कन्ध द्वितीय अध्याय, 19वां श्लोक) जगत् का अर्थ है संसार और पति का अर्थ है रक्षक। जगत्पति शब्द का अर्थ हुआ कि अपने उपदेशों द्वारा गिरते हुये समाज को बचाने वाला। वह समाज कोई सीमित समाज तो हैं नहीं, वह समाज है संसार। तात्पर्य यह हुआ कि जगद् का गुरू। मुहम्मद साहब के लिये भी कुरान में कहा गया है, ‘ऐ मोहम्मद ऐलान कर दो सारीदुनिया भर के लिये नबी होकर तुम आये हो’। दूसरी जगह यह भी कहा गया है कि पवित्र है वह अस्तित्व, जिसने अपने भक्त पर पवित्र ग्रन्थ उतारा, ताकि सम्पर्ण संसार के लिये वह पापों का डर दिखाने वाला हो। (कुरआन, सूरे एराफ, आयत नं. 158)
इस प्रकार जगद् गुरूत्व का अस्तित्व एवं महत्व दोनों ही सिद्ध होते हैं।
3. असाधुदमन - कल्कि के विषय में उल्लेख है कि वह दुष्टों का दमन करेंगे। यही बात मुहम्मद साहब पर भी घटित होती है। उन्होंने भी दमन किया, तो दुष्टों का ही। कुरआन में भी यह कहा गया है, कि जिनको सताया गया है, उनको आज्ञा दी जाती है कि वे भी लड़ें, इस कारण से कि उन पर अत्याचार किया गया है (कुरआन, सूरे फुरक़ान, आयत नं. 1) और परमेश्वर उनकी सहायता पर पूरी शक्ति रखता है। जो लोग अपने घरों से निकाले गये, केवल इस बात पर कि ईश्वर उनका पालक है। मोहम्मद साहब ने लुटेरों और डाकुओं को सुधार कर उन्हें एकेश्वरवाद की शिक्षा दी, तथा ईश्वर की पूजा में और देवताओं के मिश्रण का विरोध किया तथा मूर्तिपूजा का भी खण्डन किया। उन्होंने जिस धर्म की स्थापना की, उसके विषय में कहा कि मैं प्राचीन धर्म को ही स्थापित कर रहा हूं। कोई यह नवा धर्म नहीं। ‘इस्लाम’ शब्द का अर्थ है, ईश्वर की आज्ञा का पालन कराने वाला धर्म और वेद शब्द भी ईश्वरीय वाणी है और उनकी आज्ञा पालन कराने वाला धर्म वैदिक है, अतः वैदिक धर्म और इस्लाम धर्म में साम्य है जो वैदिक या इस्लाम धर्म के मार्ग में बाधक है, उन्हें नास्तिक या काफ़िर कहा जाता है, उनसे विरोध की बात और उनके दमन की बात स्वाभाविक ही है।
जिस परिस्थिति में मोहम्मद साहब का जन्म हुआ, वह परिस्थिति डाकुओं और दुष्टों से युक्त थी। लड़कियों को कत्ल कर दिया जाता था।
उनके जन्म के पहले ईरान में तो कुबाद प्रथम बादशाह हुआ था, जो भज्दक के उपदेश से प्रभावित होकर यह घोषित कर चुका था (सीरतुन्नबी, वाल्यूम 4, पेज 215) कि धन और और सभी की हैं, उन पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं। इसी के परिणाम स्वरूप व्यभिचार अपनी सीमा को पार कर चुका था। बाद में मोहम्मद साहब ही ऐसे व्यक्ति हुये जिनके वर्ग ने उन आतताइयों को पराजित करके धर्म की मर्यादा स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।
4. स्थान सम्बंधी साम्य - कल्कि का स्थान शम्भल होगा और वह वहां के पुरोहित के यहां जन्म लेंगे। (‘शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।’ भागवतपुराण, द्वादश स्कन्ध, 2 अध्याय, 18वां श्लोक) पुरोहित का नाम विष्णुयश होगा। इतना तो ज्ञात ही है कि उक्त नाम संस्कृत भाषा के हैं, जो या तो अर्थ को निर्धारित करके लिखे गये हैं, या तो उन नामों का विकृत रूप अरबी भाषा में हो गया है।
संस्कृत प्रायः अर्थप्रधान नामों को महत्व देता है, अतएव उन नामों के अर्थ को ही स्वीकार करना अधिकार उपयुक्त है। ‘शम्भल’ शब्द ‘शान्त करना’ अर्थ वाली ‘शम्’ धातु से बना हुआ है, जिसमें ‘बन’ प्रत्यय लगा हुआ है। शम्भल शब्द का अर्थ होगा ‘शान्ति का घर’ और मक्का को अरबी भाषा में ‘दारूलअमन’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ ‘शान्ति का घर’ हैं
5. प्रधान पुरोहित के यहां जन्म - कल्कि के विषय में यह कहा गया है कि वह प्रधान पुरोहित के यहां जन्म लेंगे। मोहम्मद साहब ने भी मक्का में काबा के प्रधान पुरोहित के यहां जन्म लिया।
6. माता पिता सम्बंधी साम्य - कल्कि की माता का नाम कल्कि पुराण में सुमति (सोमवती) अया हुआ है जिसका अर्थ है, शांति एवं मननशील स्वभाव वाली। पिता का नाम विष्णुयश आया हुआ है, जो बहुत ही पवित्र तथा ईश्वर का उपासक होगा, मोहम्मद साहब की माता का भी नाम ‘अमिना’ था जिसका अर्थ होता है, शान्ति (अमन) वाली, तथा पिता का नाम ‘अब्दुल्लाह’ था। अब्दुल्लाह का अर्थ है अल्लाह अर्थात विष्णु का बन्दा। (कल्कि अवतार के पिता का नाम विष्णुयश होगा, विष्णु - अल्लाह यश - बन्दा यानी अब्दुल्लाह, कल्कि अवतार की माता का नाम सुमति (सोमवती) होगा। सोमवती - अमन व सलामती वाली यानी आमिना। इसका पिता इसकी पैदाइश से पहले फौत हो जायेगा और बाद में माता भी फौत हो जायेगी तारीख ने इसकी ताईद की सरवरे, पेज 10-11) 7. अन्तिम अवतार की धारणा में साम्य - कल्कि को अन्तिम युग का अन्तिम अवतार बताया है (भागवतपुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अन्तिम अवतार है। भागवतपुराण प्रथम स्कन्ध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक।), मोहम्मद साहब ने भी घोषणा की है, कि मैं अन्तिम सन्देष्टा हूं। यही कारण है कि मुसलमान भावी किसी सन्देष्टा या अवतार को नहीं मानते।
‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरू’ अनार का फल खाने वाले तथा कलंक को धोने वाले किया गया है। मोहम्मद साहब भी अनार और खजूर का फल खाते थे, तथा उन्होंने प्राचीन काल से आगत मिश्रण (शर्क) और नास्तिकता (कुफ्ऱ) को धो दिया।
8. उत्तरदिशिगमन तथा उपदेश सम्बंधी साम्य - कल्कि पुराण में उल्लिखित है, कि (सरवरे आलम, पेज 10) कल्कि पैदा होने के बाद पहाड़ी की तरफ चले जायेंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे बाद में उत्तर की तरफ जाकर फिर लौटेंगे। मोहम्मद साहब भी जन्म लेने के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ चले गये और वहां जिब्रील द्वारा ज्ञान प्राप्त किया, अर्थात उन पर कुरआन की आयतों का उतरना शुरू हुआ। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण की ओर लौट आये और अपने स्थान को विजित किया, (‘परशुराम कल्कि अवतार को गुफा में ले जाकर तालीम देंगे, परशुराम - जिब्रील, या रूहुलकुदुस। गुफा - ग़ार यानी गारेहिरा का वाक्या।’ सवरे आलम, पेज 11) यही घटना कल्कि के विषय में भी घटने की पुराणों द्वारा घोषणा है।
9. शिव द्वारा कल्कि को एक घोड़ा दिया जाना (शिव कल्कि अवतार को एक घोड़ा देंगे जो अजीबो ग़रीब सिफ़त रखता होगा। शिव यानि खुदा और घोड़े का इशारा बुर्राक़ की तरफ़ है। सरवरे आलम, पेज 11) शिव कल्कि को एक घोड़ा देंगे जो बहुत ही चमत्कारों से युक्त होगा। मोहम्मद साहब को भी बुर्राक़ नाम का चमत्कारी घोड़ा मिला था, जो ईश्वर से उन्हें प्राप्त हुआ था।
10. चार भाइयों के साथ कलि का निवारण - कल्कि पुराण में उल्लेख है कि (चतुर्भिभ्र्रातृभिर्दिव करिष्यामि कलिक्षयम्। कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 5।) चार भाइयों के साथ कल्कि कलि (शैतान) का निवारण करेंगे। मोहम्मद साहब ने भी चार साथियों के साथ शैतान का निवारण किया था। ये चार साथी थे 1. अबूबक्र 2. उमर 3. उस्मान और 4. अली। ( 632 A. D. to 661. A. D. the orthodox caliphate including the first four Calibhs.--- Encyclopedia of World History. by W. L. Langer page 184)
बाद में ये ही ख़लीफ़ा हुये जिन्होंने मोहम्मद साहब के एकेश्वरवाद और आडम्बर विहीन धर्म का प्रचार किया।
11. देवताओं द्वारा सहायता - कल्कि पुराण में उल्लेख है, कि देवताओं द्वारा कल्कि को युद्धों में सहायता मिलेगी (यात पूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रतः। कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7।)। यही बात मुहम्मद साहब के भी विषय में हुई कि बद्र की लड़ाई में फरिश्ते उनकी सहायता के लिये उतरे।
कुरआन में लिखा है कि ‘अल्लाह ने तुमको बद्र की लड़ाई में मदद दी और तुम बहुत कम तादाद (संख्या) में थे, तो तुमको चाहिये कि तुम अल्लाह ही से डरो और उसी के शुक्रगुजार होओ। जब तुम मोमिनीन से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिये काफ़ी नहीं है, कि तुम्हारा रब तुमको तीन हज़ार फरिश्ते भेजकर मदद करें, बल्कि अगर तुम सब्र करो और अल्लाह से डरते रहो। तो अल्लाह तुम्हारी मदद पांच हज़ार फरिश्तों से करेगा’(कुरआन, सूनः आल इमरान आयत नं. 123,124,125।)। ‘जब तुमने अपने रब से मदद मांगी, तो तुम्हारे रब ने मंजूर किया कि मैं तुम्हारे लिये एक हज़ार फरिश्ते मदद को भेजूंगा (कुरआन, सूरे अनफाल, आयत नं. 9)।
ऐ ईमान वालों, अल्लाह की उस कृपा का स्मरण करो, जब तुम्हारे विरूद्ध सेनायें आईं तो हमने उनमे विरूद्ध पवन और ऐसी सेनायें भेजीं, जिनको तुम नहीं देखते थे, और जो कुछ तुम कर रहे थे,वह अल्लाह देख रहा था (कुरआन, सूरः अहजाब, आयत नं. 9)।
12. अनुपमकान्ति से युक्त - कल्कि से विषय में उल्लेख है कि वे अनुपम कान्ति से युक्त होंगी, अर्थात वे इतने अधिक सुन्दर होंगे कि उनकी उपमा नहीं दी जा सकती (‘विचरन्नाशुना क्षोणयां हयेनाप्रतिमद्युतिः। नृपलिंगप्तछदो दस्यून् कोटिशोनिहनिष्यति।।’ भागवत पुराण, द्वादश स्कन्ध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक।)। मोहम्मद साहब के भी विषय में कहा गया है कि मोहम्मद साहब सभी आदमियों से अधिक सुन्दर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान् एवं योद्धा थे (जाम उल फवायद पेज 178 बुखारी की हदीस में अनस का बयान)।
13. जन्मतिथि सम्बंधी साम्य - कल्कि पुराण में कल्कि के जन्म की तिथि के सम्बंध में लिखा है कि माधव मास में शुक्लपक्ष द्वादशी को जन्म होगा (‘द्वादश्यां शुल्कपक्षस्य माधवेमासि माधवम्’ कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 15।) और मोहम्मद साहब का जन्म भी बाहर रबीउल अव्वल को हुआ था (असह उस्सियर, पेज 49)। बारह रबीउल अव्वल का अर्थ है, चांद की बारहवीं तिथि अर्थात शुल्कपक्ष द्वादशी।
14. शरीर से सुगन्ध का निकलना - श्री मद्भागवत पुराण के अनुसार कल्कि के शरीर से निकली सुगन्ध से लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। उनके शरीर की सुगन्ध हवा में मिलकर लोगों के मन को निर्मल करेगी (‘अथ तेषां भविष्यन्ति मनांसि विशदनि वै। वासुदेवाडरागतिपुणयगन्धानिलस्पृशाम।’ भागवतपुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 21वां श्लोक।)।
मोहम्मद साहब के शरीर की खुश्बू तो प्रसिद्ध ही है। मोहम्मद साहब जिससे हाथ मिलाते थे, उसके हाथ से दिन भर सुगन्ध आती रहती थी (शिमाएल तिरमिज़ी - अनुवादक मौलाना मोहम्मद ज़करिया, पेज 208)। मोहम्मद साहब के नौकर ने कहा था कि मोहम्मद साहब के शरीर की सुगन्ध वायु को सुगन्धित कर देती है थी, जब वह घर से बाहर निकलते थे ("Anas, his servant, says, "We always used to know when Mohamet had issued forth fume that filled the air." IFE OF MOHAMED by Sir William Muir. page 342.)
एक बार उम्मेसुलैन ने मोहम्मद साहब के शरीर का पसीना इकट्ठा किया। मुहम्मद साहब के पूछने पर उसने बताया कि इसे हम खुशबूओं में मिलाते हैं, क्योंकि यह सभी सुगन्धों से बढ़ कर है।
15. अष्टैश्वर्यगुणान्वित - भागवत पुराण 12 स्कन्ध द्वितीय अध्याय में कल्कि को ‘अष्टैश्वर्यणान्वित’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) कहा गया है। वे आठ ईश्वरीय गुण हैं - प्रज्ञा, कुलीनता, इन्द्रिय-दमन, श्रुतिज्ञान, पराक्रम, थोड़ा बोलना, दान और कृतज्ञता (‘अष्टौ गुणाः पुरूषं दीपयान्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुत च। पराक्रमश्चबहुभाषिता च’ दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च’।। महाभारत)।
(क) प्रज्ञा - ऊंचा ज्ञान विषयक साम्य भी मोहम्मद साहब से है। भूत, भविष्य और वर्तमान की सभी बातें बताने में मोहम्मद साहब पूर्ण समर्थ थे, इस बात के समर्थन में अनेकों उदाहरण मोहम्मद इनायत अहमद की ‘अलकलामुलमुबीन’ पुस्तक में मिल जाएंगे। प्रमाण रूप में उस पुस्तक में इतिहास संक्षेप में यह है - रोमियांे और ईरानियों की लड़ाई में रोमी जब परास्त हुये, तो मोहम्मद साहब ने अपनी परोक्षदर्शिता से इस घटना को अपने मित्रों से बताया। उनके मित्रों से इस घटना को जानकर कुरैशी (विरोधी) बहुत प्रसन्न हुआ, परन्तु एक फरिश्ते से ‘9 वर्ष के अन्दर रूमियों की होने वाली विजय’ की भविष्य वाणी को सुनकर मोहम्मद साहब के मित्रा अबूबक्र से एक दो हजार ऊंटों के हार जाने की शर्त रखी, अन्त में 9 वर्षों के अन्दर नैनवा (Ninevah)के युद्ध में रूमियों की विजय 627 ई. में हुई इसी विषय से सम्बंधित ‘सूरे रूम’ नामक कुरान की 30वीं सूरत उत्तरी है इसी प्रकार के अनेकों उदाहरण, जो उनकी दूरदर्शिता से सम्बंधित है, इतिहास से ज्ञात है।
(ख) कुलीनता - ‘कल्कि मुख्य ब्राह्मण के परिवार से सम्बद्ध होंगे’, इसकी पुष्टि ऊपर हम कर चुके हैं। मोहम्मद साहब भी ऊंचे पुरोहित परिवार में पैदा हुये थे। उनका परिवार पवित्रा काबा का संरक्षक था (He was born in A.D. 571, and came of the noble tribe of the Koreysh, who had long been guardians of the sacred Kaaba. Page - MMVI of Intorduction. the speeches of Mohammad, by Lane-Poole, Published by macmillan and Co. (London).
मोहम्मद साहब का जन्म 571 ई. में कुरैश की पंक्ति में हाशिम के परिवार में हुआ था, जो अरब के निवासियों द्वारा माननीय तथा काबा का परम्परागत संरक्षक था ('He sprung from toe trible of Koretsh and the family of Hashem. the most illustrious of the Arabs, the princes of Macca, and the hereditary guadians of the Caaba'. Page- 229, Vol5, Decline and fall of the Roman Empire, by Edward Nibbon Published from E.P. eutou and Co. Newyork. 1910 A.D.)
(ग) इन्द्रियदमन - आठ ईश्वरीय गुणों में तीसरा गुण है - इन्द्रियों को वश में करना। भारतीय धर्म ग्रन्थों में कल्कि के विषय में कहा गया है, कि कल्कि इन्द्रिय दमन करने वाले होंगे। मोहम्मद साहब के विषय में कहा गया है कि वह आत्मप्रशंसा से हीन, दयालू, शान्त, इति, इन्द्रियजीत और उदार होंगे ('Modestry and kindliness, patience, self denial, and reveted the affections off all around him.' Page 525, 'Life of Mohamet' by - Sir William Muir, Published by smith, Elder and Co. (London) 1877. A. D.)
‘इन्द्रियदमन’ का अर्थ है, कि इन्द्रियों को वंश में करना। इन्द्रियों मन के अधीन होकर काम करतीं हैं अतएवं मन को वश में करना ही इन्द्रियों को वश में करना है। यदि कोई यह आपत्ति करे, कि जो पुरूष 9 विवाह करे, उसको घोर कामी या भोग विलासी छोड़कर इन्द्रियों को वश में करने वाला कैसे कहा जा सकता है? तो उन्हें यह ज्ञात होना चाहिये कि योगिराज श्री कृष्ण की पटरानियां क्या संख्या में छः से अधिक नहीं थीं? योगी तो सांसारिक भोग विलासों के अन्तर्गत रहकर भी निष्काम भावना के कारण मुक्त हो जाता है। जैसे कमल का पत्ता जल में रहते हुये भी जल से परे रहता है, वैसे योगी पुरूष (ईश्वर को प्राप्त करने वाला) भी संसार के भोगों द्वारा 9 पत्नियों का रखा जाना लोकोत्तर पुरूषत्व का ही द्योतक है, न कि इससे इन्द्रियदमनकारी होने में कोई कमी आती है।
(घ) ‘श्रुतं - श्रुतं आठ ईश्वरीय गुणों में चोथा गुण है।’ ‘श्रुतं का अर्थ है, जो ईश्वर के द्वारा सुनाया गया और ऋषियों या पैगम्बरों द्वारा सुना गया हो। ‘श्रुतं शब्द ‘श्रुं’ (सुनना) धातु से बना है। ईश्वरीय ज्ञान जिस ग्रंथ में हो, उसे ‘श्रुतं कहा जाता है। मोहम्मद साहब पर फरिश्ते द्वारा ईश्वरीय ज्ञान उतारा जाता था, जिसे वह्य भी कहा जाता है। लेनपूल इस बात का समर्थन करते हैं, कि मोहम्मद साहब पर देवदूत की सहायता से ईश्वरीय वाणी का भेजा जाना निःसन्देह सत्य है ( These are the first revelations, that came to Mohammad. That he belived, he heard them , spoken an agles from heaven is beyod doube., page xxxi, Introduction, speeches of Mohammad, by Lane-poole.)।
आर.वी. स्मिथ भी इस बात से सहमत है, कि एक वह्य में मोहम्मद साहब सन्देष्टा का पद पाने वाले घोषित किये गये है ('Upon this, Mohammad felt the heavenly inspiration, and read, as he believed, the deeres of God, which he after words, promulgated in Koran. Then came the announcement, 'O, Mohamed, of a truth thou art the prophet of God and I am his angle Gabriel" This was the crisis of Mohamed's life, It was his call to renonce and to take the office of prophet, Page 98, Mohamed and Mohamednisu. by rev. Bosworth smith)
सर विलियम म्योर ने भी मोहम्मद साहब के विषय में लिखा है कि वह संदेष्टा तथा ईश्वर के प्रतिनिधि थे (He was now the servant, the prophet, the vice gerent of God. page 48. Life of Mohamed, by Sir William Muir.)
इस प्रकार मोहम्मद साहब और कल्कि अवतार की समानता दृष्टिगोचर होती है।
(ड.) पराक्रम - अष्टगुणों में ‘पराक्रम पांचवा गुण है। शारीरिक शक्ति में मोहम्मद साहब काफी बढ़े हुये थे। इसके उदाहरण के रूप में एक पहलवान जिसका नाम रकाना था, का वृतान्त उपस्थित किया जा रहा है। किसी गुफा में अकेले उपस्थित रकाना पहलवान, जो कुरैश से सम्बंधित था, से मोहम्मद साहब ने ईश्वर से न डरने और ईश्वर पर विश्वास न करने का कारण पूछा जिस पर पहलवान ने सत्य की स्पष्टता के लिए कहा। तब मोहम्मद साहब ने कहा, कि तू तो बड़ा वीर है, यदि कुश्ती में मैं तुझे नीचा दिखाऊँए तो क्या विश्वास करेगा? उसने स्वीकारात्मक उत्तर दिया, तब मोहम्मद साहब ने उसे दो बार परास्त किया, फिर भी उस पहलवान ने मोहम्मद साहब को पैग़म्बर न माना, तथा ईश्वर की सत्यता पर विश्वास न किया (देखिये ‘असह उस-सियर’, पेज 97 तथा ‘Life of Mohamed का पेज 525, by Sir W. Muir)
(च) अबहुभाषिता - ‘अबहुभाषिता’ का अर्थ है - थोड़ा बोलना। थोड़ा बोलना महान् पुरूष का बहुत बड़ा गुण माना जाता है। मोहम्मद साहब भी अधिकतर मौन रहा करते थे, परन्तु जो कुछ बोलते थे, वह इतना प्रभावोत्पादक होता था, कि लोग उसकी बातें नहीं भूलते थे ('He was of great taciturnity, but when he spoke, it was with emphasis and deliberation, and no one could gorget what he said.' page- xxix, Introduction The speeches of Mohammad' by Lane-pool.)
पारस्परिक वार्तालाप में मोहम्मद साहब शान्त ही रहते थे, परन्तु अरब के लोग उनकी बातें सुनना बहुत पसन्द करते थे (In his intercourse with others, he would sit silent among his companions for a long time together, but truely was more eloquent tham other men's speech, for the moment, speech was called for, it was forth coming in the shape of some weighty apothegm of proverb such as Arabs love to hear.'page- 110 ' Mohammed and Mohammadenism' by R. Bos Worth smith)
(छ) दान - ‘दान’ धर्म का आवश्यक अंग है। दीनों को दान देना आठ गुणों में सातवां गुण है, जो पुरूष को आलोकित करता है। लगभग प्रत्येक महापुरूष ने इसे स्वीकृत किया है। कल्कि को तो ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वित’ कह कर पुराणों द्वारा उनमें आठों गुण का सन्निवेश कर दिया गया है। मोहम्मद साहब दान देने में सतत लगे रहते थे। उनके घर में गरीबों की जमघट लगा रहती थी ('Indeed, outside the prophet's house was a bench or gallery, on which were always to be found a number of poor, who lived entirely upon his generosity and were hence called, 'the people of the bench. page - xxx Introducion, the speeches of Mohammed by _ lane-poole.)
वे किसी को निराश नहीं करते थे। सरविलियम म्योर ने भी मोहम्मद साहब को बहुत सुन्दर स्वरूप वाला, पराक्रमी तथा दानी बताया है ( He was, says and admiring follower, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men.' page 523, The life of Mohamet, by Sir William Muir)
(ज) कृतज्ञता - आठ दैवी गुणों में कृतज्ञता (किये गये उपकार को समझना) अन्तिम गुण है। इस गुण के अभाव में कोई भी महापुरूषत्व को नहीं प्राप्त करता है। कल्कि में ‘कृतज्ञता’ को लेकर आठों गुणों की स्थिति की भविष्यवाणी पुराणों में है, जैसे कि पहले हम स्पष्ट कर चुके हैं। मोहम्मद साहब ने भी ऊपर 7 गुणों की स्थिति स्पष्ट हो चुकी, और कृतज्ञता की उनमें स्थिति को कोई भी इतिहासकार अस्वीकार नहीं कर सकता। अन्सार के प्रति कहे गये वाक्य मोहम्मद साहब की कृतज्ञता का स्पष्टीकरण करते हैं (Asah us siyar, page 343)
16. ईश्वरीय वाणी का उपदेष्टा - कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय होगी। मोहम्मद साहब के द्वारा अभिव्यक्त कुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें, क्योंकि कुरआन ने जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद भी हैं। कुरआन में मूर्ति पूजा का खण्डन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है, वेद में एकं सत्’ तथा विश्वबन्धुत्व की उत्कृष्टा घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और कुरआन की शिक्षा के अनुसार मुसलमान दिन में पांच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं, जबकि ब्राह्मण वर्ग में विरले लोग ही त्रिकाल संध्या करने वाले मिलेंगे। इस प्रकार हम देखते हैं कि कल्कि और मोहम्मद साहब के विषय में एक सी बातें हैं। अब उपसंहार के रूप में हम वेदों और कुरआन की मूल शिक्षाओं की समानता पर विचार प्रस्तुत करेंगे।
वेदों और क़ुरआन की शिक्षायें
1. ईश्वर वह है, जिसके अतिरिक्त कोई दूसरा पूज्य नहीं, वह सदा रहने वाला और स्वयं अपने में स्थित है और जितनी वस्तुएं हैं, उसी पर आधारित हैं। जब तक उसकी आज्ञा न हो, कोई उसके प्रबंध में व्याघात नहीं डाल सकता, वह हमारे आगे और पीछे की सब बात जानता है और उसके ज्ञान के भंडार से केवल उतना ही जान सकते हैं जितना वह चाहे, आकाश और पृथ्वी सब उसके ज्ञान के क्षेत्रा में सम्मिलित हैं, वह इन सबको संभाले हैं, वह कभी थकता नहीं, यह सबके ऊपर और सबसे बड़ा है (कुरआन 2-255)।
उपनिषदों के ‘एक ब्रह्म द्वितीय नास्ति, मेहनानास्ति किंचन’ का अर्थ यह है कि वह ईश्वर एक है, उसके अतिरिक्त दूसरा नहीं है, यहां तो उसके बिना कुछ है ही नहीं, अर्थात जगत् का अस्तित्व तभी तक है, जब तक ईश्वर की सत्ता जगत् को संभाले है। यदि ईश्वर की सत्ता को अस्वीकृत की किया जाय, तो जगत् का अस्तित्व ही नहीं रहेगा।
2. जिसको कोई भी चक्षु के द्वारा नहीं देख सकता अपितु जिससे नेत्रा अपने विषयों को देखता है, उसे ही तू ब्रह्म जान (यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूषि पश्यति। तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदतुपासते।। - केनोपनिषद् (सामवेद तलवकार(ब्राह्मण), खण्ड 1, मंत्रा 6)। कुरआन में कहा गया है कि आंख उसे नहीं देख सकती पर वह सब आंखों को देखता है (कुरआन, 6-102 से 104।)।
3. तू हमें सीधे रास्ते पर ले चल (कुरआन सूर 1, आयत 5)। ऋग्वेद में भी कहा गया है कि हे प्रकाशक परमेश्वर हमें सुन्दर रास्ते से ले चलो (‘अग्नेनय सुपथा राये.’ ऋग्वेद 1.181,1 वा य 3, 36, 7,43, 40, 16 तै. सं. 1.1.14, 3, 4, 43, 1, तै. ब्रा. 2.8, 2, 3 तै आ. 1.8.8, शतब्रा 14.8.3.1)
4. कह दो कि ईश्वर एक है, बाकी सब उसी के आश्रय है। न वह कभी जन्म लेता है और न किसी को जानता है। उसके जोड़ का कोई दूसरा नहीं है। परमेश्वर एक है, सभी प्राणियों में व्याप्त है, सभी कर्मो का अध्यक्ष है, सभी के ऊपर है, सबका साक्षी (गवाह) है, सब कुछ जानता है, और निगुर्ण है (एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वभूतान्तरात्मा। कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः, साक्षी जेता केवलो निर्गुणश्च।। श्वेताश्वतर उपनिषद् अध्याय 6, मंत्रा 11)।
5. ईश्वर सत्य (अल्लाह हक है) (कुरआ 21.62।)। वेदान्त में कहा गया हे थ्क् ‘सत्यं ब्रह्म’ अर्थात ब्रह्म सत्य है।
6. जिधर भी तुम मुंह करा, उधर ही परेमश्वर का मुख (कुरआन 2.115।)। गीता में कहा गया है कि ‘विश्वतोमुखम्’ अर्थात उसके सब तरफ मुख हैं (‘सहस्रशीर्षापुरूषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमि विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलाम्।।’ ऋग्वेद 10909 सामवेद 617, अर्थवेद 19.61 वा. य. 31.1, तै आ. 3-12.1)।
7. वेदों में और गीता तथा स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है तथा अपनी की हुई बुराईयों की क्षमा मांगने के लिए भी उसकी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है। कुरआन में भी कहा गया है, कि ऐ नबी कह दो! मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य की जाती है कि तुम्हारा इलाज (पूज्य) अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसे से मांगो (कुरआन अस-सजदः। अध्याय 41, आयत नं. 6)।
8. वेदों (ईश्वरीय वाणी या ईश्वराज्ञा) पर श्रद्धा न करना एवं उसके उपदेशों को न मानना ‘नास्तिकता’ है। ‘नास्तिकता’ का अर्थ है कि ‘अस्वीकार करना’। कुरआन में भी काफिर शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। ‘कुफ्र’ का अर्थ है, ‘अस्वीकार करना’ या ‘भुला देना’। ईश्वर तथा पैगम्बरों का न मानने वालों के मुख से कहलाया गया है कि ‘जो कुछ तुम कहते हो उसकी तरफ से हम ‘कफिर’ हैं (अर्थात उसको हम अस्वीकार करते हैं) (कुरआन 34.34)।
9. मुसलमान का अर्थ है कि ईश्वर की आज्ञा को मानने वाला। तात्पर्य यह कि ईश्वर पर, ईश्वरीय वाणियों पर तथा आप्त पुरूषों पर जो ईमान लाया, वही है मुसलमान। ठीक उसी शब्द के अनुरूप संस्कृत साहित्य में ‘आस्तिक’ शब्द आया है ‘आस्तिक’ का अर्थ है, ईश्वर, ईश्वरीयवाणी, आप्त पुरूषों पर श्रद्धा रखने वाला। जिस प्रकार आप्त पुरूषों की वाणी को संस्कृत साहित्य में आगम प्रमाण माना गया है। ‘काफिर’ का ठीक विलोम ‘मुसलमान’ है और ‘नास्तिक’ का ठीक विलोम आस्तिक। काफिर से कोई मुसलमान तर्क करना नहीं चाहेगा और न तो नास्तिक से कोई आस्तिक भी बात करना स्वीकार करेगा। भारत में पचहत्तर प्रतिशत आस्तिक तथा पच्चीस प्रतिशत नास्तिक हैं। पढ़े लिखे समाज में नास्तिकों की संख्या अधिक है। नास्तिक और काफिर एक दूसरे के भाषान्तर हैं और मुसलमान और आस्तिक भाषान्तर हैं।
10. रही बात ‘हिन्दू’ शब्द की, सो यह शब्द बिल्कुल ही नवीन शब्द है। प्राचीन भारतीय धर्म को आर्य धर्म कहा जाता था या सनातन धर्म।
आर्य धर्म का अर्थ है श्रेष्ठ धर्म (आर्यधर्मो कि ते राजन् सर्वधर्मोत्तमः स्मृतः। ईशाज्ञया कर्रिष्यामि पैशाचं धर्मदारूणम्।। भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व, तृतीय खण्ड, अध्याय 3,24 वां श्लोक।), और सनातन धर्म का अर्थ है, सब दिन से चला आने वला धर्म। सना - सब दिन। तन - चला आने वाला। वेद की संस्कृत के ‘सकार’ को फारसी तथा ईरानी (ग्रीक) में हकार कहा जाता है। ग्रीक के लोग सिन्धु तट तक आते थे और ‘सिन्धु के सकार को हकार में बदल कर ‘हिन्द’ शब्द बना दिये, ‘स्थान’ को ‘स्तान’ उच्चारण करके ‘हिन्दुस्तान’ और वहां रहने वाले लोगों को ‘हिन्दू’ कहने लगे। उन्हीं लोगों से सम्पर्क से संस्कृत साहित्य से अनभिज्ञ लोग भी हिन्दू और हिन्दुस्तान का उच्चरण करने लगे। मुसमानों के राज्य से भारत को ‘हिन्दुस्तान’ और भारतीयों को हिन्दू कहा जाने लगा तथा अंग्रेजों ने ‘हिन्द’ शब्द में अपनी भाषागत विशेषता के कारण (हिन्द) ‘hind’ के ‘H’ का लोप करके Ind इण्ड
और indo तथा देश सूचक ia जोड़कर india (इण्डिया) शब्द बना लिया। इण्डिया में रहने वाले इण्डियन कहे जाने लगे। अतएव भारतीय, हिन्दू और इण्डियन शब्दों का एक ही अर्थ हुआ। भारत हिन्दुस्तान, इण्डिया में रहने वाला। यदि कोई भारत हिन्दुस्तान तथा इण्डिया को एकार्थक न माने तो उसकी अल्पज्ञता है। भारत में रहने वाला ईसाई, मुसलमान, द्रविड़, कोल, किरात, भिल्ल पारसी, संथाल आदि सभी हिन्दू (हिन्दी) हैं, सभी इण्डियन हैं, सभी भारतीय हैं। यह भाषा विज्ञान से सिद्ध है। हिन्दू धर्म, इण्डियन धर्म, सनातन या आर्य धर्म में भेद नहीं है। भेद केवल भाषा का।
उपसंहार
केवल मैं ही नहीं, सभी शिक्षित वर्ग पक्षपात रहित होकर सम्पूर्ण राष्ट्रों की एकता के उद्देश्य से इस शोध पुस्तक को अवश्य स्वीकार करके राष्ट्र के भावी जीवन को शान्तिप्रिय बनायें। भारतीय जिन कल्कि को भगवान मानते हैं, मुसलमान उन्हीं कल्कि के चेले हैं। कल्कि के विषय में कहा गया है, कि यह भारतीयों का बहुत ही बड़ा कल्याण करेंगे, इस भावना को लेकर प्रत्येक भारतीय स्वयं को हिन्दू कहे या इण्डियन, कल्कि पर विश्वास करे, क्योंकि वही अन्तिम अवतार हैं। जो घोड़े पर चढ़ना तथा तलवार धारण करना स्वीकार करेंगे, अब जो भावी युग आ रहा है। वह घोड़ों और तलवारों के युग से काफी दूर होता जा रहा है। भारतीय मुसलमानों को दूसरा नहीं समझें, क्योंकि वे भारतीयों के सबसे बड़े हितैषी सिद्ध होंगे। इस्लाम, मुसलमान अरबी भाषा के शब्द हैं, जिनका अर्थ ईश्वराज्ञा पालन धर्म या सनातन धर्म तथा आस्तिक होता है।
जो धर्म के अन्धे अनुयायी होकर अपने सनातन धर्म को सीमित बना देते हैं, और दूसरे धर्मों को न समझते हुए परस्पर विद्रोह करते हैं, वे ईश्वर के राज्य में अग्नि द्वारा तपाये जाते हैं। मैंने अपने इस शोधपत्रा को किसी पक्षपात की भावना से नहीं लिखा है। अन्तर्यामी का मुझे आदेश मिलता है, कि हिन्दू मुस्लिम एकता का बाधक जो विद्रोह कभी-कभी खड़ा हो जाता है, और ईश्वर की दुहाई देकर दोनों पक्ष एक दूसरे का संहार करते हैं, यह ईश्वर को बुरा लगता है। शिक्षा देना उपदेश का काम है पालन करना उपदेशक के ज़िम्मे नहीं है वह तो ईश्वर के ज़िम्मे है। एक मनुष्य क्या किसी से कुछ करायेगा? ईसा ने जिन अहमद (ईश्वर के प्रशंसक) के विषय में भविष्यवाणी की, वेदव्यास जी ने भावी वृत्तान्त के रूप में जिन कल्कि का व्याख्यान किया, उन्हीं की गवाही देना मेरा कर्म है। ईसाई कल्कि को माने या न माने, परन्तु भारतीय तो अवश्य उसे मानेंगे।
कल्कि और मोहम्मद साहब के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला, उसे देखकर यह आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे हो गये और वही मोहम्मद साहब हैं। दोनों के साम्य में यदि कहीं कोई बाधक प्रमाण मिले, तो या तो उन्हें क्षेपक समझ लेना चाहिये या ‘हरि अनन्ता हरि कथा अनन्ता’ से युगानुसार चरित वैभिन्य। मौलिक धर्म-सिद्धान्त प्रायः एक ही हैं, परन्तु अल्पबुद्धि के लोगों को वह बोध-गम्य नहीं।
कुछ समय पहले वैदिक धर्म में मिश्रित बुराइयों का निराकरण करने वाले बुद्ध जी द्वारा उपदिष्ट धर्म एवं तद्धर्मानुयायियों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था और लोग यह समझते थे कि वैदिक धर्म से अतिरिक्त यह नया धर्म है, परन्तु पुराणों के चैबीस अवतारों के प्रकरण में जब यह पढ़ा गया कि बुद्ध जी तेईसवां अवतार हैं, तब लोगों की समझ में आया, कि यह धर्म अपना धर्म ही है और बुद्ध जी तो अवतार ही हैं, तब वैदिक एंव बौद्धों का भेद दूर हो गया और आज बौद्ध भी वैदिक धर्मानुगत ही आते हैं। उसी प्रकार मोहम्मद साहब द्वारा प्रदर्शित सनातन धर्म तथा उनके अनुयायियों को देखकर यह लगता है यह तो वैदिक धर्म का उल्टा ही धर्म है, परन्तु चैबीस अवतारों के प्रकरण में भागवत पुराण में जब मैंने कल्कि को देखा तथा द्वादश स्कन्ध में उनके होने वाले वृत्तान्त को पढ़ा, तब मोहम्मद साहब से पूर्ण समानता मिली और मुझे विश्वास हो गया कि यही हैं कल्कि और उनके धर्म की बाढ़ तथा अनुयायियों की वृद्धि से तो अपना वैदिक धर्म की पुष्ट होता है। अभी न सही, जब इस बात का सबको ज्ञान हो जायेगा, तब मुसलमानों का इस्लाम धर्म या आस्तिकों का ईश्वराज्ञा पालन धर्म, भारत में प्रचलित वैष्णन, शैव, शाक्त, जैन तथा बौद्ध धर्म की भांति सभी लोगों द्वारा स्वीकृत होगा, तथा भारतीयों का और मुसलमानों वर्ग मिलकर एक बहुत बड़ा समाज बनेगा। लाठी डंडों की चोट से धर्म नहीं फैलता, अपितु लोगों को जब ईश्वर की कृपा से धर्म के सत्य स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, तो वे स्वयं श्रेष्ठ धर्म का आचरण करने लगते हैं। धर्म के जानकार का कत्र्तव्य है कि वह धर्म के सिद्धान्तों से लोगों को अवगत कराये, वे श्रद्धा उत्पन्न होने पर उसे स्वयं मानेंगे, दंगा करने पर थोड़े कोई मानता है। ईश्वरीय धर्म के प्रचारकों को तो शान्ति पूर्वक धर्म का प्रचार करना है। धर्म का सम्बंध वेषभूषा से नहीं है, धर्म को सम्बंध हृदय में सन्निहित उन विचारों से है, जिनसे जीवन की यात्रा सुचारू रूप से सम्पन्न हो।
प्रत्येक हिन्दू, भारतीय या इण्डियन को यह ज्ञात होना चाहिये कि केवल वे ही हिन्दू नहीं है, बल्कि यहां रहने वाले मुसलमान तथा ईसाई भी हिन्दू हैं, क्योंकि हिन्दू शब्द का अर्थ होता है कि जो हिन्दुस्तान में रहे।
मेरा मुसलमानों से भी अनुरोध है कि हिन्दू तथा हिन्दुस्तान शब्द उन्हीं की देन है, जिनका (हिन्दी) अर्थ ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है, अतः वे भी अपने को हिन्दू कहने में संकोच न करें। भारत में जो वर्ण व्यवस्था थी, वह कर्म से थी न कि जाति से, क्योंकि ‘वरणात् वर्णः जात्या जातिः’। वर्ण शब्द किसी भी पेशा को अपनाने से है। ईश्वराधन करने वाले तथा नित्य संयम से रहने वाले मुसलमान भी ब्राह्मण हैं, तथा ईश्वर पर विश्वास करने वाले भी मुसलमान अर्थात् आस्तिक हैं। मुसलमान का यह अर्थ नहीं कि खतना कराया सो मुसलमान और आस्तिक का यह अर्थ नहीं कि चोटी रखाई तो ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र। दाढ़ी आदि तो प्राचीनकाल में मुनि लोग भी रखते थे। भारत में ऊंच-नीच का भेद भाव जब तक दूर न होगा, समानता का व्यवहार जब तक न होगा, तब तक सुख एवं शान्ति सम्भव नहीं। इस विषय पर बाद में कोई दूसरी पुस्तक लिखूंगा क्योंकि इस शोधपात्र में इतना स्थान नहीं, कि हर एक बात आ सके।
सारस्वत-वेदान्त-प्रकाश-संध
एक ही धर्म के अनेकों टुकड़े हो गये हैं, जिससे धर्म का स्वरूप बिगड़ गया है। आवश्यकता है उन टुकड़ों के फिर जुड़ने की, और सतयुग के सम्पादन की।
ईश्वरीय वाणी वेदों और वेदान्त पर श्रद्धा उत्पन्न करना, इस्लाम धर्म एंव ईसाई धर्म का वैदिक धर्म से समन्वय व्यक्त करके समाज में एकता एवं एकेश्वरवाद का सन्देश देना, समाज के अन्तर्गत एवं धर्म रूपी दूध में पड़ी हुई अन्धविश्वास रूपी मक्खी को निकाल फेंकना, लकीर के फ़क़ीर एवं कूपमण्डूक लोगों को धर्म जीवन के सीमित दायरे से निकाल कर व्यापक धर्म का संसार दिखाना, धार्मिक कलहों को शान्त कराने के लिये लोगों में सद्भावना का प्रचार करना इस संघ का मूल उद्देश्य है।
इस संघ का राजनीति से कोई सम्बंध नहीं।
(वैदिकधर्म ईशाज्ञाधर्म और इस्लाम धर्म ईशाज्ञा-पालन धर्म में चीनी और उनकी मिठास का सम्बंध है। यदि वैदिक धर्म के एकेश्वरवाद का सन्देश है, तो इस्लाम धर्म में एकेश्वरवाद का पालन। प्रतीक्षा करें वैदिक धर्म एवं इस्लाम धर्म पुस्तक की)
Sir,
ReplyDeleteAlthough you have done a very hard work about Sanatan And Islam religion,but there are some basic things that are being confusing, like,in Sanatan dharm, a concept is 'Navdha Bhakti', means the god can be remembered by nine types.One of these type is 'Idol Worship',you must also agree with me, so If you say Muhammad is kalki,and everyone is free to remember the god,so if some people want,can they worship the Idol of Kalki OR Muhammad?A temple of kalki is already in U.P.can that temple be declared as the temple of Muhammad?
Second thing, one our vedas is Samveda, it is fully based on music, on the basis of this ,we hindus make Bhajans and songs for our god, so can we make bhajans for kalki oorf Muhammad?Well, Music is mostly banned in Islam.
And the third thing, In our Sanatan religion, there are many gods, but if see , they all are considered as only one.Ram is same,Sita is same,Hanuman is same,Krishan is same,Durga is same Meera is same, I am same ,you are same, so the 'Akeshwarvad'(Oneism) cane be seen very easily here, whereas in Islam, to be muslaim, it is necessary to agree with the fact that the allah only one and the Muhamah is his Prophet.Here, the allah is greater then everything but Muhammad is also considered as the most respected as allah,But there are no similarities between Muhammad and allah, but a muslim have to worship both of them.Except this, there are many people who are respected in Islam like 'Imamas','Imam Huisain' etc but they cannot be considered as the one,so, my conclusion is that the "Akeshwarvad' is only in us, not in 'Islam' , there is only 'Bahudev vad', am I right?
Please do clear all these facts so that I can reach at any better result.
my brother After Accepting this That The kalKi Autar Is muhammad S.A.W.S Then You Should Reject Sanatam Dharam And Fellow The Islam ...
DeleteRespectable vidhya sharma ji, allah aur muhammad alag alag hai, allah is dunya ka bnane wala h jiski hum pooja krte hai aur muhammad allah ka paigaam logo tk pahuchane wale hai na ki khuda hai, muhammad bhi insaan hi na ki koi devta ya farishta, hm muslim muhammad sahab ki pooja nahi krte hai balki sirf allah ki pooja krte h aur whi pooja k layak h.islaam k anusaar muhammad dunya m bheje gye pehle paigamber nahi hai balki inse pehle bhi bht sare paigamber is dunya m aaye jinhone khuda ka pigam logo tk pahuchaya.islaam k anusaar 1 lakh 24 hjar Nabi is dunya m aaye aur sbka paigaam islaam hi tha, is silsile k aakhiri nabi muhammad sahab hai aur inke bad koi paigamber nahi ayega... agar apko dhrmo ki hakikat k bare m jyada tafseel se janna h aur samjhna h ki kon haq pr h aur sbhi dhrmo me kya similarities hai to aap "pavitra ved aur islaam dharam" padhiye. Iske alawa bhi bht sari kitabe hai.
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