अन्तिम ऋषि
लेखकः
डॉ. वेदप्रकाश उपाध्याय
एम. ए. (इलाहाबाद), (एम.एन.यू. अमृतसर)
एल. एल. बी. डी. फिल. डी. लिट. (इलाहाबाद आचार्य)
वेद, दर्शन, धर्मशास्त्र, डिप. इन जर्मन, स्वर्ण पदक-प्राप्त,
रीडर, पंजाब यूनिवर्सिटी, चण्डीगढ़
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विषय-सूची
भूमिका - वेद प्रकाश उपाध्याय
अध्याय-1 -----नराशंस शब्द का अर्थ (वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप)
अध्याय-2 -----नराशंस के गुण और महत्व (वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप)
अध्याय-3 -----नराशंस की सिद्धि (वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप)
अध्याय-4 -----मूसा की पाँचवी अवतरित‘व्यवस्था-विवरण’पुस्तक के अनुसार
अध्याय-5 -----ईसा मसीह के शब्दों के अनुसार एलिय्याह से सम्बन्धित भविष्यवाणी अंतिम अवतारः वह ऋषि
अध्याय-6 ----- अन्तिम बुद्ध्-मैत्रेय
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भूमिका
ऐतिहासिक विषयों पर शोध करने की मेरी उत्कट अभिलाषा सदैव रहती है। वेदों में, बाइबिल में तथा बौद्ध् ग्रन्थों में अन्तिम ऋषि के रूप में जिसके आने की घोषणा की गई थी, वह मोहम्मद साहब ही सिद्घ होते थे, अतः मेरे अन्तःकरण ने मुझे यह प्रेरणा दी, कि सत्य को खोलना आवश्यक है, भले ही वह लोगों को बुरा लगने वाला हो। मोहम्मद साहब के पूर्व भारत तथा अरब के निवासियों का धर्म एक था, इस विषय से सम्बद्ध अनेक प्रमाण हैं, जिन्हें यहाँ निर्दिष्ट करना उपयुक्त नहीं। धर्म की संकुचित भावना का मैं पक्षपाती नहीं। कोई भी बात किसी भी स्थल में यदि उपयुक्त एवं उचित कही गई है, तो उसका बहिष्कार करने का मैं साहस नहीं करता। वेदों में बारह पत्नी वाले एक उष्ट्रारोही व्यक्ति के होने की भविष्यवाणी है, जिसका नाम 'नराशंस' है। 'नराशंस' का अर्थ सायण ने किया है, कि जो मनुष्यों द्वारा प्रशंसित हो ('नराशंस' यो नरैः प्रशस्यते--सायण भाष्य, ऋगवेद संहिता, 5/5/1) मेरे विचार इस स्थल में सायण से सहमत नहीं, क्योंकि मेरे मत से 'नराशंस' शब्द ऐसे 'नर' अर्थात व्यक्ति का सूचक है, जो प्रशंसित हो। 'मोहम्मद' शब्द 'नराशंस' का अरबी अनुवाद है प्रस्तुत पुस्तक में मैंने यथाशक्ति सत्य को उद् घाटित करने का प्रयत्न किया है। पाठकों से निवेदन है, कि पुस्तक पर अपने विचार अवश्य भेजें।
वेदप्रकाश उपाध्याय
माधव मास,
शुक्ल पक्ष द्वादशी,
तिथि, सं 2027
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प्रथम अध्याय
नराशंस शब्द का अर्थ
'नराशंस' शब्द 'नर' और 'आशंस' दो शब्दों से मिलकर बना है। 'नर' का अर्थ होता है मनुष्य और 'आशंस' का अर्थ होता है, 'प्रशंसित' यह स्मरणीय है, कि 'आशंस' शब्द वैदिक भाषा का शब्द है, न कि लौकिक भाषा का। 'नराशंस' शब्द का कुछ लोग अर्थ करते हैं- 'मनुष्य की प्रशंसा' तथा कुछ लोगों के अनुसार 'नराशंस' शब्द का अर्थ होता है- 'मनुष्यों द्वारा प्रशंसित'। प्रथम अर्थ षष्ठी तत्पुरूष समास से निकलता है तथा दूसरा अर्थ तृतीया तत्पुरूष समाज से निकलता है। विचारणीय यह है, कि वास्तव में 'नराशंस' शब्द का क्या अर्थ होगा? तृतीया तत्पुरूष या षष्ठी तत्पुरूष से निष्पन्न अर्थ संगत नहीं है क्योंकि 'नराशंस' के सूत्रों में किसी विशेष व्यक्ति की प्रशंसा है, अतः जिसकी प्रशंसा का बोध होगा। 'नराशंस' शब्द कर्मधारय समास है, जिसका विच्छेद 'नरश्चासौ आशंसः' अर्थात 'प्रशंसित मनुष्य' होगा, इसलिए 'नराशंस' शब्द से किसी देवता को भी न समझना चाहिये। 'नराशंस' शब्द स्वतः ही इस बात को स्पष्ट कर देता है, कि 'प्रशंसित' शब्द जिसका विशेषण है, वह मनुष्य है। यदि कोई 'नर' शब्द को देववाचक माने, तो उसके समाधान में इतना स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि 'नर' शब्द न तो देवता का पर्यायवाची शब्द ही है, और न तो देवयोनियों के अन्तर्गत कोई विशेष जाति।
देवजाति- देवताओं की दस जाति हैं-
विद्याधर, अप्सरस, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, किन्नर, पिशाच, गुहाक, विद्ध और भूत।
1. विद्याधर- देवताओं की यह जाति अधिक विद्वान होती है। विद्या को धारण करने के ही कारण तो इनका नाम विद्याधर पड़ा है।
2. अप्सरस्- जल पर से विचरण करने के कादण इन्हें ' अप्सरस' कहा जाता है।
3. यक्ष- जिनकी पूजा की जाती है, वे यक्ष कहे जाते हैं।
4. राक्षस- जो लोग इन्हें मानते हैं, उनकी यह अन्य देवों से रक्षा करते हैं।
5. गन्धर्व- यह केवल गन्ध को ही पसन्द करते हैं।
6. किन्नर- ये मनुष्यों के आकार में सदा रहते हैं, परन्तु जब चाहते हैं, तब अपना रूप भी बदल लेते हैं। ये बहुत ही बुरे देव हैं।
7. पिशाच- ये अन्य प्राणियों को मारकर उनका मांस खा जाते हैं।
8. गुहाक- ये बहुस सी निधियों को रखते हैं, और उनकी रक्षा करते हैं। इनके अधिकार में बहुत से कोषागार रहते हैं, जो पृथ्वी या पर्वतों में छिपे रहते हैं।
9. सिद्ध- ये परमेश्वर के समीप सदा रहते हैं। इन्हें परमेश्वर की सिद्धि प्राप्त होती है। ये जो कुछ कह देते हैं, सब सत्य हो जाता है। ये कभी असत्य नहीं बोलते। ये बहुत ही अच्छे देव हैं। इन्हें सिद्धियां प्राप्त रहती हैं। ये कभी बहुत छोटा रूप बना लेते हैं, कभी ये पर्याप्त भार से युक्त हो जाते हैं तथा कभी बिल्कुल ही हल्के हो जाते हैं।
10. भूत- ये कल्याणकारी होते हैं तथा अपने कल्याण के लिये प्रयत्न भी करते रहते हैं। इन्हें भूति (ऐश्वर्य, विभूति, कल्याण) की आकांक्षा एवं प्राइज़ होती है।
नराशंस का मनुष्यत्व- 'नराशंस' शब्द देवजातियों में न होकर मनुष्य जाति में 'प्रशंसित' के लिये हैं। 'नर' शब्द का अर्थ मनुष्य होता है, क्योंकि 'नर' शब्द मनुष्य के पर्यायवाची शब्दों में एक है।
नराशंस की व्यापकता
‘नराशंस’ के विषय में लौकिक संस्कृत ग्रंन्थों में कुछ भी सामग्री उपलब्ध नहीं होती। वैदिक ग्रन्थों में ही ‘नराशंस’ के विषय में स्थान-स्थान पर मन्त्र आये हैं। ‘नराशंस’ के विषय में संहिता ग्रन्थों में पर्याप्त मन्त्र उपलब्ध हैं। अथर्ववेद संहिता के बीसवें काण्ड के एक सौ सताइसवें सूक्त में ‘नराशंस’ की प्रशस्ति पर चौदह मन्त्र निर्दिष्ट हैं।ऋग्वेद सभी वेदों में प्राचीनतम वेद है। ऋग्वेद में भी अनेक स्थानों पर ‘नराशंस’ विषयक मन्त्र है। ऋग्वेद के अन्तर्गत ‘नराशंस’ शब्द से प्रारम्भ होने वाले मन्त्रों की संख्या आठ है। ऋग्वेद प्रथम मण्डल, तेरहवें सूक्त, तीसरे मन्त्र और अठारवें सूक्त, नवें मन्त्र तथा एक सौ छः सूक्त चौथे मन्त्र में ‘नराशंस’ का वर्णन आया है। ऋग्वेद के द्वितीय मण्डल के तीसरे सूक्त, दूसरे मन्त्र, पाँचवे मण्डल के पाँचवे सूक्त, दूसरे मन्त्र, सातवें मण्डल के दूसरे सूक्त, दूसरे मन्त्रा, दसवें चौसठवें सूक्त, तीसरे मन्त्र और एक सौ बयालीसवें सूक्त, दूसरे मन्त्र में भी ‘नराशंस’ विषयक वर्णन आये हैं। सामवेद संहिता के तेरह सौ उन्चाववें मन्त्र में तथा वाजसनेयी संहिता के उन्तीसवें अध्याय के सत्ताइसवें मन्त्र में भी ‘नराशंस’ विषयक वर्णन उप्लब्ध होता है। ‘नराशंस’ विषयक विषयक वर्णन (3/6/3/1) में भी मिलता है। शतपथ ब्राह्मण के प्रथम काण्ड के अन्तर्गत दर्शपौर्णमासेष्टि के अनुष्ठान के अवसर पर पंच प्रयाजों में ‘नराशंसप्रयाजयाग’ का भी उल्लेख है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है। ‘नराशंस’ केवल एक वेद तक सीमित नहीं, अपितु ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी व्याप्त है।
‘नराशंस’ का काल निर्धारण
किसी व्यक्ति विशेष को अधिकृत करके जब किसी ग्रंथ में उसका वर्णन किया जाता है, तब वह व्यक्ति विशेष ग्रंथ रचना के पूर्वकाल में रहता है, अन्यथा ग्रंथ में व्यक्ति विशेष का वर्णन आने की सम्भावना नहीं, यदि उपर्युक्त सिद्धान्त से कोई विद्वान यह निष्कर्ष निकाले कि नराशंस का स्थिति काल वेदों के अवतरण के भी पूर्व था तो यह निष्कर्ष अथर्ववेद के बीसवें काण्ड के अन्तर्गत एक सौ सत्ताइसवें सूक्त के प्रथम मन्त्र से ही अवरुद्ध हो जाता है कि ‘नराशंस’ वेदावतरण के पूर्व नहीं, अपितु वेदावतरण के बाद की स्थिति में स्तुत्य होता है। ब्रह्म वाक्य में कहा गया है कि हे लोगो, सुनो- ‘नराशंस’ की प्रशंसा की जायेगी। उपर्युक्त बह्म वाक्त अथर्ववेद का है, और अथर्ववेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद से बहुत बाद का वेद है, अतः अथर्ववेद के काल के बाद तो ‘नराशंस’ की उत्पत्ति हो होना निश्चित हुआ। ‘नराशंस’ के वाहन के रूप में ऊँट का प्रयोग उल्लिखित है, अतः ‘नराशंस’ की उत्पत्ति का होना उस समय निश्चित है, जब ऊँटों की सवारी के रूप में प्रयोग हो।
स्थान निर्धारणः ‘नराशंस’ के स्थान-निर्धारण करने के विषय में न तो बाह्म प्रमाण उपलब्ध होते हैं और न तो कोई अन्तरप्रमाण! स्थान-निर्धारण के बिना नराशंस के उत्पत्ति-स्थान का ज्ञान भी असम्भव है, इसलिए नराशंस के स्थान के विषय में कुछ न कुछ विचार प्रस्तुत करना आवश्यक ही है। जब ‘नराशंस’ का स्थान-निर्णय किया जा रहा है। नराशंस सवारी के रूप में ऊँट के प्रयोग करेगा। कोई भी व्यक्ति सिद्धान्त रूप में जिस देश, काल या वातावरण में जन्म लेता है, उस देश की भाषा, वेषभूषा तथा सवारी का प्रयोग भी करता है। ऊँट की सवारी करने का तात्पर्य यह है कि नराशंस जिस स्थान पर पैदा होगा वहाँ ऊँटों की की प्रचुरता रहेगी। ऊँटों की प्रचुरता प्रायः उन्हीं स्थानों में होती है, जो रेगिस्तानी भू-भाग होते हैं। इस प्रकार स्थान-निर्णय का निरूपण करते हुए हम इस तथ्य पर पहुंचते हैं कि नराशंस रेगिस्तानी भू-भाग में उत्पन्न होगा, जहाँ ऊँट प्रचुर मात्रा में उपयोगी हों।
द्वितीय अध्याय
नराशंस के गुण और महत्त्व
वेदों में जितने भी मन्त्र आए हैं सभी प्रायः परमेश्वर के गुणों पर प्रकाश डालते हैं। कुछ ही मन्त्र ऐसे हैं जो अन्य विषयों से सम्बन्धित हैं। नराशंस की महत्ता इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि उसकी स्तुति की जायेगी। ऋग्वेद काल में भी यज्ञों को करते समय नराशंस का आह्नान किया जाता रहा है। आह्नान किए जाते समय उसे ‘प्रिय’ शब्द से युक्त किया गया है। नराशंस की वाणी की मधुरता को लक्षित करके उसे ऋग्वेद में साक्षात् ‘मधुजिह्न’ भी कहा गया है।1
परोक्ष ज्ञान-मधुजिह्न अर्थात् मधुरभाषिता के अतिरिक्त नराशंस का सर्वाधिक विशेष गुण परोक्ष ज्ञान बताया गया है। परोक्ष ज्ञान से युक्त व्यक्ति को कवि कहा जाता है। कवि की प्रतिमा विलक्षण होती है। जहाँ पर सूर्य और चन्द्र की तथा देवताओं की भी पहुँच नहीं होती, वहाँ तक जो पहुँच जाता है और आध्यात्मिक जगत् का जो सम्राट होता है, उसे कवि कहा जाता है। ‘क’ का अर्थ ईश्वर होता है, ‘क’ अर्थात ईश्वर से जिसका सम्बन्ध होता है, ईश्वर को जो विशेष रूप से जानता है, उसे भी कवि कहा जाता है। शब्द-कोशों में कवि के अर्थ बहुत से दिए गए हैं। प्रतिभावान, चतुर, बुद्विमान, विचारयुक्त, प्रशंसनीय और सन्त आदि। ऋग्वेद में नराशंस को कवि बताया गया है। ‘कवि’ का एक अर्थ ‘कविता करने वाला’ भी होता है।
सुन्दर-कान्तिः नराशंस के विषय में उसके महत्व का प्रतिपादक ‘स्वर्चि’ शब्द ऋग्वेद में प्रयुक्त हुआ है। स्वर्चि शब्द का विच्छेद है- ‘शोभना अर्चिर्यस्य यः’ अर्थात् सुन्दर दीप्ति या कान्ति से युक्त। ‘अर्चि’ शब्द का अर्थ होता है--दीप्ति, और ‘सु’ का अर्थ होता है- सुन्दर। ‘स्वर्चि’ शब्द का अभिप्राय यह है, कि इतने सुन्दर स्वरूप का व्यक्ति, जिसके आनन से रश्मि भी भासित हो रही है। ऋग्वेद के जिस मन्त्र में नराशंस को स्वर्चि कहा गया है, उसी स्थान में उसके विषय में यह भी स्पष्ट रूप से बता दिया गया है, कि वह अपने महत्व से घर-घर को प्रकाशित करेगा। अर्थात् ऐसा कोई घर नहीं होगा, जहाँ नराशंस की प्रशंसा न की जाए। ऐसी स्थिति में नराशंस नाम का अर्थ भी घटित हो जाएगा, क्योंकि नराशंस शब्द का अर्थ ही यह होता है-ऐसा मनुष्य जो प्रशंसित हो। नराशंस के विषय में जो ‘प्रतिघामान्यज्जन!’ आया है, उसमें ‘अज्जन’ शब्द प्रकाशन अर्थ वाली ‘अज्ज’ धातु में ‘शतृ’ प्रत्यय के संयोग से बना है। ‘प्रतिघामानि’ का अर्थ स्पष्ट ही है- प्रत्येक घरों को’। यदि कोई यह शंका करे कि ‘अग्नि’ शब्द भी तो ‘अन’ धातु से बना है, जो प्रकाशक होने के साथ ही साथ जला देने वाला भी है, तो नराशंस के विषय में ‘अज्ज’ धातु से निष्पन्न ‘अज्जन्’ शबद का प्रयोग करना यह स्पष्ट करता है कि नराशंस प्रत्येक घरों को जलाकर भस्म कर देगा तो यह शंका अनुपयुक्त है, क्योंकि जो शब्द जिस स्थल में प्रयुक्त होता है, उस स्थल के अनुरूप ही अपने अर्थ को भी अभिव्यक्त करता है। यदि शब्दों के प्रयोग के विषय में स्थल का औचित्य न देखा जाए तो महान् अनर्थ की प्राप्ति होगी। जैसे- भोजन करते समय कोई कहे ‘सैन्धव लताओं’ तो स्थल के अनुरूप ‘सैन्धव’ के ‘नमक’ अर्थ को ही ग्रहण करना चाहिए न कि ‘घोड़े’ अर्थ को ओर यात्रा करते समय ‘सैन्धव’ शब्द से ‘घोड़े अर्थ को समझना चाहिए न कि ‘नमक’ अर्थ को। प्रकाश अन्धकार को दूर करने के लिए होता है। आध्यात्मिक रूप में ‘प्रकाश’ शब्द ‘ज्ञान’ के लिए और ‘अन्धकार’ शब्द ‘अज्ञान’ के लिए प्रयुक्त होता है। नराशंस के विषय में उसकी आध्यात्मिकता को ‘कवि’ शब्द से सूचित किया गया है, इसलिए प्रकाश का तात्पर्य नराशंस के विषय में ज्ञान से है। ‘घर-घर को प्रकाशित करने’ का तात्पर्य घर-घर में ज्ञान को प्रसारित करने से है। इस प्रकार नराशंस को ऋग्वेद में ‘ज्ञान का प्रसारक’ कहा गया है।
पापों का निवारक-- नराशंस को ‘सम्पूर्ण पापों से लोगों को अलग करने वाला’ बताया गया है। जिसके अंदर जो गुण होता है उससे उसी गुण को अन्यों को प्रदान करने के लिए कहा जाता है। मन्त्रों का साक्षात्कार करने वाले कुत्स आडिरस ऋषि नराशंस को यह अनुनय करते हैं, कि वह आकर सम्पूर्ण लोगों को पापों से अलग करें। उक्त मन्त्र से यह सूचित होता है, कि पुरातन काल के ऋषियों के अन्तःकरण में नराशंस के प्रति कितना अनुराग था, कि वे इस बात की अपने अन्दर तीव्र अभिलाषा करते थे कि नराशंस आकर लोगों को पापों से निवारित करे। यदि कोई उक्त मन्त्र में यह शंका करे कि ‘विश्वस्मात्रो अंहसो निष्पिपर्तन’ का अर्थ तो होता है कि ‘सम्पूर्ण पापों से हमें फिर पार उतारो’ लोगों को पापों से अलग करने की बात को क्यों अर्थ के रूप में व्यक्त किया जा रहा है, तो इसका समाधान यह है कि वेदों में जो मन्त्र हैं, वे लोगों द्वारा किए जाने वाले प्रार्थना मन्त्र या पाठ-मन्त्र हैं, न कि ऋषियों द्वारा स्वयं अपने कल्याण के लिए बनाए गए मन्त्र क्योंकि वेद अपौरूषेय हैं और वेदों को कोई बना नहीं सकता, किन्तु वेद लोगों के कल्याण करने के लिए ईश्वर द्वारा ऋषियों के माध्यम से अभिव्यक्त किए गए हैं, इसलिए ‘नो अंहसो निष्पिपर्तन’ का अर्थ लोगों को पापों से निवारण करने को सूचित करता है।
नराशंस प्रयाजयाग--सन्तान और पशु आदि की सम्पत्ति के प्रपित्सु लोगों द्वारा तनूनपात्प्रयाज के स्थान में नराशंस का प्रयाजयाग करना चाहिए। नराशंसप्रयाज का अर्थ है-उसके लिए प्रयाजयाग जो लोगों में प्रशंसित है। नराशंस प्रयाजयाग में आज्य अग्नि में ‘ये यजामहे’ नराशंसो अग्न आजय वेतु 3 वो 3 षट’ मन्त्र पढ़कर छोड़ा जाता है। उपर्युक्त मन्त्र में नराशंस को लागों में प्रशंसित, कीर्ति की ज्योति से युक्त तथा आज्य का प्रेमी कहा गया है।
नराशंस का स्वरूप- कोई मनुष्य जब प्रशंसित होता है, तो उसकी प्रशंसा का कारण उस व्यक्ति में निहित गुणों का समुदाय है, जिसके कारण वह प्रशंसा का पात्र बनता है। दुष्टों की प्रशंसा उनको प्रसन्न करके कुछ स्वार्थ-साधन के लिए भले ही कोई कर दे, परन्तु स्वाभाविक रूप से दुष्ट व्यक्ति प्रशंसा के पात्र न होकर निन्दा के ही पात्र होते हैं। यह आवश्य ही कहा जा सकता है कि ‘दृष्टों की दुष्टता की प्रशंसा की जहाँ तक की जाये, वह कम ही है’, उपर्युक्त् वाक्य में ‘प्रशंसा’ शब्द भी निन्दा के अर्थ में अभिव्यक्त हुआ है। पुरुष को प्रशंसित करने के लिए आठ गुण होते हैं जो क्रमशः प्रज्ञा, कुलीनता, इन्द्रिय दमन, श्रुति ज्ञान, पराक्रम, अबहुभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता है। लोगों के अन्तःकरण में वास्तव में वही स्थान प्राप्त कर सकता है, जो जन-विद्वेषी न हो, धर्म का अनुरागी हो, प्रशंसनीय कर्म करे, निन्दित कर्मों को न करे, नास्तिक न हो और क्रोध, हर्ष, दर्प, लज्जा, जड़ता, एवं अपने को बड़ा समझने की भावना जिसके ऊपर अपना अधिकार न कर सके। नराशंस को पहचानने के लिए अथर्ववेद में कुछ निश्चित बातें बताई गई हैं, जो प्रस्तुत हैं।
1. सवारी के रूप में ऊँट का प्रयोग करने वाला--- अथर्ववेद में नराशंस के होने की भविष्यवाणी के अनन्तर उसके द्वारा सवारी के रूप में ऊँटों के उपयोग की बात अभिव्यक्त की गई है।1
2. बारह पत्नियों वाला---नराशंस के पास बारह पत्नियाँ होंगी, इस बात की पुष्टि भी अथर्ववेद के उसी मन्त्र से होती है, जिस मन्त्र में उसके द्वारा सवारी के रूप में ऊँट के प्रयोग करने की बात का उल्लेख है।
3. सौ निष्कों से युक्त--- निष्क का अर्थ होता है--स्वर्ण मुद्रा। स्वर्ण मुद्राएँ आपत्ति काल में मनुष्य को बहुत सहयोग देती है। नराशंस को ईश्वर की ओर से सौ निष्क प्रदान किये जाने का उल्लेख है।
4. दस मालाओं वाला--- मालाएँ गले का हार रहती हैं। ‘गले का हार’ का अर्थ अत्यधिक प्रिय के लिए प्रयुक्त किया जाता है। नराशंस के लिए दस मालाएँ ईश्वर की प्रेरणा से प्रदान किए जाने का उल्लेख अथर्ववेद के बीसवें काण्ड के एक सौ सत्तइसवें सूक्त, तीसरे मन्त्र में हुआ है।
5. तीन सौ अर्वन् से युक्त--- नराशंस को तीन सौ अर्वन् की प्राप्ति होगी, इस बात का उल्लेख भी अथर्ववेद के उपर्युक्त मन्त्र मे हुआ है।
6. दस हजार गो से युक्त---ईश्वर की ओर से नराशंस को दस हज़ार गो प्रदान किए जाएँगे।
अब हम अगले अध्याय में यह प्रमाणित करेंगे कि नराशंस की उत्पत्ति हुई या नहीं। यदि उत्पत्ति हुई तो नराशंस कौन थे।
तृतीय अध्याय
नराशंस की सिद्वि
1. नामगत सिद्धि---‘नराशंस’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ प्रथम अध्याय में बतलाया जा चुका है। अर्थ की दृष्टि से स्पष्ट है कि ‘नराशंस’ शब्द व्युत्पत्तिजन्य अर्थ से निर्दिष्ट किसी व्यक्ति विशेष के लिए आया है जो यह स्पष्ट करता है कि वह उत्पन्न होने वाला व्यक्ति, जिसके विषय में वेदों में भविष्यवाणी की गई है, नर= मनुष्य होगा और साथ ही साथ आशंस= प्रशंसित भी होगा। उपर्युक्त कारण से हमें ऐसे व्यक्ति को प्रमाणित करना है, जो मनुष्य भी हो और वह प्रशंसित भी हो। ‘मुहम्मद’ शब्द ‘हम्द्’ = ‘प्रशंसा करना’, धातु से बना हुआ है, जिसका अर्थ ‘प्रशंसित’ होता है। मुहम्मद(स.) साहब मनुष्य भी थे, अतः उनमें नरत्व और आशंसत्व दोनों गुण घटित हो जाते हैं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि ‘नराशंस’ शब्द अरबी में ‘मुहम्मद’ शब्द से अभिहित व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है। जिस प्रकार ‘जल’ शब्द जिस विशेष पदार्थ का बोध कराता है और वाटर तथा ‘आब’ व ‘वास्सेर’ शब्द भी उसी पदार्थ का बोध कराते हैं, परन्तु अन्तर केवल यही है कि ‘जल’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है और ‘वाटर’ अंग्रेज़ी भाषा का, ‘आब’ फ़ारसी भाषा का तथा ‘वास्सेर’ जर्मन भाषा का शब्द है, जो एक ही पदार्थ का बोध कराते हैं, उसी प्रकार ‘नराशंस’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है और ‘मुहम्मद’ अरबी भाषा का शब्द है, जो एक ही व्यक्ति विशेष के बोधक हैं। अब देखना यह है कि क्या ‘नराशंस’ के विषय में जो बातें कही गई हैं, वह मुहम्मद (सल्ल.) पर घटित होती है, अथवा नहीं।
2. कालगत सिद्धि---नराशंस की उत्पत्ति का होना उस समय बताया गया है, जबकि ऊँटों का सवारी के रूप में उपयोग हो। मुहम्मद (सल्ल.) साहब भी उसी समय उत्पन्न हुए थे जबकि ऊँटों का सवारी के रूप में प्रचुर मात्रा में उपयोग हो रहा था। स्वयं मुहम्मद (सल्ल.) ऊँट की सवारी के अत्यधिक प्रेमी थे। मुहम्मद (सल्ल.) ऊँट में चढ़कर मदीना पहुंचे थे।1
3. स्थानगत साम्य---नराशंस का जन्म-स्थान ऐसे स्थल में बताया गया है जो रेगिस्तानी भू-भाग हो। मुहम्मद (सल्ल.) मक्का मे उत्पन्न हुए थे।1 मक्का ऐसा स्थान है, जो रेगिस्तानी भू-भाग है।
4. गुणगत साम्य--- (क) नराशंस के लिए ऋग्वेद में प्रिय शब्द का प्रयोग हुआ है। मुहम्मद (सल्ल.) भी सभी को प्रिय थे।
(ख) नराशंस को परोक्ष ज्ञाता भी बताया गया है। मुहम्मद (सल्ल.) को भी परोक्ष की बातों का ज्ञान होता था। इस विषय में एक ऐतिहासिक प्रमाण इनायत अहमद की ‘अलकलामुल्मुबीन’ नामक पुस्तक में है, कि रोमियों और ईरानियों के युद्ध में रोमियों के पराजित हो जाने की घटना अपनी परोक्ष- दर्शिता से मुहम्मद (सल्ल.) ने अपने मित्रों से बताई थी तथा पुनः एक फरिश्ते से नव वर्ष के अन्दर ही रोमियों को होने वाली विषय का समाचार जानकर उसे बतलाया था। इस भविष्यवाणी के बाद नव वर्ष के अन्दर ही नैनवा की लड़ाई में रोमियों की विजय 627 ई. में हुई थी। इसी विषय से सम्बन्धित ‘सूरे रूम’ नाम क़ुरआन की 30वीं सूरत उतरी है। इसी बात को क़ुरआन की सूरः रूम की दूसरी से लेकर चौथी आयत तक में इस प्रकार कहा गया है कि रोमियों की जाति पराजित हो गई। इस अरब की भूमि के निकट ही वे लोग अपने पराजित हो जाने के बाद भी वास्तव में नव वर्षों के अन्दर- अन्दर विजयी होंगे। ईश्वर के हाथ में सारा कृत्य पूर्ववर्ती और परवर्ती दोनों हैं। यह मुहम्मद (सल्ल.) की परोक्ष-दर्शिता का स्वतः प्रमाण है।
(ग) नराशंस को वेदों में ‘कवि’ = कविता करने वाला भी बताया गया है, और कवि = ईश्वर को जानने वाला भी। मुहम्मद (सल्ल.) को भी ‘शायर’ कहा जाता था। ‘शायर’ अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है-ज्ञाता। ईश्वर को जानने वाले मुहम्मद (सल्ल.) थे, क्योंकि ये ऋषि थे। ईश्वर का सन्देशवाहक होने के ही कारण तो इन्हें ‘नबी’ कहा जाता था। ‘नबी’ शब्द अरबी का शब्द है, जो नबा धातु से बना है। ‘नबा’ का अर्थ होता है-सन्देश, और उस धातु से निष्पन्न शब्द ‘नबी’; का अर्थ होता है- सन्देश देने वाला।
(घ) ऋग्वेद में नराशंस को अधिक स्वरूप वाला और घर-घर में ज्ञान की ज्योति जलाने वाला बताया गया है। मुहम्मद (सल्ल.) भी अत्याधिक सुन्दर थे। उनकी सुन्दरता को देखकर लोग उनकी ओर खिंच जाते थे। उनकी आकर्षक शक्ति के विषय में रेवरेंट बासवर्थ स्मिथ ने ‘मूहम्मद एण्ड मुहामेडनिज्म’ नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ में उल्लेख किया है, कि मुहम्मद (सल्ल.) के विरोधी भी उनकी आकर्षण शक्ति तथा उनकी गरिमा से प्रभावित होकर उनका सम्मान करने को बाध्य हो जाते थे। विरोधियों की अत्याधिक संख्या एवं प्रबलता के होने पर भी मुहम्मद (सल्ल.) ने ज्ञान के प्रकाश को घर-घर में फैलाने का प्रयत्न किया। डा. ताराचन्द ने ‘इन्फ़्लुएन्स आफ़ इस्लाम आन इण्डियन कल्चर’ नामक ग्रन्ध की भूमिका में लिखा है, कि मुहम्मद (सल्ल.) के पास ईश्वरीय वाक्य आने लगा, और वह पृथ्वी पर ईश्वर के सन्देष्टा बन गए और अरब के लोगों के धार्मिक गुरु बन गए।
(ड.) नराशंस को पापों से हटाने वाला भी कहा गया है। सामान्यतया कुछ लोग अधर्म को भी धर्म समझकर उसका पालन करते हुए देखे जाते हैं। ऐसे अधार्मिक लोगों को नराशंस उनके द्वारा किए जाते हुए पापों से रोकेगा, तथा भविष्य में पाप न करने के लिए प्रेरित करेगा। जो लोग पाप किए रहते हैं, यदि वे उसकी क्षमा याचना ईश्वर से नहीं मांगते हैं तो भविष्य में पुनः पाप करने के आशंका रहती है। मुहम्मद (सल्ल.) ने केवल लोगों को पापों से दूर रहने के लिए नहीं प्रेरित किया, अपितु ईश्वर से क्षमा याचना करने के लिए भी उत्साहित किया, ताकि लोगों को अपने किए हुए पापों के कारण नरकगामी न होना पड़े। यह मोहम्मद साहब की शिक्षा का ही प्रभाव है कि लोगों में जो मुहम्मद (सल्ल.) के अनुयायी हैं, आज भी शराब का पीना, ब्याज लेना आदि निषिद्ध है। दूसरों की सम्पत्ति का लोभ न करने का भी उपदेश मुहम्मद (सल्ल.) साहब ने दिया है। कुरआन में धन आदि को महत्व न देकर आध्यात्मिकता को महत्व दिया गया है।1
5. पत्नीगत साम्य---अथर्ववेद में नराशंस को बारह पत्नियों वाला बताया गया है। मोहम्मद साहब की भी बारह पत्नियाँ थीं। उनकी बारह पत्नियों में पहली का नाम ‘ख़दीजा’ था। ख़दीजा खुवैलिद की पुत्री थीं। मुहम्मद (सल्ल.) साहब की दूसरी पत्नी का नाम ‘सौदः’ था, जो ‘जमअः’ की पुत्री थीं। तीसरी पत्नी का नाम ‘आयशः’ था जो अबूबक्र की पुत्री थीं। चौथी पत्नी ‘हफ़्शः’ थी, जो उमर की पुत्री थीं। पाँचवी पत्नी का नाम ‘जैनब’ था, जो ‘ख़ज़ीमः’ की पुत्री थीं। छठीं पत्नी का नाम ‘उम्मे सलमः’ था जो अबीउमय्य- की पुत्री थीं। सातवीं पत्नी का नाम भी ‘जैनव’ था जो ‘हजश’ की पुत्री थीं। आठवी पत्नी का ‘जुबैरियः’ नाम था जो ‘हारिस’ की पुत्री थीं। नवीं पत्नी का नाम ‘रैहानः’ था, जो यजीद की पुत्री थीं। दसवीं पत्नी का नाम ‘उम्मे हबीबः’ था जो ‘अबी सुफ़ियान’ की पुत्री थीं। ग्यारहवीं पत्नी का नाम ‘सफ़ियः’ था जो ‘हैबी’ की पुत्री थीं। ‘मैमूनः’ मुहम्मद (सल्ल.) साहब की बारवहीं पत्नी थीं, जो ‘हारिस’ की पुत्री थीं। इस प्रकार नरांशस के विषय में कही गई बात, जो उनकी पत्नियों के विषय में थी, मुहम्मद (सल्ल.) साहब के ऊपर पूर्ण-रूपेण घटित हुई। किसी भी प्रसिद्ध व्यक्ति, जो धार्मिक प्रकृति का रहा हो, के बारह पत्नियाँ नहीं थीं। मुहम्मद (सल्ल.) साहब ही ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिनकी पत्नियों की संख्या बारह थी। इस प्रकार नराशंस के विषय में कही गई बात मुहम्मद (सल्ल.) साहब के ही ऊपर घटित होती है।
अन्य बातों में साम्य--- अथर्ववेद में अन्योक्ति अलंकार के माध्यम से नराशंस के विषय में कुछ बातें बताई गई हैं, जिनकी तुलना मुहम्मद (सल्ल.) साहब से दी जा रही है। नराशंस के लिए दस हज़ार गो ईश्वर द्वारा प्रदान किए जाने का उल्लेख अथर्ववेद में है। ‘गो’ अलंकारिक शब्द है। गो शब्द सामान्यता अच्छे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है। उदाहराणस्वरूप ‘नरपुन्डव’ शब्द ‘मनुष्यों के अच्छे’ व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है। ‘पुन्डव’ शब्द का विग्रह है, ‘पुंक्षु गौः’ अर्थात् मनुष्यों में गौ अर्थात् श्रेष्ठ या अच्छा। मुहम्मद (सल्ल.) साहब द्वारा दी जाने वाली शिक्षाओं के पालनकर्ता उसके जीवन काल के अन्तिम भाग में दस हज़ार थे। वे मुहम्मद (सल्ल.) साहब के अनन्य सहयोगी थे। मक्का को जीतने के उद्देश्य से जब मुहम्मद (सल्ल.) साहब मक्का की ओर मदीने से प्रस्थान कर रहे थे, तो उनके साथ रहने वाले सहायकों की संख्या दस हज़ार थी। मुहम्मद (सल्ल.) साहब के दस हज़ार शिष्य जब मक्का में पहुंचे, तो न तो वहाँ किसी प्रकार का युद्ध हुआ और न तो मुहम्मद (सल्ल.) साहब के किसी शिष्य ने किसी को कष्ट ही दिया, इसी कारण से उन दस हज़ार शिष्यों को ‘गौ’ कहा गया।
नराशंस के विषय में यह भी वेदों में उल्लेख है कि नराशंस को तीन सौ ‘अर्वन’ की प्राप्ति होगी। ‘अर्वन’ भी अलंकारिक शब्द है। ‘अर्वन्’ का अर्थ घोड़ा होता है। घोड़ा बहुत ही तेज गमन करने वाला तथा युद्ध में अत्याधिक उपयोगी होता है। तीन सौ अर्वन् का तात्पर्य यह है कि तीन सौ से अधिक और चार सौ से कम संख्या में अर्वन् का होना। जिस प्रकार ‘सत्पतशी’ शब्द का अर्थ होता है ऐसा ग्रंन्थ जिसमें सात सौ या उससे अधिक, परन्तु आठ सौ से कम पद्यों का संग्रह हो, उसी प्रकार ‘तीन सौ अर्वन्’ का अर्थ तीन सौ या उससे अधिक, परन्तु चार सौ से कम संख्या में अर्वन् का होना निश्चित है। ‘अर्वन’ शब्द वीर यौद्धाओं के लिए प्रयुक्त शब्द है। मुहम्मद (सल्ल.) साहब के सहयोगियों की संख्या तीन सौ थी।
अथर्ववेद में नराशंस के लिए दस स्रक् प्रदान किए जाने का उल्लेख है। दस मालाएँ भी अन्योक्ति के माध्यम से दस ऐसे प्रिय व्यक्तियों की ओर संकेत करती है, जो नराशंस के गले के हार के समान हों और नराशंस उन्हें बहुत चाहता हो। मुहम्मद (सल्ल.) साहब के भी दस ऐसे व्यक्ति थे, जो उन पर अपने प्राणों को भी समर्पित करने में तुले थे। मुहम्मद (सल्ल.)साहब के चारों ओर वे दसों व्यक्ति सदैव रहते थे, इसलिये वे मुहम्मद साहब के गले के हार थे। उन दसों व्यक्तियों के नाम ये हैं-- अबूबक्र, उमर, उस्मान, अली, तल्हा, जुबैर, अबू इसहाक, अबुल आवर, अबू मोहम्मद अब्दुर्रहमान, अबू उबैदः।
1. अबूबक्र---ये उस्मान के पुत्र थे, और मुहम्मद (सल्ल.) साहब के पहले ख़लीफ़ा थे।
2. उमर---द्वितीय ख़लीफ़ा के रूप में हमारे समक्ष उमर का नाम आता है जो ख़त्ताब के पुत्र थे।
3. उस्मान---अफ़्फ़ान के पुत्रा उस्मान तीसरे ख़लीफ़ा थे।
4. अली---ये अबी तालिब के पुत्र थे और चौथे ख़लीफ़ा थे।
5. तलहा---युद्ध में बड़े वीर थे। इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह था।
6. जुबैर---इनके पिता का नाम अव्वाम था। ये भी बहुत बड़े योद्धा थे।
7. अबू इस्हाक़---इनके पिता का नाम अबी वुक्क़ास था। य भी बहुत बड़े वीर थे।
8. अबुल् आवर---ये अब्दुर्रहमान के पुत्र थे।
9. अबू मोहम्मद अब्दुर्रहमान---इनके पिता का नाम ‘औफ़’ था।
10. अबू उवैद---इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह था।
उपर्युक्त दसों व्यक्ति सभी युद्धों में मुहम्मद (सल्ल.) साहब की सहायता करते थे, एवं विरोधियों के प्रहारों से उनकी रक्षा करते थे। इस प्रकार दस की माला के रूप में ये दसों व्यक्ति ‘अशरःमुवश्शरः’ कहे जाते थे, इन्हें मुहम्मद (सल्ल.) साहब स्वर्गीय (जन्नती) कहा करते थे।
अथर्ववेद में नराशंस के लिए सौ निष्क ईश्वर द्वारा प्रदान किए जाने का उल्लेख है। निष्क स्वर्ण मुद्राओं को कहा जाता है। स्वर्ण-मुद्राएँ या निष्क शब्द उन श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त है, जो रत्नवत् महत्त्वशाली हों। ईश्वरीय धर्म के प्रचारकों को एवं मूल धर्म के सुरक्षकों को भी ‘निष्क’ शब्द से व्यवहृत किया जाता है। इसका कारण यह है कि ‘निष्क बहुत ही मुल्यवान होता है, और मूलधर्म के संरक्षक या गुरू द्वारा उपदेशित शिक्षाओं के संरक्षक का भी अत्यधिक महत्व होता है। मुहम्मद (सल्ल.) साहब जिन शिक्षाओं को लोगों को लिए प्रदान कराते थे, उनकी शिक्षा की रक्षा भी करते थे, तथा अन्यों को भी इन शिक्षाओं से अवगत करते थे। ये असहाबि सुफ़्फ़ः कहलाते थे।
इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि वेदों में जिस नराशंस के होने की भविष्यवाणी की गई है, वह मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं।
अध्याय 4
अभारतीय धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार नराशंस
पहले के तीन अध्यायों में वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है, अब अभारतीय धार्मिक ग्रन्थें के अनुसार जिस ऋषि की ओर संकेत दिया गया है, उसका स्वरूप प्रस्तुत हैः
मूसा की पाँचवी पुस्तक के अनुसारः--- मूसा के ऊपर अवतरित ‘व्यवस्था-विवरण’ नामक पुस्तक में एक ऐसे ऋषि के होने की भविष्यवाणी की गई है जो मूसा के ही समान हो और उसके भाइयों के मध्य से हो। उस ऋषि के मुख में ईश्वरीय वचन के प्रवेश की बात सोने के अतिरिक्त ईश्वरीय आदेशों को प्रसारित करने की बात का प्रतिष्ठापान भी मूसा की पुस्तक में हुआ है।
उपर्युक्त भविष्यवाणी से होने वाले ऋषि के विषय में अधोलिखित बातें ज्ञात होती हैं---
1. मूसा के समान होना।
2. मूसा के भाइयों के मध्य से होना
3. ईश्वरीय वचनो को प्राप्त करके उन्हें प्रसारित करना।
1. मूसा के समान कौन और क्यों? --- अब यह देखना है कि कौन ऐसा ऋषि है जो मूसा के समान रहा हो। कुछ ईसाइयों के अनुसार उपर्युक्त भविष्यवाणी ईसा मसीह के लिए हुई थी परन्तु इस मत को स्वीकृति करने में अधोलिखित बाधाएँ हैं---
(क) मूसा ने धर्म प्रचार कें व्याधात करने वाले मिस्र-सम्राट फ़िरौन के पक्ष के एक मनुष्य को मार डाला था, इसका तात्पर्य यह है कि धर्म-व्याधातकारियों को दमन करना मूसा को अभीष्ट था। ईसाने किसी भी विरोधी को दमन नहीं किया, अपितु यह विरोधियों द्वारा ही शूली में चढ़वा दिए गए।
दूसरी बात यह है कि मूसा की जाति के लोग मूसा के ऋषि होने के पहले उनके जीवन-काल में मूर्ति पूजा आदि में फंसे हुए थे। ईसा की जाति वाले ईसा के ऋषि होने के पहले उनके जीवन काल में मूर्ति-पूजा में नहीं फंसे थे।
तीसरी बात यह है कि अपने जीवन काल में मूसा ने जिस प्रकार अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त की, उस प्रकार ईसा ने स्व-जीवन काल में विरोधियों पर विजय नहीं पाई, अपितु वे विरोधियों द्वारा ही पराभूत हो गए।
चौथी बात यह है कि मूसा को अपने अनुयायियों द्वारा धोखा नहीं दिया गया, जबकि ईसा मसीह को अनके अनुयायियों में से एक ने धोखा दे दिया।
पाँचवी बात अंतर की यह है कि मूसा माता-पिता से उत्पन्न हुए थे। स्त्री एवं सन्तान से युक्त थे। ईसा मसीह तो बिना पिता के ही उत्पन्न हुए थे1 तथा उनके न तो कोई स्त्री थी और न तो कोई पुत्र ही था।
छठी बात अन्तर की यह है कि मूसा अपने जाति वालों को और अपने अनुयायियों को फ़िरौन की परतन्त्रता से मुक्त कराकर, उन्हें लेकर अपना देश छोड़कर अन्य देश को चले गए, परन्तु ईसा मसीह अपने जीवन में रोमन सरकार से अपने अनुयायियों व जाति वालों को नहीं मुक्त करा सके।
सातवीं बात अंतर की यह है कि मूसा ने अपनी जाति के लोगों को एवं अनुयायियों को पैलेस्टाइन पर अधिकार करने के लिए लड़ने का आदेश दिया था, जिसके फलस्वरूप मूसा के अनुयायियों के पैलेस्टाइन पर अधिकार हो गया था, परन्तु ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों को युद्ध करने के लिए कभी आदेश नहीं दिया।
आठवीं बात अंतर की यह है कि मूसा को ईश्वरीय विधान प्राप्त हुआ था। मूसा के विधान का नाम ‘लेविटिकस’ है। ईसा मसीह ने किसी भी नई व्यवस्था को नहीं स्थापित किया, अपितु उन्होंने स्पष्ट कह दिया था कि वह पुरातन विधान की पृष्टि के लिए आए थे और कोई नया विधान लेकर नहीं आये थे।1
नवीं बात अंतर की यह है कि मूसा बनी इस्राईल के नेता थे तथा बहुत ही उत्कृष्ट जीवन बिताते थे। ईसा मसीह तो अपने जीवन काल में अपनी जाति के नेता नहीं थे। ईसा को केवल बारह मनुष्यों ने अपना धर्म-गुरू तथा धर्म-नेता माना थ, जिसमें से एक ने इन्हें धोखा देकर गिरफ़्तार भी करा दिया था, इससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि ईसा मसीह के अनुयायी भी उनके प्रति श्रद्धा नहीं रखते थे।
दसवीं बात अंतर की यह है कि मूसा दीधार्यू में मरे थे। ईसा मसीह तो अल्पायु में ही मर गए थे।
अंतर की ग्यारहवीं बात यह है कि मूसा की मृत्यु के बाद उनसे पूर्व आदिष्ट ख़लीफ़ा ने पैसेस्टाइन और सीरिया पर विजय प्राप्त की थी परन्तु ईसा मसीह के विषय में ऐसी कोई भी बात नहीं घटित हुई। इस प्रकार ईसा मसीह उस ऋषि के पद पर खरे नहीं उतरते हैं जिसके लिए मूसा ने भाविष्यवाणी की थी। ईसा मसीह मूसा के समान नहीं थे, यह बात उपर्युक्त ग्यारह तर्कों से पुष्ट हुई।
अब देखना यह है कि क्या मुहम्मद साहब मूसा के समान थे? धर्मप्रसार में विध्न उपास्थित करने वालों के दमन करने वालों के दमन करने में मुहम्मद साहब मूसा के ही समान थे।
दूसरी समता यह थी कि मुहम्मद साहब के जन्म लेने से पहले उनके देश के लोग मूर्ति-पूजा में बहुत ही बुरी तरह से उसी प्रकार फंसे हुए थे, जिस प्रकार मूसा के जन्म लेने से पहले मूर्ती पूजा का अधिपत्य था।
समता की तीसरी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा ने अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त की, उसी प्रकार मुहम्मद साहब ने भी अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त की।
समता की चौथी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा को अनुयायियों द्वारा धोखा नहीं दिया गया, उसी प्रकार मुहम्मद साहब को भी उनके अनुयायियों द्वारा धोखा नहीं दिया गया।
समता की पाँचवी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा अपने माता-पिता से उत्पन्न हुए थे और सन्तान तथा स्त्री से युक्त थे, उसी प्रकार मुहम्मद साहब भी अपने माता-पिता से उत्पन्न हुए थे। मुहम्मद साहब ईसा मसीह की तरह कुंवारी के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुए थे। मुहम्मद साहब के पास भी मूसा की तरह पत्नी व संतान थी। ईसा मसीह की तरह मुहम्मद साहब विवाह के
बंधन से मुक्त न थे।
समता की छठी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा ने अपने जाति वालों के और अनुयायियों को फ़िरौन के कारागार से मुक्त किया था, उसी प्रकार मुहम्मद साहब ने भी अपने जाति वालों और अनुयायियों को विपक्षियों के पंजे से मुक्त किया था।
समता की सातवीं बात यह है कि जिस प्रकार मूसा की आज्ञा से उनके अनुयायियों ने उनकी मृत्यु के बाद पैलेस्टाइन और सीरिया को मूसा के ख़लीफ़ा के निर्देशन में विजित किया, उसी प्रकार मुहम्मद साहब की आज्ञा से पैलेस्टाइन और सीरिया को उनके अनुयायियों ने उनके ख़लीफ़ा उमर के निर्देशन में जीता।
आठवीं बात समता की यह है कि जिस प्रकार मूसा को ईश्वरीय विधान प्राप्त हुआ था, उसी प्रकार मुहम्मद साहब को भी एक नई व्यवस्था प्राप्त हुई थी।
नवीं बात समता की यह है कि मूसा जिस प्रकार अपने जाति के धार्मिक नेता थे, उसी प्रकार मुहम्मद साहब भी अपनी जाति के नेता थे। मुहम्मद साहब ईसा मसीह की तरह नेतृत्वहीन नहीं थे।
दसवीं बात समता की यह है कि मूसा दीर्घायु में मरे थे। ठीक मूसा की ही तरह मुहम्मद साहब भी दीर्घायु में ही मरे थे।
इस प्रकार मूसा की तुलना मे मुहम्मद साहब ही उपयुक्त हैं, ईसा मसीह नहीं।
मूसा के भाईयों में से होना---मूसा के ऊपर अवतरित ईश्वर वाक्य के अनुसार वह ऋषि जो अन्त में आने वाला था, मूसा के भाइयों में से होगा, इस बात की पुष्टि भी मूसा की पाँचवी पुस्तक से होती है। मूसा के भाइयों में से होने का तात्पर्य यह है कि मूसा की संतान-परंपरा से न होकर वह उसके बन्धु वर्ग की वंश-परम्परा में से होगा। बाइबल के पुराने नियम के अन्तर्गत मूसा की पाँचवी पुस्तक ड्यूटेरानोमी के अनुसार यह सिद्ध होता है कि इस्राइल में मूसा की तरह पुनः कोई ऋषि नहीं होगा, जिसको ईश्वर के समक्ष अभिमुख होकर बात करने की सामर्थ्य प्राप्त हो। यद्यपि बाइबल के अनुसार अंतिम ऋषि के विषय में भूतकाल का प्रयोग हुआ है परन्तु वह भविष्य काल का द्योतक है। इस प्रकार वैदिक संस्कृत में ‘लुड्. लड्. लिटः’ सूत्र से भूतकाल सभी कालों में प्रयुक्त किए जा सकते हैं, उसी प्रकार क़ुरआन की भाषा का भी यही नियम है कि भविष्य में आने वाली बातों को भूतकाल में रखा गया है। बाइबल के अनुसार भी इस स्थल पर भविष्य काल की बात का उल्लेख भूतकाल में हुआ है। यदि इस सिद्धांत को न माना जाये तो सबसे बड़ी आपत्ति यह होगी कि मूसा के जीवित रहते हुए उसके ऊपर अवतरित ग्रन्थ में यह किसी भी प्रकार से नहीं कहा जा सकता, कि मूसा के समान कोई नहीं हुआ।
मूसा के भाइयों में से मुहम्मद साहब जिस सम्बन्ध से घटित होते हैं, उसका वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है। अब्राम, जो पितामह कहे जाते हैं, उनकी दो प्रधान संतानें थीं। इब्राहीम की पहली पत्नी का नाम सारै था, जिसके कोई भी संतान न थी। सारै की अनुनय पर अब्राम ने मिस्रदेशीया हाजिरा को पत्नी रूप मे स्वीकार कर लिया। कुछ समय बाद उससे इस्माइल नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। जिस समय इस्माइल का जन्म हुआ, उस समय अब्राम की आयु छियासी वर्ष की थी। सारै को जब इसहाक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, उस समय सारै की आयु नब्बे वर्ष की, और अब्राम की आयू सौ वर्ष की थी। निन्यानवे वर्ष की आयु में परमेश्वर ने अब्राम को यह वचन दिया कि वह अब्राम के वंश की पर्याप्त उन्नति करेगा। ईश्वर की वाणी सुनकर अब्राम ने ईश्वर को प्रणिपात किया, जिसे ‘इस्लाम धर्म’ के अन्तर्गत सजदः कहा जाता है। परमेश्वर से अब्राम का वार्तालाप कनान देश में हो रहा था, जहाँ अब्राम (इब्राहीम) परदेसी होकर रहता था। कनान को आजकल ‘पैलेस्टाइन’ कहा जाता है। परमेश्वर ने अब्राम को यह वचन दिया कि मैं तुझको और तेरे बाद तेरे वंश को भी यह सारा कनान देश जिसमे तू परेदेसी होकर रहता है, इस रीति से दूंगा कि वह युग-युग उनकी निज-भूमि रहेगी।1 बाइबल के पुरातन नियम के अनुसार यह सिद्ध होता है कि अब्राम को भविष्य पुराण मे अविराम कहा गया है, तथा कुरआन में इब्राहीम। अब्राम का इब्राहीम नाम तब से पड़ा, जब से ईश्वर ने अब्राम को जातियों के समूह का मूल पिता होने का वर दिया। पैलेस्टाइन में इब्राहीम की संतानों का अधिकार सर्वदा रहेगा। इस ईश्वरीय वाक्य से इतना तो स्पष्ट ही है, कि पैलेस्टाइन में रहेगा अधिकार तो इब्राहीम की संतानों का ही, चाहे वह जिस वर्ग की हों। इब्राहीम के इस्माइल नामक पुत्र की परम्परा के अन्तर्गत अरब की निवासियों का वर्ग आता है, और इस्माइल के सौतेले भाइ इस्हाक के वेश परम्परा में यहूदी लोग आते हैं। सौतेले भाइयों का पारस्परिक द्वेष ही अशान्तिमय होता है तो फिर सौतेले भाइयों की वंश-परंपरा में उत्पन्न होने वाले लोगों को पारस्परिक द्वेष-भाव का क्या कहना? यही कारण है कि पैलेसटाइन में अपने प्रभुत्व स्थापित रखने के उद्देश्य से अरब के लोग और यहूदी लोग परस्पर लड़ते रहते हैं। यह सौतेले भाइयों की वंश परम्परा में उत्पन्न हुए लोगों के पारस्परिक वैमनस्य की आग तब तक ठंडी नहीं हो सकती, जब तक कि वे परस्पर यह न समझ लें कि पैलेस्टाइन पर उन सभी का अधिकार है, जो इब्राहीम की वंश परम्परा में आते हैं।
इब्राहीम के प्रथम पुत्र इस्माइल की वंश-परम्परा संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत हैः
इस्माइल के पुत्रा का नाम क़ीदार था। क़ीदार के कई पीढ़ी बाद अदनान हुए। अदनान की कई पीढ़ी बाद कुरैश हुए और उनकी कई पीढ़ी बाद अब्दिमनाफ़ हुए। अब्दिमनाफ़ के बाद हाशिम, उनके बाद अब्दुलमुत्तलिब और अब्दुल्मुत्तलिब के बाद अब्दुल्लाह हुए, जिनके पुत्र मुहम्मद साहब थे।
इब्राहीम के द्वितीय पुत्र इसहाक की वंश-परम्परा का क्रम इस प्रकार हैः
इसहाक के बाद याकूब (इस्राइल), याकूब के बाद यहूदा तथा यहूदा की कई पीढ़ी के बाद मूसा हुए।
इस प्रकार यह स्पष्ट है, कि इब्राहीम के दो पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र की वंश परम्परा में मुहम्मद साहब आते हैं, और छोटे पुत्र इस्हाक की वंश परम्परा में मूसा आते हैं। मुहम्मद साहब मूसा के बन्धुओं में से थे, अतः मूसा पर अवतरित ब्रह्म वाक्य मुहम्मद साहब पर भी घटित होता है, यद्यपि मुहम्मद साहब यहूदियों में से नहीं थे, परन्तु इस्माइल के वंश में से थे। इस्माइल के छोटे भाई इसहाक़ के वंश में से मूसा थे। इस प्रकार मुहम्मद साहब का मूसा के बन्धु वर्ग में से होना तर्क संगत एवं उपयुक्त सिद्ध हुआ।
3. मूसा के ऊपर अवतरित ईश्वरीय वाणी के अनुसार जिसके भविष्य में होने की सूचना मूसा की पाँचवी पुस्तक ड्यूटेरानामी में दी गई है, वह मुहम्मद साहब ही थे। इस बात की पुष्टि भावी ऋषि पर ईश्वरीय वाक्यों के अवतरण से सम्बद्ध सिद्धांत से होती है। मुहम्मद साहब पर ईश्वरीय वाक्यों का अवतरण पवित्र आत्मा के सन्निकर्ष से हुआ। भावी ऋषि के विषय में मूसा का धर्मग्रन्थ यह कहता है कि वह ईश्वरीय आज्ञाओं का प्रसारक होगा। रेवरेण्ट बासवर्थ स्मिथ की पुस्तक ‘मुहम्मद एण्ड मुहम्मदेनिज्म’ में इस बात का स्पष्ट उल्लेख कि मुहम्मद साहब पर ईश्वरीय वाक्य अवतरित होता था, जिसको उन्होंने ‘क़ुरआन’ नामक ग्रन्थ के रूप में संकलित करके लोगों में प्रसारित किया है। मुहम्मद साहब ने वास्तव में ईश्वरीय आदेशें को ही प्रसारित किया। यदि मुहम्मद साहब मिथ्या ही ऋषि बने होते तो असत्य का प्रसार ईश्वर को साक्षी देकर किये होते तो मुहम्मद साहब जीवित न रहते, जैसा कि मूसा की पाँचवी पुस्तक में कहा गया है कि जिसके विषय में भविष्यवाणी की जा रही है, यदि उसके स्थान में कोई अन्य व्यक्ति ही अपने को ईशदूत बताकर लोगों को भ्रम में डालने का प्रयास करेगा, और असत्य बातों को प्रसारित करेगा तथा उसकी प्रसारित बातें असत्य सिद्ध होंगी, तो वह वास्त में लोगों द्वारा मार डाला जाएगा, तथा भावी महर्षि न माना जाएगा। महर्षि को पहचानने के लिए सबसे बडा साधन यह है कि यदि कोई अपने को ऋषि बताये और उसकी बात पूर्णरूपेण सत्य सिद्ध हो, तो उसे ऋषि मानना चाहिए, अन्यथा उसे ऋषि न मानना चाहिये और न ऐसे मिथ्याडम्बर युक्त व्यक्ति से भयभीत ही होना चाहिए।
मुहम्मद साहब पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि न तो मुहम्मद साहब ने अल्पायु में ही मृत्यु का आलंगिन किया और न तो वे लोगों द्वारा अकाल मृत्यु का ग्रास बनाये गये। ईश्वरीय बातों का प्रसार करने के उपलक्ष्य में मुहम्मद साहब के ऊपर दुष्ट लोगों द्वारा अनेकों आपत्तियों का प्रहार किया गया, परन्तु फिर भी मुहम्मद साहब सत्य के प्रसार से विचलित न हुए। कुछ परिस्थितियों में मुहम्मद साहब पर प्राण संकट भी आ गया, परन्तु ईश्वर ने उनकी रक्षा की। मुहम्मद साहब के लिए ईश्वर की ओर से यह प्रेरणा भी हुई कि वह किसी बात की चिन्ता न करें, क्योंकि ईश्वर उनका रक्षक है, अतः उन्हें धर्म प्रसार के व्याघातकारियों द्वारा दिये जा सकने वाले मृत्यु का भय नहीं है। यही कारण था कि मुहम्मद साहब ने निर्भयता-पूर्वक ईश्वरीय आदेशों को, जो ब्रह्म के रूप में उनके ऊपर अवतरित होते थे, प्रसारित करना प्रारम्भ कर दिया।
अब मुहम्मद साहब की बातों की सत्यता का प्रमाण प्रस्तुत किया जा रहा है।
मुहम्मद साहब ने जब धार्मिक प्रसार में अग्रसर होने का कर्म प्रारम्भ किया, तो मक्के के लोग विरोधी हो गये और परस्पर उन्होंने यह प्रतिज्ञापत्र लिखा, कि वे मुहम्मद साहब को अपनी जाति से बहिष्कृत कर देंगे। प्रतिज्ञापत्र में सभी वर्ग के लोगों के हस्ताक्षर हुए। प्रतिज्ञापत्र मक्का के शिवालय में लटका दिया गया था। मुहम्मद साहब अबू तालिब की घाटी में रहते थे, जो दो पहाड़ियों के बीच में थी। जिस स्थान में मुहम्मद साहब बहिष्कृत होने की अवस्था में रहते थे, वह स्थान शिवालय से तीन मील की दूरी पर था। तीन वर्ष जब मुहम्मद साहब को वहां रहते हुए व्यतीत हो गये, तब उन्होंने अपने पितृव्य अबूतालिब से मक्का वालों को कहला भेजा, कि प्रतिज्ञापत्र को तो अब दीमक चाट गये हैं, इसलिए प्रतिज्ञापत्र निरर्थक हो गया। अबू तालिब ने मक्का वालों से कहा कि अब मुहम्मद साहब को अपने वर्ग में सम्मिलित कर लेना चाहिए, क्योंकि प्रतिज्ञापत्र भी नष्ट हो चुका है, और मुहम्मद साहब को बहिष्कृत करना भी बहुत बुरी बात है। लागों ने स्वीकार कर लिया, कि यदि प्रतिज्ञापत्र नष्ट हो चुका होगा तो अवश्य मुहम्मद साहब को बहिष्कृत नहीं किया जायेगा, अन्यथा उन्हें इसी स्थिति में रहना पड़ेगा। जब प्रतिज्ञापत्र देखा गया तो परमेश्वर के नाम को छोड़कर शेष भाग लुप्त हो चुका था, इसलिए मुहम्मद साहब को मिला लिया गया। यह मुहम्मद साहब के बात की सत्यता का ही प्रमाण है कि तीन वर्ष तक लोगों से बहिष्कृत रहकर भी उन्होंने प्रतिज्ञापत्र के दीमक द्वारा चाट जाने की बात बतादी।
दूसरी घटना यह है कि मुहम्मद साहब ने यह एक भाविष्यवाणी की थी कि अरब के हिजाज प्रान्त में एक ऐसी अग्नि प्रज्जवलित होगी, जिसके प्रकाश में बसरा नगर की पहाड़ियाँ दृष्टिगत होंगी। मुहम्मद साहब के देहान्त के तैंतालिस वर्ष बाद सन् 54 हिजरी में मदीना से कुछ दूरी पर यह अग्नि प्रज्जवलित हुई, और काफी समय तक रही। तीसरी घटना की सत्यता का भी निरिक्षण करें, मुहम्मद साहब ने उस्मान को देखकर एक दिन कहा, कि यह लोगों द्वारा प्रहार किये जाने पर वीरगति को प्राप्त होंगे, इस बात का उल्लेख बुखारी की हदीस मे है। मुहम्मद साहब के देहान्त के चैबीस वर्ष बाद यह घटना सत्य प्रमाणि हई। एक बार मुहम्मद साहब ने अली से बताया था, कि तुम एक व्यक्ति के द्वारा सिर में प्रहार खाकर मर जाओगे, और रक्त तुम्हारी दाढ़ी को सिक्त कर देगा। मुहम्मद साहब की मृत्यु के तीस वर्ष बाद इब्नि मुल्जिम खारिजी ने अली के सर के ऊपर प्रहार किया जिससे रक्त बहकर उनकी दाढ़ी को भिगोने में समर्थ हुआ। एक बार मुहम्मद साहब प्रवचन कर रहे थे। उसी समय उनके बड़े नाती हसन भी उसी मंच पर चढ़कर बैठ गये। मुहम्मद साहब ने बताया कि मेरा यह बालक एक दिन बहुत बड़ा नायक बनेगा, और मुसलमानों के दो बड़े विरोधी वर्ग में मेल करा देगा। मुहम्मद साहब की मृत्यु के तीस वर्ष बाद सन् 40 हिजरी में जब हसन स्वयं ख़लीफ़ा थे, और अमीर मोआवियः से लड़ रहे थे, आपने उनसे मेल कर लिया, जिससे मुसलमानों में अपार आनन्द छा गया और हर्षातिरेक से यह स्वयं भी प्रफुल्लित हो गये।
मुहम्मद साहब की सत्यता से सम्बन्धित एक ओर घटना पर दृष्टिपात करना उचित है, जब मुहम्मद साहब मदीना जा रहे थे तो कुरैश ने इनको पकड़ने के लिए पुरस्कार निधार्रित किया।
जिससे पुरुस्कार के लोभ में आकर सुराका नामक एक व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर उन्हें खोजता हुआ पीछा करने लगा। मुहम्मद साहब ने सुराका को देखकर भूमि से कहा कि ‘ऐ भूमि इसे पकड़ ले।’ इतने पर सुराके के घोड़े के पैर भूमि में घुटने तक धंस गये। घबराकर सुराका ने मुहम्मद साहब की अनुनय की, तब घोड़ा मोहम्मद साहब की इच्छा के अनुसार भूमि में धँसने की स्थिति से बाहर हो गया। इसी प्रकार तीन बार होने के बाद सुराका ने प्रतिज्ञा की कि वह मुहम्मद साहब की बात किसी से नहीं कहेगा, और न मुहम्मद साहब को धोखा देगा। मुहम्मद साहब के चमत्कारों को देखकर सुराका बहुत ही प्रताभिव हुआ, और मुहम्मद साहब से अनुनय की कि मुझे आप एक वचन दें, जिससे मैं आपके राज्य होने पर सभी प्रकार की हानियों से परिवार सहित बचा रहूँ। मुहम्मद साहब ने स्वीकृति देते हुए उससे यह कहा, कि ऐ सुराका! तुम्हारी उस दिन क्या गति होगी जिस दिन ईरान के सम्राट किसरा के स्वर्णमय कंकड़ तुम्हारें हाथों मे पहनायें जाएंगे। मुहम्मद साहब के देहान्त के पाँच ही वर्ष के अन्दर सन् 165 हिजरी में दूसरे ख़लीफ़ा उमर के समय में साद सेनापति के द्वारा ईरान का सम्राट मारा गया, और वहाँ का बहुत सा सामान लूटा जाकर मदीना में लाया गया। उमर ने सब सामान स्ववर्गों में वितरित कर दिया, और कंकड़ को देखकर सुराका ने कहा, कि मुहम्मद साहब की वह भविष्यवाणी जो उन्होंने मेरे विषय में की थी, आज पूर्ण हुई, जिसे सुनकर उमर को भी मुहम्मद साहब की बात का स्मरण हुआ।
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि मुहम्मद साहब जो कुछ बताते थे, वह दैनिक जीवन में भी सत्य सिद्ध होता था, अतः जिसके विषय में मूसा ने भविष्यवाणी की है, वह मुहम्मद साहब ही थे, अन्य कोई नहीं, क्योंकि मूसा के समान मुहम्मद साहब थे, मूसा की बिरादरी में भी थे, तथा जो बातें बताते थे, सब सत्य हो जाती थीं।
अध्याय 5
वह ऋषि
अन्तिम ऋषि के विषय में अनेक प्रकार से भाविष्यवाणी की गई है। कहीं अंतिम ऋषि को किसी नाम से व्याहृत किया गया है, तो कहीं किसी नाम से। इन नामों की विविधरूपता को देखकर व्यक्ति के अंदर इस संशय का आना असम्भव नहीं, कि यदि एक ही ऋषि को लक्ष्ति करके भविष्यवाणियाँ हुई हैं, तो एक ही नाम सभी भविष्यवाणियों में आना चाहिए था, परन्तु ऐसा नही है, इसलिए भिन्न-भिन्न नामों से व्याहृत होने वाले भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के आने की सूचना उन भविष्यवाणियों में है। उपर्युक्त संशय का समाधान प्रस्तुत है। व्यक्ति विशेष के गुणों के आधार पर उसे अनेक उपाधियों से विभूषित किया जा सकता है, जो उसके नाम का स्थान ग्रहण कर लेती है। उदाहरणस्वरूप विष्णु को ही लीजिए-- वे पीला वस्त्रा धारण करते हैं इसलिए उन्हें पीताम्बर कहा जाता है। वह लक्ष्मी के पति हैं, इसलिए उन्हें लक्ष्मीपति कहा हाता है। वे चक्र धारण करते हें, इसीलिए उन्हें चक्ररी कहा जाता है। शंकर जी त्रिशूल धारण करते हैं, इसीलिए उन्हें त्रिशूली कहा जाता है। वे वृषम अर्थात् बैल की सवारी करते हैं, इसीलिए उन्हें वृषभवाहन कहा जाता है। सरस्वती की ही लीजिए---वे वीणा बजाती हैं, इसीलिए उन्हें वीणावादिनी कहा जाता है। वह ज्ञान और विद्या के सरोवरों से युक्त हैं इसलिए उन्हें सरस्वती कहा जाता है। इसी प्रकार अन्तिम ऋषि के विषय में जिस स्थान में जो वर्ण हुआ है, वह उस देश की भाषा में हुआ है, जिस देश की भाषा में ग्रन्था है, अतः उस देश की भाषा के अनुसार व्युत्पति - जन्य अर्थ उस नाम पर घटित होगा, जो नाम ऋषि का दिया गया है।
कुछ स्थलों में तो केवल ऋषि को वह कहा गया है। अब देखना यह है, कि जिस ऋषि को वह कहा गया है, वह कौन सा ऋषि है, और उसके विषय में क्या-क्या भविष्यवाणी हुई हैं? पहले हम भविष्यवाणियों को पूर्ववर्ती ऋषियों के मुख से प्रस्तुत कर रहे हैं--
यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। और मैं पिता से विनती करूंगा और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पितार मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुमसे कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।’ मैं अबसे तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है।3 परन्तु अब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। ‘तो भी मै। तुमसे सच कहता हूँ कि मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।’ परन्तु जब वह अर्थात सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आने वाली बातें तुम्हें बताएगा।
‘मैं तो पानी से तुम्हें मन-फिराव का बपतिस्म देता हूँ, परन्तु जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझसे शक्तिशाली है, मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।' उसका सूत्र उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उसे आग से जलाएगा जो बुझने की नहीं।'
भावी भविष्यद्वक्ता जिस जाती में पैदा होगा, इस विषय पर भी ईसा- मसीह के वचन ये हैं-- इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आएगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा? उन्होंने उससे कहा, वह उन लोगों की बुरी रीति से नाश करेगा, और दाख की बारी का ठीका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।’ ‘इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर का राज्य तुमसे ले लिया जाएगा, और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।’
उपर्युक्त भविष्यवाणियों के पहले तीन भविष्यद्वक्ता ऋषियों की प्रतीक्षा थी। प्रताक्षित ऋषियों में प्रथम था एलिय्याह और दूसरा था यीशु मसीहा। तीसरे ऋषि को वह ऋषि नाम से व्यवहृत किया गया है। सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर लेना आवश्यक है, कि प्रथम दो ऋषि हुए अथवा नहीं, क्योंकि दोनें के बाद ‘वह ऋषि’ का आविर्भाव निश्चित है।
1. एलिय्याहः-- ईसामसीह के पहले एलिय्याह के आने की भविष्यवाणी की गई थी। एलिय्याह ही यूहन्ना के रूप में प्रकट हुआ था, जैसा कि ईसा- मसीह ने स्वयं कहा है, कि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि एलिय्याह आ चुका, और उन्होंने उसे नहीं पहचाना, परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया। एलिय्याह के जीवनकाल में भी ईसा मसीह ने लोगों को सचेत किया था, कि युहन्ना नही एलिय्याह हैं! ईसा मसीह के शब्दों के अनुसार एलिय्याह से सम्बन्धित भविष्यवाणी यह हैः
‘यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यवाणी करते रहे। और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आने वाला था, वह यही है। जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।’
यूहन्ना ने राजा हेरोदास को इस बात के लिए कहा था, कि हेरोदास अपने भाई फिलिप्यूस की पत्नी को अपनी पत्नी के रूप में न प्रयुक्त करे। हेरोदियास जो पहले फिलिप्पुस की पत्नी थी, उसकी अनुमति से उसके तत्काल नियुक्त पति महोदय हेरोदोस ने यूहन्ना को कारागार में डाल दिया था। यूहन्ना ने राजा को हेरोदियास से विवाह करने के लिच मना किया था, अतएव हेरोदियास यूहन्ना को मरवा डालने के चिन्ता में सदा कोई न कोई उपाय खोजती रही थी। यूहन्ना की धार्मिकता और पवित्राता से प्रभावित होने के कारण राजा हेरोदोस उससे भयभीत था, और उसे सुरक्षित रखे हुए था, तथा यूहन्ना के प्रवचन सुन-सुनकर आनन्दित होता था। अपने जन्मदिन के उत्सव को मनाने की उत्कण्ठा से राजा हेरोदोस ने अपने प्रधानों कां एवं विश्ष्टि लोगों को भोजनार्थ निमन्त्रित किया। उसी दिन हेरोदियास की पुत्री ने अपनी नृत्यकला से राजा हेरोदोस को मुग्ध कर लिया, उससे विवश होकर राजा होरोदास ने लड़की से कहा, कि मेरे आधे राज्य तक भी जो कुछ तू मांगेगी, उसे प्रदान करने के लिए मैं सहर्ष उद्यत हूँ। लड़की ने अपनी माँ से पूछकर यूहन्ना के सिर को राजा से थाल में रखकर लाने का वर माँगा। राजा वचनबद्ध था, अतएव न चाहते हुए भी उसे ऐसा करना पड़ा। यह सत्य ही है, कि कुछ स्त्रियाँ अपने प्रेम के मार्ग की दीवार को भी गिरा देती हैं, तथा इतनी निर्दय होती हैं कि महात्माओं के जीवन को भी तृण के समान नगण्य समझती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि यूहन्ना ही एलिय्याह था, जिसके तत्काल बाद ईसा मसीह हुए। वैसे तो दोनों समकालीन थे, परन्तु जीवन-यात्रा के प्रसंग में परवर्ती ईसा-मसीह ही घटित होते हैं।
(2) यीशु मसीह-- इन्होंने ही इस बात की साक्षी दी थी, कि यूहन्ना ही एलिय्याह है। ये मरियम के पुत्र थे। इनकी माँ ने इन्हें कुमारावस्था में ही जन्म दिया था। इनके कोई पिता न थे। ईश्वर ने इन्हें वह शक्ति प्रदान की थी, जिसके प्रभाव के कारण वे रोगियों का स्पर्श करके भी उन्हें स्वस्थ कर देते थे। इनके उपदेश इतने प्रभावोत्पादक होते थे कि सुनने वाले भय से घबड़ा जाते थे। इनकी महत्ता को हूण देश वासियों ने नहीं समझा। भारत के राजा शकराज जो विक्रमादित्य के पौत्र थे, जब हूण देश के मध्य भाग में पहुंचे तो पर्वत में बैठे हुए, श्वेतवस्त्रों से अलंकृत एक पुरुष को देखा। उनसे शकराज ने पूछा कि आप कौन हैं, और आपका धर्म क्या है? तब इन्होने बताया कि मैं ईसा मसीह हूँ, और मेरा धर्म वैदिक जप को आश्रित करके निर्मलान्तःकरण होकर परमेश्वर का ध्यान करना है। उक्त स्थान में अपने आने का कारण भी ईसा मसीह यह बताते है कि सत्य के नष्ट हो जाने पर तथा मलेच्छदेश के मर्यादा से हीन हो जाने पर मैं मसीह यहाँ आया हूँ। अपने नामकरणर के विषय में ईसा मसीह यह बतलाते हैं, कि नित्य शुद्ध, कल्याण करने वाले परमेश्वर का ध्यान मैं सदैव करता हूँ, इसलिए मेरा नाम ईसा मसीह है। इतने बड़े महात्मा एवं धर्मोंपदेशक के संहार के लिए तद्देश्वासियों ने इतने भीषण प्रयास किए, कि दुःख है इस बात का, कि वे राक्षसों से बढ़कर दुष्कर्मी थे।
(3) वह ऋषि--- एलिय्याह और ईसा मसीह के हो जाने के बाद ‘वह’ के उत्पन्न होने का अवसर आता है, जिसके विषय में ईसा मसीह ने भविष्यवाणी की थी। वह ऋषि, जिसे ग्रीक भाषा में लिखे गये बाइबिल में ‘पेराक्लीट’ (फ़ारकलीत) कहा गया है, उसक विषय में विवरण प्रस्तुत किया जाएगा, कि वह कौन है?
वह ऋषि पेराक्लीट नाम से व्यवह्रत किया गया है। ‘पेराक्लीट’ शब्द र्के अर्थ पर विचार कर लेना आवश्यक है, कि उसका क्या अर्थ है?
पेराक्लीट का अर्थ--'पेराक्लीट’ शब्द का अर्थ बाइबिल के आजकल के अंग्रेजी अनुवाद में ‘कम्फ़ोर्टर’ आराम पहुंचाने वाला’ तथा हिन्दी अनुवाद में ‘सहायक’ दिया गया है। ‘संसार गुरु’ नामक पुस्तक में बाबा अलीमदास ने ‘पेराक्लीट’ को यूनानी भाषा में ‘फारकलीट’ नाम से व्यवहृत किया है, जिसका अर्थ उन्होंने ‘प्रशंसा योग्य’ बताया है। सर विलियम म्योर ने मुहम्मद साहब की जीवन-कथा लिखते समय अपने ग्रन्थ के संक्षिप्त संस्करण में उल्लेख किया है, कि अरब के लोगों के मध्य किसी लड़के का नाम ‘मोहम्मद’ पढ़ जाये, यह एक नवीन एवं विचित्र बात है। यद्यपि यह नाम अरब के लोगों के लिए अज्ञात नहीं था, परन्तु नवीन अवश्य था। ‘मोहम्मद’ शब्द, अरब के अरबिक की प्रशंसा अर्थ वाली हम्द धातु से निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ ‘प्रशासित’ होता है। हम्द धातु से निष्पन्न दूसरा शब्द ‘अहमद’ बनता है। बाइबिल के टेस्टामेण्ट के अरबी में अनुदित कुछ संस्करणों में ‘पेराक्लीट’ कार अर्थ ‘अहमद’ दिया हुआ है, जो मुसलमानों के धर्म की दृष्टि से मान्य तथा उनका समर्थक रहा। इसी कारण से मुसलमानों ने जूज और क्रिश्चियन को सम्बोधित करते हुए कहा, कि हमारे ऋषि का उल्लेख आप लोगों की धर्म पुस्तकों में भी है। जिस पेराक्लीट के विषय में बाइबिल में वर्णन आया है, उसकी सिद्धि मोहम्मद साहब पर होती है। सर विलियम म्योर ने इस बात का उल्लेख किया है, कि मरियम के पुत्र ईसा मसीह ने इस बात की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है, कि मैं पुरातन विधान की पुष्टि एवं समर्थन के लिए भेजा गया ऋषि हूँ परन्तु मेरे बाद भी एक होगा, जिसका नाम ‘अहमद; होगा। यहाँ अहमद नाम ‘पेराक्लीट’ के लिए प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि बाइबिल में ईसा मसीह ने अपने बाद आने वाले ऋषि को ‘पेराक्लीट’ शब्द से व्यवहृत करते हुए, उसकी बातों के मानने के लिए भी लोगों को उत्साहित किया है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है, कि ‘पेराक्लीट’ का अर्थ प्रशंसक होता है, जिसका अरबी अनुवाद ‘अहमद’ होता है।
बाइबिल के ‘न्यू टेस्टाममेण्ट’ में जिसके आने की भविष्यवाणी की गई है, उसमें क्या-क्या विशेष बातें होंगी, जिससे वह पहचाना जायेगा, इस बात पर विवरण प्रस्तुत है--
(क) ईसा मसीह द्वारा कही गई बातों का स्मरण कराने वालाः--- ईसा मसीह ने इस बात का स्पष्ट निर्देश किया है, कि वह नया विधान लेकर नहीं, अपितु पुरातन विधान की पुष्टि के लिए आए थे।1 ईसा मसीह जिस विधान की पुष्टि के लिए आए थे, वह विधान था--मूसा का विधान।
(ख) ईसा मसीह के पश्चात् आनाः--- वह ऋषि जिसके आने की भविष्यवाणी की गई है, वह संसार में ईसा मसीह के प्रस्थान के आद आएगा।
(ग) संसार के नायक के रूप में आगमनः---वह ऋषि जब आएगा, तो संसार के नायक के रूप में आएगा।
(घ) सत्य का मार्ग-प्रदर्शकः--वह ऋषि संसार को सत्य का मार्ग
दिखाएगा।
(ड.) पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देने वालाः---वह ऋषि पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्म देगा, इस बात की ओर संकेत बाइबिल के सेण्ट मैथ्यू (3/11) से मिलता है। इस भविष्यवाणी से कुछ लोग ईसा मसीह को ग्रहण करते हैं, परन्तु ईसा मसीह ने पवित्र आत्मा से बपतिस्मा तो दिया, परन्तु आग से बपतिस्मा नहीं दिया। आग से बपतिस्मा देने का तात्पर्य है, कि दुष्टों को मार्ग दिखाने के लिए उनके साथ युद्ध करके उन्हें पराजित करना और उन्हें ईश्वरीय मार्ग पर लाना। ईसा मसीह ने तो कोई भी युद्ध नहीं किया, अतः उक्त भविष्यवाणी ‘वह ऋषि’ को अधिकृत करके कही
गई है।
(च) हाथ में सूप रखने वाला तथा खलिहान साफ करने वालाः---बाइबिल में उल्लेख है कि भावी ऋषि हाथ में सूप रखेगा और खलिहान साफ़ करेगा। इतना ही नहीं, वह गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, और भूसी को गेहूँ से अलग करके आग में जला देगा। बाइबिल के उक्त कथन से कुछ लोग यह समझते हैं कि भावी ऋषि सदा अपने हाथ में सूप लिए हुआ घूमा करेगा और खलिहान साफ किया करेगा, तथा गेहूँ को खत्ते में एकत्रा करके भूसी को आग में जलाया करेगा। ऐसा समझने वालों की बुद्धि में जड़ता का पत्थर पड़ा हुआ है। बाइबिल में जो बताया गया है, वह अलंकारिक शैली में कहा गया है, जिसका अभिप्राय यह है, कि भावी ऋषि की बुद्धि सदसत् का विवेक करने वाली होगी। ‘सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय’ के सिद्धान्त से भावी ऋषि तत्व की बातों को ग्रहण करेगा, और तत्वहीन बातों को वान की आग में जला देगा। खलिहान साफ करने का अर्थ यह है, कि जिस व्यक्ति को तत्व की बातें बताएगा, पहले उसका अन्तःकरण साफ़ करेगा।’ ‘खलिहान’ शब्द ‘अन्तःकरण’ के लिए प्रयुक्त हुआ है, जिसमें कुछ रखने के पहले उसकी सफाई आवश्यक है।
(छ) अन्य जाति में आने वालाः भावी ऋषि अन्य जाति में आएगा, इस बात का उल्लेख बाइबिल में स्पष्ट रूप से किया गया है। ईसा मसीह ने (मैथ्यू-21, 43) स्पष्ट रूप से घोषित किया है, कि इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, कि परमेश्वर का राज्य तुमसे ले लिया जाएगा और ऐसी जाति को, जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। इससे स्पष्ट है कि भावी ऋषि उस जाति में पैदा होगा, जिससे भिन्न वे लोग हैं, जिन्हें सम्बोधित करके ईसा मसीह ने कहा था। इसीलिए ईसाईयों एवं जूजों को यह आशा छोड़ देनी चाहिए कि भावी ऋषि उनकी जाति में पैदा होगा।
अब हम प्रत्येक विशेषता के आधर पर उस व्यक्ति को प्रमाणित कर रहे हैं जो वह ‘ऋषि’ होने की योग्यता रखता है।
अन्तिम ऋषि की सिद्धिः--- 'पेराक्लीट’ का अर्थ ‘प्रशंसक’ होता है, जिसे अरबी भाषा में ‘अहमद’ कहते हैं। पहले इस बात को हम दिखा चुके हैं, कि अरबी में बाइबिल के अनुवाद में ‘पेराक्लीट’ का अर्थ ‘अहमद’ बताया गया है। उपयुक्त अर्थ मुसलमानों के समर्थन में था और ईसाई लोग स्वाभाविक रूप से मुसलमानों से द्वेषभाव रखते हैं, इसलिए उन्होंने उपर्युक्त अनुवाद को ग़लत सिद्ध किया।
आज जो अनुवावद बाइबिल के मिलते हैं, उनमें ‘पेराक्लीट’ का अनुवाद ‘कम्फ़ोर्टर’ (अंग्रेज़ी में) और ‘सहायक’ (हिन्दी में) दिया हुआ है। यदि हम ‘पेराक्लीट’ का अर्थ सहायक या कम्फ़ोर्टर ही मानें तो भी उपर्युक्त दोनों बातें मोहम्मद साहब के पक्ष में पूर्ण रूपेण घटित होती है।
सर्वप्रथम हम इस बात की पुष्टि कर रहे है, कि मोहम्मद साहब ‘सहायक’ थे। चादर ओढ़े हुए एक दिन मुहम्मद साहब नमाज़ पढ़ने जा रहे थे, तभी एक अरब देहाती ने आकर आपकी चद्दर की रगड़ से, आपकी गर्दन दुखने लगी। मुहम्मद साहब ने प्रश्न किया, कि तुम क्यों ऐसा कर रहे हो? अरबी देहाती ने उत्तर दिया कि मुझे एक आवश्यकता आ पड़ी है, उसकी आप पूर्ति करें। मुहम्मद साहब ने नमाज़ पढ़ना रोककर उस देहाती का काम कर दिया। प्रस्तुत उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुहम्मद साहब लोगों की सहायता करने में इतना आसक्त रहते थे, कि नमाज़ पढ़ना बन्द करके भी दूसर की सहायता करना उचित समझा, परन्तु आज के मुसलमान नमाज़ के आगे किसी मरते हुए प्यारे को सम्भवतः पानी भी न पिलाएँ।
‘कम्फ़ोर्टर’ का अर्थ होता है---'आराम देने वाला।’
मुहम्मद साहब सभी को आराम देने वाले थे। केवल मनुष्य को ही नहीं, उन्होंने पशुओं को भी आराम दिया। मुहम्मद साहब ने पशुओं के कान तथा पूंछ को काटने की परम्परा को बन्द कराया, और पशुओं के दागने का भी निषेध किया। सवारी पर काठी तथा जीन लगाकर देर तक खड़ा रखने का निषेध करने के अतिरिक्त मुहम्मद साहब ने पशुओं के पारस्परिक लड़ाए जाने को भी बुरा बताया। जीवित लड़कियों को मारकर उन्हें भूमि में गाड़ देने को भी मुहम्मद साहब ने बुरा बताया। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि मोहम्मद साहब ‘आराम देने वाले’ भी थे।
(क) ईसा मसीह की कही बई बातों का स्मरण करने वालाः---अन्तिम ऋषि को ईसा की कही गई बातों का स्मरण कराने वाला कहा गया है। मुहम्मद साहब ने अपने पहले आने वाले सभी ऋषियों का समर्थन किया है और प्रत्येक मुसलमान के लिए यह आवश्यक बताया है कि वह कुरान एवं इससे पूर्व उतारे गए सभी ईश्वरीय ग्रन्थों पर विश्वास रखें। इस प्रकार वेद, बाइबिल एवं क़ुरआन तीनों ही ग्रंथ प्रत्येक मुसलमान (आस्तिक) के लिए श्रद्धेय और मान्य सिद्ध होते हैं। क्योंकि ईसा मसीह मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती ऋषि हैं। ईसा मसीह मूसा के विधान की पुष्टि के लिए आए थे, और मूसा के विधान का समर्थन अत्यधिक प्राबल्य के साथ मुहम्मद साहब ने किया है।
(ख) ईसा मसीह के पश्चात् आनाः--- मोहम्मद साहब ईसा मसीह के परवर्ती थे।
(ग) संसार के नायक के रूप में आगमनःबाइबिल में अन्तिम ऋषि के लिए कहा गया है, कि वह संसार का नायक होगा। मुहम्मद साहब ने जिस धर्म का प्रचार एवं प्रसार किया उसे सनातन धर्म और सार्वभौम धर्म कहा। कुछ लोग यह ग़लत समझते हैं कि मुहम्मद साहब इस्लाम धर्म के संस्थापक थे, और इस्लाम धर्म तभी से इस जगतीतल में प्रसारित हुआ, जब से मुहम्मद साहब ने इसका प्रसार किया। ‘इस्लाम’ का अर्थ ‘ईश्वरीय’ होता है। इसे मुहम्मद साहब ने कहा है, कि यह सनातन धर्म है। सनातन का अर्थ होता हैः सब दिन से चला आने वाला। अपने जीवन काल में ही मुहम्मद साहब ने बहुसंख्यक लोगों का नेतृत्व प्राप्त कर लिया था। अरब में रहने वाले लोगों को और पिशाचों को अपने वश में कर लिया।
(घ) सत्य और मार्ग-प्रदर्शकः मुहम्मद साहब ने सत्य का मार्ग प्रदर्शित किया, और ईश्वर से पराड्.मुख लोगों को सत्य का ब्रह्म-मन्त्रा सिखाया- ला इलाह इल्लल्लाह, मुहम्मदुर्रसूलल्लाह’ ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ को वेदान्त में ‘एक ब्रह्म दितींय नास्ति’ कहा गया है।
(ड.) पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देना वाला--पवित्र आत्मा’ शब्द जिब्रील के लिए आया हुआ है। जिब्रील को ही सरस्वती कहा जाता है, जो ईश्वरीय ज्ञान को ऋषियों तक पहुंचाती है। मुहम्मद साहब को ईश्वरीय ग्रन्थ अध्ययन सरस्वती ने ही आकर पर्वतीय गुफा में कराया और मोहम्मद साहब ने उस ग्रंथ का ज्ञान लोगों तक पहुंचाया। दुष्टों को मार्ग दिखाने के लिए मुहम्मद साहब ने पहले तो शान्ति का आश्रय लिया, परन्तु जब शान्ति से वे लोग न माने और उद्दण्डता करते रहे, तो मुहम्मद साहब ने उनका दमन करने के लिए आग (उष्णता) अर्थात् युद्ध का आश्रय लिया।
(च) हाथ में सूप रखने वाला तथा खलिहान साफ़ करने वालाः-- हाथ में सूप रखने तथा खलिहान साफ करने का अर्थ तो पहले स्पष्ट किया जा चुका है, कि लोगों के अन्तःकरण को साफ करके उनमें यथार्थ बातों का समावेश करने वाला, तथा अपने अन्दर सत्य और असत्य का विवेचन करने वाला वह ऋषि होगा। सरस्वती के माध्यम से मुहम्मद साहब पर अवतीर्ण ग्रन्थ ‘क़ुरआन’ को ‘फुरक़ान’ भी कहा जाता है।
‘फुरकान’ का अर्थ होता हैः--सत्य और असत्य का विवेचन करने वाला।
(छ) अन्य जाति में आने वालाः-- अन्तिम ऋषि के रूप में मुहम्मद साहब ही पूर्ण-रूपेण सिद्ध होते हैं, क्योंकि वह ईसा एवं उनके द्वारा उपादिष्ट जूजों एवं यहूदियों की जाति में नहीं पैदा हुए थे। ईसा का सम्बन्ध इसहाक की वंश-परम्परा से है, और मुहम्मद साहब का सम्बन्ध इस्माइल की वंश परम्परा से है।
इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि जिस ऋषि के होने की भविष्यवाणी बाइबिल के न्यू टेस्टामेण्ट में दी गई है, वह मुहम्मद साहब ही हैं।
अध्याय 6
अन्तिम बुद्ध-मैत्रेय
‘ऋषि’ को बौद्ध धर्म की भाषा में ‘बुद्ध’ कहा जाता है। अन्तिम बुद्ध के विषय में भविष्यवाणी का स्वरूप प्रस्तुत है, जिसे गौतम बुद्ध ने अपने मृत्यु काल के समय अपने प्रिय शिष्य नन्दा से बताया था। ‘नन्दा! इस संसार में मैं न तो प्रथम बुद्ध हूँ और न तो अन्तिम बुद्ध हूँ। इस जगत में सत्य तथा परोपकारक की शिक्षा देने के लिए अपने समय पर एक और ‘बुद्ध’ आएगा। वह पवित्र अन्तःकरण वाला होगा। उसका हृदय शुद्ध होगा। ज्ञान और बुद्धि से सम्पन्न तथा समस्त लोगों का नायक होगा। जिस प्रकार मैंने जगत् को अनश्वर सत्य की शिक्षा प्रदान की है, उसी प्रकार वह भी जगत को सत्य की शिक्षा देगा। जगत् को वह ऐसा जीवन मार्ग दिखाएगा जो शुद्ध (अमिश्रित) तथा पूर्ण भी होगा। नन्दा् उसका नाम मैत्रेय होगा।’
‘बुद्ध’ का अर्थ ‘बुद्धि से युक्त’ होता है। बुद्ध मनुष्य ही होते हैं, देवता आदि नहीं।
बुद्ध की विशेषताएँ
बुद्ध ऐश्वर्यवान् एवं धनवान होता है।
बुद्ध सन्तान से युक्त होता है।
बुद्ध स्त्री तथा शासन से युक्त होता है।
बुद्ध अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहता है।
बुद्ध पद को प्राप्त व्यक्ति का यह सिद्धान्त होता है कि अपनी सिद्धी के लिए अपना कार्य स्वयं करना चाहिए। बुद्ध केवल धर्म प्रचारक होते हैं। ‘बुद्ध’ को ‘तथागत’ भी कहा जाता है। जिस समय बुद्ध एकान्त में रहता है, उस समय ईश्वर उसके साथियों के रूप में देवताओं और राक्षसों को भेजता है। प्रत्येक बुद्ध अपने पूर्ववर्ती बुद्ध का स्मरण कराता है और अपने अनुयायियों को ‘मार’ से बचने की चेतावदी देता है। ‘मार’ का अर्थ बुराई एवं विनाश को फैलाने वाला होता है। जिसे उर्दू भाषा में ‘शैतान’ तथा अंग्रेजी में ‘डेविल’ कहा जा सकता है। बुद्ध के अनुयायी पक्के अनुयायी होते हैं, जिन्हें कोई भी उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। संसार में एक समय में केवल एक ही बुद्ध रहता है।
बुद्ध के लिए सबसे आवश्यक इस बाचत का होना है, कि संसार का कोई भी व्यक्ति उसका गुरु न हो।
प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। हर एक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अलग-अलग वृक्ष निश्चित रहे हैं।
बुद्ध मैत्रेय की विशेषताएँ
मैत्रेय का अर्थ होता हैः दया से युक्त।
बुद्ध होने के कारण अन्तिम बुद्ध मैत्रेय में भी बुद्ध की सभी विशेषताएँ पाई जाएंगी।
मैत्रेय बोधिवृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करेगा।
बोधिवृक्ष के दो प्रकार हैं (1) सांसारिक वृक्ष, (2) स्वर्गीय वृक्ष।
बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।
इस समय हम स्वर्गीय बोधिवृक्ष के विषय में कुछ विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है।
2. ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है।
सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा बुद्धों के गर्दन की हड्डी अत्यधिक दृढ़ होती थी, जिससे वे गर्दन मोड़ते समय अपने पूरे शरीर को हाथी की तरह घुमा लेते थे।1 मैत्रोय में भी उक्त गुण का होना स्वाभाविक है।
अब हम यह सिद्ध करेंगे कि कौन ऐसा व्यक्ति है, जिस पर बुद्धों की सभी विशेषताएँ पूरी उतरती हैं और जो मैत्रेय की कसौटी पर खरा उतरता है।
क़ुरआन में मुहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान् और धनवान् होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि तुम पहले निधर्न थे, हमने तुमको धनी बना दिया। मुहम्मद साहब ऋषि पद को प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गये थे। मुहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध; ऊँट ‘अलकसवा’ था, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे, और बीस की संख्या में ऊँटनियाँ थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था। ऊँटनियों का दूध ही मुहम्मद साहब व उनके बाल-बच्चों का प्रमुख आहार था। मुहम्मद साहब के पास 7 बकरियाँ थीं, जो दूध का साधन थीं। मुहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भैंसें नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसें नहीं होतीं उनके सात बागें खजूर की थीं जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मुहम्मद साहब द्वारा दे दी गई थीं। मुहम्मद साहब के पास तीन भूमिगत सम्पत्तियाँ थीं, जो कई बीघे के क्षेत्रा में थीं। मुहम्मद साहब के अधिकार में कई कुँए भी थे। इतना स्मरणीय है, कि अरब में कुआँ का होना बहुत बड़ी सम्पत्ति समझी जाती है, क्योंकि वहाँ रेगिस्तानी भू-भाग है। मोहम्मद साहब के बारह पत्नियाँ, चार लड़कियाँ और 3 लड़के थे। बुद्ध के अन्तर्गत पत्नी और सन्तान का होना द्वितीय गुण है। मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाममात्र को पाया जाता था, परन्तु मुहम्मद साहब के पास उनका बारह गुना गुण विद्यमान था। उनकी पत्नियों के नाम हम नराशंस के वैदिक भाग में उल्लिखित कर चुके हैं।
मुहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवन काल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करके उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोजन पर्दाथ पूर्ववतः था।
मुहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहान्तवास नहीं हुआ और न तो वह किसी के द्वारा मारे गए।
मोहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने अपने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म-प्रचरक स्वरूप की पुष्टि अनेक इतिहासकारों ने भी की है। यद्यपि उनके विषय में यह बात अत्यधिक प्रसिद्ध है ही।
जिस समय मुहम्मद साहब एकान्त में रहते थे, उस समय कभी-कभी देवता और राक्षस भी उनके पास आ जाया करते थे।
मुहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा कुरआन देख सकते हैं। उदाहरण रूप में कुरआन में दूसरी सूरः में उल्लेख है कि ‘ऐ आस्तिको! (मूसलमानों) तुम कहो कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उस पर और जो-जो कुछ एब्राहीम, इस्माइल, इस्हाक और याकूब पर उनकी सन्तान (के ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गई, उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को, उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों में किसी प्रकार का अन्तर नहीं मानते और हम उसी एक ईश्वर के मानने वाले हैं।
मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। कुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है, कि जो शैतान को अपना मित्रा बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा।
मुहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मुहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते थे। मुहम्मद साहब का संग उनके अनुयायियों ने आमरण नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ा हो।
संसार में जिस समय मुहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मुहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय सम्पूर्ण संसार की सामाजिक और धार्मिक स्थिति, बहुत ही खराब थी, इस बात की पुष्टि ‘कल्कि अवतार और मोहम्मद साहब’ शोध पुस्तक में देख सकते हैं।
मुहम्मद साहब का कोई गुरु संसार का व्यक्ति नहीं था। मुहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसीलिए उन्हें ‘उम्मी’ भी कहा जाता है। ईश्वर द्वारा मुहम्मद साहब के अन्तःकरण में उतारी गई आयतों की संहिता कुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध मैत्रेय के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह है---कड़ी और भारयुक्त काष्ठ वाला वृक्ष।
मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदेबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रोय’ का अर्थ होता है--दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 लीडर पृ. 7 कालम 3 में एक बोद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण से मुहम्मद साहब को ‘रहमतुल्लिल्आलमीन’ कहा जाता है। जिसका अर्थ हैः समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ बुद्धों के अन्तर्गत पाई जाने वाली सभी विशेषताएँ मुहम्मद साहब में भी विद्यमान थीं।
मुहम्मद साहब ने भी स्वंय में एक वृक्ष को देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था, जो इतने बड़े क्षेत्र में था, जिसे एक घुड़सवार लगभग दौ सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पान नही कर सकता था।
मुहम्मद साहब ने भी स्वर्ग में वृक्ष को आँख बिना गिराए हुए देखा था।
मैत्रेय के विषय में जो यह कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। यही बात मुहम्मद साहब के भी विषय में थी, कि वह बातचीत करने में किसी मित्रा की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे।
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के होने की भविष्यवाणी की गई है, वह अन्तिम ऋषि ही है।
डॉ. वेदप्रकाश उपाध्याय
एम. ए. (इलाहाबाद), (एम.एन.यू. अमृतसर)
एल. एल. बी. डी. फिल. डी. लिट. (इलाहाबाद आचार्य)
वेद, दर्शन, धर्मशास्त्र, डिप. इन जर्मन, स्वर्ण पदक-प्राप्त,
रीडर, पंजाब यूनिवर्सिटी, चण्डीगढ़
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विषय-सूची
भूमिका - वेद प्रकाश उपाध्याय
अध्याय-1 -----नराशंस शब्द का अर्थ (वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप)
अध्याय-2 -----नराशंस के गुण और महत्व (वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप)
अध्याय-3 -----नराशंस की सिद्धि (वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप)
अध्याय-4 -----मूसा की पाँचवी अवतरित‘व्यवस्था-विवरण’पुस्तक के अनुसार
अध्याय-5 -----ईसा मसीह के शब्दों के अनुसार एलिय्याह से सम्बन्धित भविष्यवाणी अंतिम अवतारः वह ऋषि
अध्याय-6 ----- अन्तिम बुद्ध्-मैत्रेय
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भूमिका
ऐतिहासिक विषयों पर शोध करने की मेरी उत्कट अभिलाषा सदैव रहती है। वेदों में, बाइबिल में तथा बौद्ध् ग्रन्थों में अन्तिम ऋषि के रूप में जिसके आने की घोषणा की गई थी, वह मोहम्मद साहब ही सिद्घ होते थे, अतः मेरे अन्तःकरण ने मुझे यह प्रेरणा दी, कि सत्य को खोलना आवश्यक है, भले ही वह लोगों को बुरा लगने वाला हो। मोहम्मद साहब के पूर्व भारत तथा अरब के निवासियों का धर्म एक था, इस विषय से सम्बद्ध अनेक प्रमाण हैं, जिन्हें यहाँ निर्दिष्ट करना उपयुक्त नहीं। धर्म की संकुचित भावना का मैं पक्षपाती नहीं। कोई भी बात किसी भी स्थल में यदि उपयुक्त एवं उचित कही गई है, तो उसका बहिष्कार करने का मैं साहस नहीं करता। वेदों में बारह पत्नी वाले एक उष्ट्रारोही व्यक्ति के होने की भविष्यवाणी है, जिसका नाम 'नराशंस' है। 'नराशंस' का अर्थ सायण ने किया है, कि जो मनुष्यों द्वारा प्रशंसित हो ('नराशंस' यो नरैः प्रशस्यते--सायण भाष्य, ऋगवेद संहिता, 5/5/1) मेरे विचार इस स्थल में सायण से सहमत नहीं, क्योंकि मेरे मत से 'नराशंस' शब्द ऐसे 'नर' अर्थात व्यक्ति का सूचक है, जो प्रशंसित हो। 'मोहम्मद' शब्द 'नराशंस' का अरबी अनुवाद है प्रस्तुत पुस्तक में मैंने यथाशक्ति सत्य को उद् घाटित करने का प्रयत्न किया है। पाठकों से निवेदन है, कि पुस्तक पर अपने विचार अवश्य भेजें।
वेदप्रकाश उपाध्याय
माधव मास,
शुक्ल पक्ष द्वादशी,
तिथि, सं 2027
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प्रथम अध्याय
नराशंस शब्द का अर्थ
'नराशंस' शब्द 'नर' और 'आशंस' दो शब्दों से मिलकर बना है। 'नर' का अर्थ होता है मनुष्य और 'आशंस' का अर्थ होता है, 'प्रशंसित' यह स्मरणीय है, कि 'आशंस' शब्द वैदिक भाषा का शब्द है, न कि लौकिक भाषा का। 'नराशंस' शब्द का कुछ लोग अर्थ करते हैं- 'मनुष्य की प्रशंसा' तथा कुछ लोगों के अनुसार 'नराशंस' शब्द का अर्थ होता है- 'मनुष्यों द्वारा प्रशंसित'। प्रथम अर्थ षष्ठी तत्पुरूष समास से निकलता है तथा दूसरा अर्थ तृतीया तत्पुरूष समाज से निकलता है। विचारणीय यह है, कि वास्तव में 'नराशंस' शब्द का क्या अर्थ होगा? तृतीया तत्पुरूष या षष्ठी तत्पुरूष से निष्पन्न अर्थ संगत नहीं है क्योंकि 'नराशंस' के सूत्रों में किसी विशेष व्यक्ति की प्रशंसा है, अतः जिसकी प्रशंसा का बोध होगा। 'नराशंस' शब्द कर्मधारय समास है, जिसका विच्छेद 'नरश्चासौ आशंसः' अर्थात 'प्रशंसित मनुष्य' होगा, इसलिए 'नराशंस' शब्द से किसी देवता को भी न समझना चाहिये। 'नराशंस' शब्द स्वतः ही इस बात को स्पष्ट कर देता है, कि 'प्रशंसित' शब्द जिसका विशेषण है, वह मनुष्य है। यदि कोई 'नर' शब्द को देववाचक माने, तो उसके समाधान में इतना स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि 'नर' शब्द न तो देवता का पर्यायवाची शब्द ही है, और न तो देवयोनियों के अन्तर्गत कोई विशेष जाति।
देवजाति- देवताओं की दस जाति हैं-
विद्याधर, अप्सरस, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, किन्नर, पिशाच, गुहाक, विद्ध और भूत।
1. विद्याधर- देवताओं की यह जाति अधिक विद्वान होती है। विद्या को धारण करने के ही कारण तो इनका नाम विद्याधर पड़ा है।
2. अप्सरस्- जल पर से विचरण करने के कादण इन्हें ' अप्सरस' कहा जाता है।
3. यक्ष- जिनकी पूजा की जाती है, वे यक्ष कहे जाते हैं।
4. राक्षस- जो लोग इन्हें मानते हैं, उनकी यह अन्य देवों से रक्षा करते हैं।
5. गन्धर्व- यह केवल गन्ध को ही पसन्द करते हैं।
6. किन्नर- ये मनुष्यों के आकार में सदा रहते हैं, परन्तु जब चाहते हैं, तब अपना रूप भी बदल लेते हैं। ये बहुत ही बुरे देव हैं।
7. पिशाच- ये अन्य प्राणियों को मारकर उनका मांस खा जाते हैं।
8. गुहाक- ये बहुस सी निधियों को रखते हैं, और उनकी रक्षा करते हैं। इनके अधिकार में बहुत से कोषागार रहते हैं, जो पृथ्वी या पर्वतों में छिपे रहते हैं।
9. सिद्ध- ये परमेश्वर के समीप सदा रहते हैं। इन्हें परमेश्वर की सिद्धि प्राप्त होती है। ये जो कुछ कह देते हैं, सब सत्य हो जाता है। ये कभी असत्य नहीं बोलते। ये बहुत ही अच्छे देव हैं। इन्हें सिद्धियां प्राप्त रहती हैं। ये कभी बहुत छोटा रूप बना लेते हैं, कभी ये पर्याप्त भार से युक्त हो जाते हैं तथा कभी बिल्कुल ही हल्के हो जाते हैं।
10. भूत- ये कल्याणकारी होते हैं तथा अपने कल्याण के लिये प्रयत्न भी करते रहते हैं। इन्हें भूति (ऐश्वर्य, विभूति, कल्याण) की आकांक्षा एवं प्राइज़ होती है।
नराशंस का मनुष्यत्व- 'नराशंस' शब्द देवजातियों में न होकर मनुष्य जाति में 'प्रशंसित' के लिये हैं। 'नर' शब्द का अर्थ मनुष्य होता है, क्योंकि 'नर' शब्द मनुष्य के पर्यायवाची शब्दों में एक है।
नराशंस की व्यापकता
‘नराशंस’ के विषय में लौकिक संस्कृत ग्रंन्थों में कुछ भी सामग्री उपलब्ध नहीं होती। वैदिक ग्रन्थों में ही ‘नराशंस’ के विषय में स्थान-स्थान पर मन्त्र आये हैं। ‘नराशंस’ के विषय में संहिता ग्रन्थों में पर्याप्त मन्त्र उपलब्ध हैं। अथर्ववेद संहिता के बीसवें काण्ड के एक सौ सताइसवें सूक्त में ‘नराशंस’ की प्रशस्ति पर चौदह मन्त्र निर्दिष्ट हैं।ऋग्वेद सभी वेदों में प्राचीनतम वेद है। ऋग्वेद में भी अनेक स्थानों पर ‘नराशंस’ विषयक मन्त्र है। ऋग्वेद के अन्तर्गत ‘नराशंस’ शब्द से प्रारम्भ होने वाले मन्त्रों की संख्या आठ है। ऋग्वेद प्रथम मण्डल, तेरहवें सूक्त, तीसरे मन्त्र और अठारवें सूक्त, नवें मन्त्र तथा एक सौ छः सूक्त चौथे मन्त्र में ‘नराशंस’ का वर्णन आया है। ऋग्वेद के द्वितीय मण्डल के तीसरे सूक्त, दूसरे मन्त्र, पाँचवे मण्डल के पाँचवे सूक्त, दूसरे मन्त्र, सातवें मण्डल के दूसरे सूक्त, दूसरे मन्त्रा, दसवें चौसठवें सूक्त, तीसरे मन्त्र और एक सौ बयालीसवें सूक्त, दूसरे मन्त्र में भी ‘नराशंस’ विषयक वर्णन आये हैं। सामवेद संहिता के तेरह सौ उन्चाववें मन्त्र में तथा वाजसनेयी संहिता के उन्तीसवें अध्याय के सत्ताइसवें मन्त्र में भी ‘नराशंस’ विषयक वर्णन उप्लब्ध होता है। ‘नराशंस’ विषयक विषयक वर्णन (3/6/3/1) में भी मिलता है। शतपथ ब्राह्मण के प्रथम काण्ड के अन्तर्गत दर्शपौर्णमासेष्टि के अनुष्ठान के अवसर पर पंच प्रयाजों में ‘नराशंसप्रयाजयाग’ का भी उल्लेख है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है। ‘नराशंस’ केवल एक वेद तक सीमित नहीं, अपितु ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी व्याप्त है।
‘नराशंस’ का काल निर्धारण
किसी व्यक्ति विशेष को अधिकृत करके जब किसी ग्रंथ में उसका वर्णन किया जाता है, तब वह व्यक्ति विशेष ग्रंथ रचना के पूर्वकाल में रहता है, अन्यथा ग्रंथ में व्यक्ति विशेष का वर्णन आने की सम्भावना नहीं, यदि उपर्युक्त सिद्धान्त से कोई विद्वान यह निष्कर्ष निकाले कि नराशंस का स्थिति काल वेदों के अवतरण के भी पूर्व था तो यह निष्कर्ष अथर्ववेद के बीसवें काण्ड के अन्तर्गत एक सौ सत्ताइसवें सूक्त के प्रथम मन्त्र से ही अवरुद्ध हो जाता है कि ‘नराशंस’ वेदावतरण के पूर्व नहीं, अपितु वेदावतरण के बाद की स्थिति में स्तुत्य होता है। ब्रह्म वाक्य में कहा गया है कि हे लोगो, सुनो- ‘नराशंस’ की प्रशंसा की जायेगी। उपर्युक्त बह्म वाक्त अथर्ववेद का है, और अथर्ववेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद से बहुत बाद का वेद है, अतः अथर्ववेद के काल के बाद तो ‘नराशंस’ की उत्पत्ति हो होना निश्चित हुआ। ‘नराशंस’ के वाहन के रूप में ऊँट का प्रयोग उल्लिखित है, अतः ‘नराशंस’ की उत्पत्ति का होना उस समय निश्चित है, जब ऊँटों की सवारी के रूप में प्रयोग हो।
स्थान निर्धारणः ‘नराशंस’ के स्थान-निर्धारण करने के विषय में न तो बाह्म प्रमाण उपलब्ध होते हैं और न तो कोई अन्तरप्रमाण! स्थान-निर्धारण के बिना नराशंस के उत्पत्ति-स्थान का ज्ञान भी असम्भव है, इसलिए नराशंस के स्थान के विषय में कुछ न कुछ विचार प्रस्तुत करना आवश्यक ही है। जब ‘नराशंस’ का स्थान-निर्णय किया जा रहा है। नराशंस सवारी के रूप में ऊँट के प्रयोग करेगा। कोई भी व्यक्ति सिद्धान्त रूप में जिस देश, काल या वातावरण में जन्म लेता है, उस देश की भाषा, वेषभूषा तथा सवारी का प्रयोग भी करता है। ऊँट की सवारी करने का तात्पर्य यह है कि नराशंस जिस स्थान पर पैदा होगा वहाँ ऊँटों की की प्रचुरता रहेगी। ऊँटों की प्रचुरता प्रायः उन्हीं स्थानों में होती है, जो रेगिस्तानी भू-भाग होते हैं। इस प्रकार स्थान-निर्णय का निरूपण करते हुए हम इस तथ्य पर पहुंचते हैं कि नराशंस रेगिस्तानी भू-भाग में उत्पन्न होगा, जहाँ ऊँट प्रचुर मात्रा में उपयोगी हों।
द्वितीय अध्याय
नराशंस के गुण और महत्त्व
वेदों में जितने भी मन्त्र आए हैं सभी प्रायः परमेश्वर के गुणों पर प्रकाश डालते हैं। कुछ ही मन्त्र ऐसे हैं जो अन्य विषयों से सम्बन्धित हैं। नराशंस की महत्ता इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि उसकी स्तुति की जायेगी। ऋग्वेद काल में भी यज्ञों को करते समय नराशंस का आह्नान किया जाता रहा है। आह्नान किए जाते समय उसे ‘प्रिय’ शब्द से युक्त किया गया है। नराशंस की वाणी की मधुरता को लक्षित करके उसे ऋग्वेद में साक्षात् ‘मधुजिह्न’ भी कहा गया है।1
परोक्ष ज्ञान-मधुजिह्न अर्थात् मधुरभाषिता के अतिरिक्त नराशंस का सर्वाधिक विशेष गुण परोक्ष ज्ञान बताया गया है। परोक्ष ज्ञान से युक्त व्यक्ति को कवि कहा जाता है। कवि की प्रतिमा विलक्षण होती है। जहाँ पर सूर्य और चन्द्र की तथा देवताओं की भी पहुँच नहीं होती, वहाँ तक जो पहुँच जाता है और आध्यात्मिक जगत् का जो सम्राट होता है, उसे कवि कहा जाता है। ‘क’ का अर्थ ईश्वर होता है, ‘क’ अर्थात ईश्वर से जिसका सम्बन्ध होता है, ईश्वर को जो विशेष रूप से जानता है, उसे भी कवि कहा जाता है। शब्द-कोशों में कवि के अर्थ बहुत से दिए गए हैं। प्रतिभावान, चतुर, बुद्विमान, विचारयुक्त, प्रशंसनीय और सन्त आदि। ऋग्वेद में नराशंस को कवि बताया गया है। ‘कवि’ का एक अर्थ ‘कविता करने वाला’ भी होता है।
सुन्दर-कान्तिः नराशंस के विषय में उसके महत्व का प्रतिपादक ‘स्वर्चि’ शब्द ऋग्वेद में प्रयुक्त हुआ है। स्वर्चि शब्द का विच्छेद है- ‘शोभना अर्चिर्यस्य यः’ अर्थात् सुन्दर दीप्ति या कान्ति से युक्त। ‘अर्चि’ शब्द का अर्थ होता है--दीप्ति, और ‘सु’ का अर्थ होता है- सुन्दर। ‘स्वर्चि’ शब्द का अभिप्राय यह है, कि इतने सुन्दर स्वरूप का व्यक्ति, जिसके आनन से रश्मि भी भासित हो रही है। ऋग्वेद के जिस मन्त्र में नराशंस को स्वर्चि कहा गया है, उसी स्थान में उसके विषय में यह भी स्पष्ट रूप से बता दिया गया है, कि वह अपने महत्व से घर-घर को प्रकाशित करेगा। अर्थात् ऐसा कोई घर नहीं होगा, जहाँ नराशंस की प्रशंसा न की जाए। ऐसी स्थिति में नराशंस नाम का अर्थ भी घटित हो जाएगा, क्योंकि नराशंस शब्द का अर्थ ही यह होता है-ऐसा मनुष्य जो प्रशंसित हो। नराशंस के विषय में जो ‘प्रतिघामान्यज्जन!’ आया है, उसमें ‘अज्जन’ शब्द प्रकाशन अर्थ वाली ‘अज्ज’ धातु में ‘शतृ’ प्रत्यय के संयोग से बना है। ‘प्रतिघामानि’ का अर्थ स्पष्ट ही है- प्रत्येक घरों को’। यदि कोई यह शंका करे कि ‘अग्नि’ शब्द भी तो ‘अन’ धातु से बना है, जो प्रकाशक होने के साथ ही साथ जला देने वाला भी है, तो नराशंस के विषय में ‘अज्ज’ धातु से निष्पन्न ‘अज्जन्’ शबद का प्रयोग करना यह स्पष्ट करता है कि नराशंस प्रत्येक घरों को जलाकर भस्म कर देगा तो यह शंका अनुपयुक्त है, क्योंकि जो शब्द जिस स्थल में प्रयुक्त होता है, उस स्थल के अनुरूप ही अपने अर्थ को भी अभिव्यक्त करता है। यदि शब्दों के प्रयोग के विषय में स्थल का औचित्य न देखा जाए तो महान् अनर्थ की प्राप्ति होगी। जैसे- भोजन करते समय कोई कहे ‘सैन्धव लताओं’ तो स्थल के अनुरूप ‘सैन्धव’ के ‘नमक’ अर्थ को ही ग्रहण करना चाहिए न कि ‘घोड़े’ अर्थ को ओर यात्रा करते समय ‘सैन्धव’ शब्द से ‘घोड़े अर्थ को समझना चाहिए न कि ‘नमक’ अर्थ को। प्रकाश अन्धकार को दूर करने के लिए होता है। आध्यात्मिक रूप में ‘प्रकाश’ शब्द ‘ज्ञान’ के लिए और ‘अन्धकार’ शब्द ‘अज्ञान’ के लिए प्रयुक्त होता है। नराशंस के विषय में उसकी आध्यात्मिकता को ‘कवि’ शब्द से सूचित किया गया है, इसलिए प्रकाश का तात्पर्य नराशंस के विषय में ज्ञान से है। ‘घर-घर को प्रकाशित करने’ का तात्पर्य घर-घर में ज्ञान को प्रसारित करने से है। इस प्रकार नराशंस को ऋग्वेद में ‘ज्ञान का प्रसारक’ कहा गया है।
पापों का निवारक-- नराशंस को ‘सम्पूर्ण पापों से लोगों को अलग करने वाला’ बताया गया है। जिसके अंदर जो गुण होता है उससे उसी गुण को अन्यों को प्रदान करने के लिए कहा जाता है। मन्त्रों का साक्षात्कार करने वाले कुत्स आडिरस ऋषि नराशंस को यह अनुनय करते हैं, कि वह आकर सम्पूर्ण लोगों को पापों से अलग करें। उक्त मन्त्र से यह सूचित होता है, कि पुरातन काल के ऋषियों के अन्तःकरण में नराशंस के प्रति कितना अनुराग था, कि वे इस बात की अपने अन्दर तीव्र अभिलाषा करते थे कि नराशंस आकर लोगों को पापों से निवारित करे। यदि कोई उक्त मन्त्र में यह शंका करे कि ‘विश्वस्मात्रो अंहसो निष्पिपर्तन’ का अर्थ तो होता है कि ‘सम्पूर्ण पापों से हमें फिर पार उतारो’ लोगों को पापों से अलग करने की बात को क्यों अर्थ के रूप में व्यक्त किया जा रहा है, तो इसका समाधान यह है कि वेदों में जो मन्त्र हैं, वे लोगों द्वारा किए जाने वाले प्रार्थना मन्त्र या पाठ-मन्त्र हैं, न कि ऋषियों द्वारा स्वयं अपने कल्याण के लिए बनाए गए मन्त्र क्योंकि वेद अपौरूषेय हैं और वेदों को कोई बना नहीं सकता, किन्तु वेद लोगों के कल्याण करने के लिए ईश्वर द्वारा ऋषियों के माध्यम से अभिव्यक्त किए गए हैं, इसलिए ‘नो अंहसो निष्पिपर्तन’ का अर्थ लोगों को पापों से निवारण करने को सूचित करता है।
नराशंस प्रयाजयाग--सन्तान और पशु आदि की सम्पत्ति के प्रपित्सु लोगों द्वारा तनूनपात्प्रयाज के स्थान में नराशंस का प्रयाजयाग करना चाहिए। नराशंसप्रयाज का अर्थ है-उसके लिए प्रयाजयाग जो लोगों में प्रशंसित है। नराशंस प्रयाजयाग में आज्य अग्नि में ‘ये यजामहे’ नराशंसो अग्न आजय वेतु 3 वो 3 षट’ मन्त्र पढ़कर छोड़ा जाता है। उपर्युक्त मन्त्र में नराशंस को लागों में प्रशंसित, कीर्ति की ज्योति से युक्त तथा आज्य का प्रेमी कहा गया है।
नराशंस का स्वरूप- कोई मनुष्य जब प्रशंसित होता है, तो उसकी प्रशंसा का कारण उस व्यक्ति में निहित गुणों का समुदाय है, जिसके कारण वह प्रशंसा का पात्र बनता है। दुष्टों की प्रशंसा उनको प्रसन्न करके कुछ स्वार्थ-साधन के लिए भले ही कोई कर दे, परन्तु स्वाभाविक रूप से दुष्ट व्यक्ति प्रशंसा के पात्र न होकर निन्दा के ही पात्र होते हैं। यह आवश्य ही कहा जा सकता है कि ‘दृष्टों की दुष्टता की प्रशंसा की जहाँ तक की जाये, वह कम ही है’, उपर्युक्त् वाक्य में ‘प्रशंसा’ शब्द भी निन्दा के अर्थ में अभिव्यक्त हुआ है। पुरुष को प्रशंसित करने के लिए आठ गुण होते हैं जो क्रमशः प्रज्ञा, कुलीनता, इन्द्रिय दमन, श्रुति ज्ञान, पराक्रम, अबहुभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता है। लोगों के अन्तःकरण में वास्तव में वही स्थान प्राप्त कर सकता है, जो जन-विद्वेषी न हो, धर्म का अनुरागी हो, प्रशंसनीय कर्म करे, निन्दित कर्मों को न करे, नास्तिक न हो और क्रोध, हर्ष, दर्प, लज्जा, जड़ता, एवं अपने को बड़ा समझने की भावना जिसके ऊपर अपना अधिकार न कर सके। नराशंस को पहचानने के लिए अथर्ववेद में कुछ निश्चित बातें बताई गई हैं, जो प्रस्तुत हैं।
1. सवारी के रूप में ऊँट का प्रयोग करने वाला--- अथर्ववेद में नराशंस के होने की भविष्यवाणी के अनन्तर उसके द्वारा सवारी के रूप में ऊँटों के उपयोग की बात अभिव्यक्त की गई है।1
2. बारह पत्नियों वाला---नराशंस के पास बारह पत्नियाँ होंगी, इस बात की पुष्टि भी अथर्ववेद के उसी मन्त्र से होती है, जिस मन्त्र में उसके द्वारा सवारी के रूप में ऊँट के प्रयोग करने की बात का उल्लेख है।
3. सौ निष्कों से युक्त--- निष्क का अर्थ होता है--स्वर्ण मुद्रा। स्वर्ण मुद्राएँ आपत्ति काल में मनुष्य को बहुत सहयोग देती है। नराशंस को ईश्वर की ओर से सौ निष्क प्रदान किये जाने का उल्लेख है।
4. दस मालाओं वाला--- मालाएँ गले का हार रहती हैं। ‘गले का हार’ का अर्थ अत्यधिक प्रिय के लिए प्रयुक्त किया जाता है। नराशंस के लिए दस मालाएँ ईश्वर की प्रेरणा से प्रदान किए जाने का उल्लेख अथर्ववेद के बीसवें काण्ड के एक सौ सत्तइसवें सूक्त, तीसरे मन्त्र में हुआ है।
5. तीन सौ अर्वन् से युक्त--- नराशंस को तीन सौ अर्वन् की प्राप्ति होगी, इस बात का उल्लेख भी अथर्ववेद के उपर्युक्त मन्त्र मे हुआ है।
6. दस हजार गो से युक्त---ईश्वर की ओर से नराशंस को दस हज़ार गो प्रदान किए जाएँगे।
अब हम अगले अध्याय में यह प्रमाणित करेंगे कि नराशंस की उत्पत्ति हुई या नहीं। यदि उत्पत्ति हुई तो नराशंस कौन थे।
तृतीय अध्याय
नराशंस की सिद्वि
1. नामगत सिद्धि---‘नराशंस’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ प्रथम अध्याय में बतलाया जा चुका है। अर्थ की दृष्टि से स्पष्ट है कि ‘नराशंस’ शब्द व्युत्पत्तिजन्य अर्थ से निर्दिष्ट किसी व्यक्ति विशेष के लिए आया है जो यह स्पष्ट करता है कि वह उत्पन्न होने वाला व्यक्ति, जिसके विषय में वेदों में भविष्यवाणी की गई है, नर= मनुष्य होगा और साथ ही साथ आशंस= प्रशंसित भी होगा। उपर्युक्त कारण से हमें ऐसे व्यक्ति को प्रमाणित करना है, जो मनुष्य भी हो और वह प्रशंसित भी हो। ‘मुहम्मद’ शब्द ‘हम्द्’ = ‘प्रशंसा करना’, धातु से बना हुआ है, जिसका अर्थ ‘प्रशंसित’ होता है। मुहम्मद(स.) साहब मनुष्य भी थे, अतः उनमें नरत्व और आशंसत्व दोनों गुण घटित हो जाते हैं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि ‘नराशंस’ शब्द अरबी में ‘मुहम्मद’ शब्द से अभिहित व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है। जिस प्रकार ‘जल’ शब्द जिस विशेष पदार्थ का बोध कराता है और वाटर तथा ‘आब’ व ‘वास्सेर’ शब्द भी उसी पदार्थ का बोध कराते हैं, परन्तु अन्तर केवल यही है कि ‘जल’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है और ‘वाटर’ अंग्रेज़ी भाषा का, ‘आब’ फ़ारसी भाषा का तथा ‘वास्सेर’ जर्मन भाषा का शब्द है, जो एक ही पदार्थ का बोध कराते हैं, उसी प्रकार ‘नराशंस’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है और ‘मुहम्मद’ अरबी भाषा का शब्द है, जो एक ही व्यक्ति विशेष के बोधक हैं। अब देखना यह है कि क्या ‘नराशंस’ के विषय में जो बातें कही गई हैं, वह मुहम्मद (सल्ल.) पर घटित होती है, अथवा नहीं।
2. कालगत सिद्धि---नराशंस की उत्पत्ति का होना उस समय बताया गया है, जबकि ऊँटों का सवारी के रूप में उपयोग हो। मुहम्मद (सल्ल.) साहब भी उसी समय उत्पन्न हुए थे जबकि ऊँटों का सवारी के रूप में प्रचुर मात्रा में उपयोग हो रहा था। स्वयं मुहम्मद (सल्ल.) ऊँट की सवारी के अत्यधिक प्रेमी थे। मुहम्मद (सल्ल.) ऊँट में चढ़कर मदीना पहुंचे थे।1
3. स्थानगत साम्य---नराशंस का जन्म-स्थान ऐसे स्थल में बताया गया है जो रेगिस्तानी भू-भाग हो। मुहम्मद (सल्ल.) मक्का मे उत्पन्न हुए थे।1 मक्का ऐसा स्थान है, जो रेगिस्तानी भू-भाग है।
4. गुणगत साम्य--- (क) नराशंस के लिए ऋग्वेद में प्रिय शब्द का प्रयोग हुआ है। मुहम्मद (सल्ल.) भी सभी को प्रिय थे।
(ख) नराशंस को परोक्ष ज्ञाता भी बताया गया है। मुहम्मद (सल्ल.) को भी परोक्ष की बातों का ज्ञान होता था। इस विषय में एक ऐतिहासिक प्रमाण इनायत अहमद की ‘अलकलामुल्मुबीन’ नामक पुस्तक में है, कि रोमियों और ईरानियों के युद्ध में रोमियों के पराजित हो जाने की घटना अपनी परोक्ष- दर्शिता से मुहम्मद (सल्ल.) ने अपने मित्रों से बताई थी तथा पुनः एक फरिश्ते से नव वर्ष के अन्दर ही रोमियों को होने वाली विषय का समाचार जानकर उसे बतलाया था। इस भविष्यवाणी के बाद नव वर्ष के अन्दर ही नैनवा की लड़ाई में रोमियों की विजय 627 ई. में हुई थी। इसी विषय से सम्बन्धित ‘सूरे रूम’ नाम क़ुरआन की 30वीं सूरत उतरी है। इसी बात को क़ुरआन की सूरः रूम की दूसरी से लेकर चौथी आयत तक में इस प्रकार कहा गया है कि रोमियों की जाति पराजित हो गई। इस अरब की भूमि के निकट ही वे लोग अपने पराजित हो जाने के बाद भी वास्तव में नव वर्षों के अन्दर- अन्दर विजयी होंगे। ईश्वर के हाथ में सारा कृत्य पूर्ववर्ती और परवर्ती दोनों हैं। यह मुहम्मद (सल्ल.) की परोक्ष-दर्शिता का स्वतः प्रमाण है।
(ग) नराशंस को वेदों में ‘कवि’ = कविता करने वाला भी बताया गया है, और कवि = ईश्वर को जानने वाला भी। मुहम्मद (सल्ल.) को भी ‘शायर’ कहा जाता था। ‘शायर’ अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है-ज्ञाता। ईश्वर को जानने वाले मुहम्मद (सल्ल.) थे, क्योंकि ये ऋषि थे। ईश्वर का सन्देशवाहक होने के ही कारण तो इन्हें ‘नबी’ कहा जाता था। ‘नबी’ शब्द अरबी का शब्द है, जो नबा धातु से बना है। ‘नबा’ का अर्थ होता है-सन्देश, और उस धातु से निष्पन्न शब्द ‘नबी’; का अर्थ होता है- सन्देश देने वाला।
(घ) ऋग्वेद में नराशंस को अधिक स्वरूप वाला और घर-घर में ज्ञान की ज्योति जलाने वाला बताया गया है। मुहम्मद (सल्ल.) भी अत्याधिक सुन्दर थे। उनकी सुन्दरता को देखकर लोग उनकी ओर खिंच जाते थे। उनकी आकर्षक शक्ति के विषय में रेवरेंट बासवर्थ स्मिथ ने ‘मूहम्मद एण्ड मुहामेडनिज्म’ नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ में उल्लेख किया है, कि मुहम्मद (सल्ल.) के विरोधी भी उनकी आकर्षण शक्ति तथा उनकी गरिमा से प्रभावित होकर उनका सम्मान करने को बाध्य हो जाते थे। विरोधियों की अत्याधिक संख्या एवं प्रबलता के होने पर भी मुहम्मद (सल्ल.) ने ज्ञान के प्रकाश को घर-घर में फैलाने का प्रयत्न किया। डा. ताराचन्द ने ‘इन्फ़्लुएन्स आफ़ इस्लाम आन इण्डियन कल्चर’ नामक ग्रन्ध की भूमिका में लिखा है, कि मुहम्मद (सल्ल.) के पास ईश्वरीय वाक्य आने लगा, और वह पृथ्वी पर ईश्वर के सन्देष्टा बन गए और अरब के लोगों के धार्मिक गुरु बन गए।
(ड.) नराशंस को पापों से हटाने वाला भी कहा गया है। सामान्यतया कुछ लोग अधर्म को भी धर्म समझकर उसका पालन करते हुए देखे जाते हैं। ऐसे अधार्मिक लोगों को नराशंस उनके द्वारा किए जाते हुए पापों से रोकेगा, तथा भविष्य में पाप न करने के लिए प्रेरित करेगा। जो लोग पाप किए रहते हैं, यदि वे उसकी क्षमा याचना ईश्वर से नहीं मांगते हैं तो भविष्य में पुनः पाप करने के आशंका रहती है। मुहम्मद (सल्ल.) ने केवल लोगों को पापों से दूर रहने के लिए नहीं प्रेरित किया, अपितु ईश्वर से क्षमा याचना करने के लिए भी उत्साहित किया, ताकि लोगों को अपने किए हुए पापों के कारण नरकगामी न होना पड़े। यह मोहम्मद साहब की शिक्षा का ही प्रभाव है कि लोगों में जो मुहम्मद (सल्ल.) के अनुयायी हैं, आज भी शराब का पीना, ब्याज लेना आदि निषिद्ध है। दूसरों की सम्पत्ति का लोभ न करने का भी उपदेश मुहम्मद (सल्ल.) साहब ने दिया है। कुरआन में धन आदि को महत्व न देकर आध्यात्मिकता को महत्व दिया गया है।1
5. पत्नीगत साम्य---अथर्ववेद में नराशंस को बारह पत्नियों वाला बताया गया है। मोहम्मद साहब की भी बारह पत्नियाँ थीं। उनकी बारह पत्नियों में पहली का नाम ‘ख़दीजा’ था। ख़दीजा खुवैलिद की पुत्री थीं। मुहम्मद (सल्ल.) साहब की दूसरी पत्नी का नाम ‘सौदः’ था, जो ‘जमअः’ की पुत्री थीं। तीसरी पत्नी का नाम ‘आयशः’ था जो अबूबक्र की पुत्री थीं। चौथी पत्नी ‘हफ़्शः’ थी, जो उमर की पुत्री थीं। पाँचवी पत्नी का नाम ‘जैनब’ था, जो ‘ख़ज़ीमः’ की पुत्री थीं। छठीं पत्नी का नाम ‘उम्मे सलमः’ था जो अबीउमय्य- की पुत्री थीं। सातवीं पत्नी का नाम भी ‘जैनव’ था जो ‘हजश’ की पुत्री थीं। आठवी पत्नी का ‘जुबैरियः’ नाम था जो ‘हारिस’ की पुत्री थीं। नवीं पत्नी का नाम ‘रैहानः’ था, जो यजीद की पुत्री थीं। दसवीं पत्नी का नाम ‘उम्मे हबीबः’ था जो ‘अबी सुफ़ियान’ की पुत्री थीं। ग्यारहवीं पत्नी का नाम ‘सफ़ियः’ था जो ‘हैबी’ की पुत्री थीं। ‘मैमूनः’ मुहम्मद (सल्ल.) साहब की बारवहीं पत्नी थीं, जो ‘हारिस’ की पुत्री थीं। इस प्रकार नरांशस के विषय में कही गई बात, जो उनकी पत्नियों के विषय में थी, मुहम्मद (सल्ल.) साहब के ऊपर पूर्ण-रूपेण घटित हुई। किसी भी प्रसिद्ध व्यक्ति, जो धार्मिक प्रकृति का रहा हो, के बारह पत्नियाँ नहीं थीं। मुहम्मद (सल्ल.) साहब ही ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिनकी पत्नियों की संख्या बारह थी। इस प्रकार नराशंस के विषय में कही गई बात मुहम्मद (सल्ल.) साहब के ही ऊपर घटित होती है।
अन्य बातों में साम्य--- अथर्ववेद में अन्योक्ति अलंकार के माध्यम से नराशंस के विषय में कुछ बातें बताई गई हैं, जिनकी तुलना मुहम्मद (सल्ल.) साहब से दी जा रही है। नराशंस के लिए दस हज़ार गो ईश्वर द्वारा प्रदान किए जाने का उल्लेख अथर्ववेद में है। ‘गो’ अलंकारिक शब्द है। गो शब्द सामान्यता अच्छे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है। उदाहराणस्वरूप ‘नरपुन्डव’ शब्द ‘मनुष्यों के अच्छे’ व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है। ‘पुन्डव’ शब्द का विग्रह है, ‘पुंक्षु गौः’ अर्थात् मनुष्यों में गौ अर्थात् श्रेष्ठ या अच्छा। मुहम्मद (सल्ल.) साहब द्वारा दी जाने वाली शिक्षाओं के पालनकर्ता उसके जीवन काल के अन्तिम भाग में दस हज़ार थे। वे मुहम्मद (सल्ल.) साहब के अनन्य सहयोगी थे। मक्का को जीतने के उद्देश्य से जब मुहम्मद (सल्ल.) साहब मक्का की ओर मदीने से प्रस्थान कर रहे थे, तो उनके साथ रहने वाले सहायकों की संख्या दस हज़ार थी। मुहम्मद (सल्ल.) साहब के दस हज़ार शिष्य जब मक्का में पहुंचे, तो न तो वहाँ किसी प्रकार का युद्ध हुआ और न तो मुहम्मद (सल्ल.) साहब के किसी शिष्य ने किसी को कष्ट ही दिया, इसी कारण से उन दस हज़ार शिष्यों को ‘गौ’ कहा गया।
नराशंस के विषय में यह भी वेदों में उल्लेख है कि नराशंस को तीन सौ ‘अर्वन’ की प्राप्ति होगी। ‘अर्वन’ भी अलंकारिक शब्द है। ‘अर्वन्’ का अर्थ घोड़ा होता है। घोड़ा बहुत ही तेज गमन करने वाला तथा युद्ध में अत्याधिक उपयोगी होता है। तीन सौ अर्वन् का तात्पर्य यह है कि तीन सौ से अधिक और चार सौ से कम संख्या में अर्वन् का होना। जिस प्रकार ‘सत्पतशी’ शब्द का अर्थ होता है ऐसा ग्रंन्थ जिसमें सात सौ या उससे अधिक, परन्तु आठ सौ से कम पद्यों का संग्रह हो, उसी प्रकार ‘तीन सौ अर्वन्’ का अर्थ तीन सौ या उससे अधिक, परन्तु चार सौ से कम संख्या में अर्वन् का होना निश्चित है। ‘अर्वन’ शब्द वीर यौद्धाओं के लिए प्रयुक्त शब्द है। मुहम्मद (सल्ल.) साहब के सहयोगियों की संख्या तीन सौ थी।
अथर्ववेद में नराशंस के लिए दस स्रक् प्रदान किए जाने का उल्लेख है। दस मालाएँ भी अन्योक्ति के माध्यम से दस ऐसे प्रिय व्यक्तियों की ओर संकेत करती है, जो नराशंस के गले के हार के समान हों और नराशंस उन्हें बहुत चाहता हो। मुहम्मद (सल्ल.) साहब के भी दस ऐसे व्यक्ति थे, जो उन पर अपने प्राणों को भी समर्पित करने में तुले थे। मुहम्मद (सल्ल.)साहब के चारों ओर वे दसों व्यक्ति सदैव रहते थे, इसलिये वे मुहम्मद साहब के गले के हार थे। उन दसों व्यक्तियों के नाम ये हैं-- अबूबक्र, उमर, उस्मान, अली, तल्हा, जुबैर, अबू इसहाक, अबुल आवर, अबू मोहम्मद अब्दुर्रहमान, अबू उबैदः।
1. अबूबक्र---ये उस्मान के पुत्र थे, और मुहम्मद (सल्ल.) साहब के पहले ख़लीफ़ा थे।
2. उमर---द्वितीय ख़लीफ़ा के रूप में हमारे समक्ष उमर का नाम आता है जो ख़त्ताब के पुत्र थे।
3. उस्मान---अफ़्फ़ान के पुत्रा उस्मान तीसरे ख़लीफ़ा थे।
4. अली---ये अबी तालिब के पुत्र थे और चौथे ख़लीफ़ा थे।
5. तलहा---युद्ध में बड़े वीर थे। इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह था।
6. जुबैर---इनके पिता का नाम अव्वाम था। ये भी बहुत बड़े योद्धा थे।
7. अबू इस्हाक़---इनके पिता का नाम अबी वुक्क़ास था। य भी बहुत बड़े वीर थे।
8. अबुल् आवर---ये अब्दुर्रहमान के पुत्र थे।
9. अबू मोहम्मद अब्दुर्रहमान---इनके पिता का नाम ‘औफ़’ था।
10. अबू उवैद---इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह था।
उपर्युक्त दसों व्यक्ति सभी युद्धों में मुहम्मद (सल्ल.) साहब की सहायता करते थे, एवं विरोधियों के प्रहारों से उनकी रक्षा करते थे। इस प्रकार दस की माला के रूप में ये दसों व्यक्ति ‘अशरःमुवश्शरः’ कहे जाते थे, इन्हें मुहम्मद (सल्ल.) साहब स्वर्गीय (जन्नती) कहा करते थे।
अथर्ववेद में नराशंस के लिए सौ निष्क ईश्वर द्वारा प्रदान किए जाने का उल्लेख है। निष्क स्वर्ण मुद्राओं को कहा जाता है। स्वर्ण-मुद्राएँ या निष्क शब्द उन श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त है, जो रत्नवत् महत्त्वशाली हों। ईश्वरीय धर्म के प्रचारकों को एवं मूल धर्म के सुरक्षकों को भी ‘निष्क’ शब्द से व्यवहृत किया जाता है। इसका कारण यह है कि ‘निष्क बहुत ही मुल्यवान होता है, और मूलधर्म के संरक्षक या गुरू द्वारा उपदेशित शिक्षाओं के संरक्षक का भी अत्यधिक महत्व होता है। मुहम्मद (सल्ल.) साहब जिन शिक्षाओं को लोगों को लिए प्रदान कराते थे, उनकी शिक्षा की रक्षा भी करते थे, तथा अन्यों को भी इन शिक्षाओं से अवगत करते थे। ये असहाबि सुफ़्फ़ः कहलाते थे।
इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि वेदों में जिस नराशंस के होने की भविष्यवाणी की गई है, वह मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं।
अध्याय 4
अभारतीय धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार नराशंस
पहले के तीन अध्यायों में वेदों के अनुसार नराशंस का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है, अब अभारतीय धार्मिक ग्रन्थें के अनुसार जिस ऋषि की ओर संकेत दिया गया है, उसका स्वरूप प्रस्तुत हैः
मूसा की पाँचवी पुस्तक के अनुसारः--- मूसा के ऊपर अवतरित ‘व्यवस्था-विवरण’ नामक पुस्तक में एक ऐसे ऋषि के होने की भविष्यवाणी की गई है जो मूसा के ही समान हो और उसके भाइयों के मध्य से हो। उस ऋषि के मुख में ईश्वरीय वचन के प्रवेश की बात सोने के अतिरिक्त ईश्वरीय आदेशों को प्रसारित करने की बात का प्रतिष्ठापान भी मूसा की पुस्तक में हुआ है।
उपर्युक्त भविष्यवाणी से होने वाले ऋषि के विषय में अधोलिखित बातें ज्ञात होती हैं---
1. मूसा के समान होना।
2. मूसा के भाइयों के मध्य से होना
3. ईश्वरीय वचनो को प्राप्त करके उन्हें प्रसारित करना।
1. मूसा के समान कौन और क्यों? --- अब यह देखना है कि कौन ऐसा ऋषि है जो मूसा के समान रहा हो। कुछ ईसाइयों के अनुसार उपर्युक्त भविष्यवाणी ईसा मसीह के लिए हुई थी परन्तु इस मत को स्वीकृति करने में अधोलिखित बाधाएँ हैं---
(क) मूसा ने धर्म प्रचार कें व्याधात करने वाले मिस्र-सम्राट फ़िरौन के पक्ष के एक मनुष्य को मार डाला था, इसका तात्पर्य यह है कि धर्म-व्याधातकारियों को दमन करना मूसा को अभीष्ट था। ईसाने किसी भी विरोधी को दमन नहीं किया, अपितु यह विरोधियों द्वारा ही शूली में चढ़वा दिए गए।
दूसरी बात यह है कि मूसा की जाति के लोग मूसा के ऋषि होने के पहले उनके जीवन-काल में मूर्ति पूजा आदि में फंसे हुए थे। ईसा की जाति वाले ईसा के ऋषि होने के पहले उनके जीवन काल में मूर्ति-पूजा में नहीं फंसे थे।
तीसरी बात यह है कि अपने जीवन काल में मूसा ने जिस प्रकार अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त की, उस प्रकार ईसा ने स्व-जीवन काल में विरोधियों पर विजय नहीं पाई, अपितु वे विरोधियों द्वारा ही पराभूत हो गए।
चौथी बात यह है कि मूसा को अपने अनुयायियों द्वारा धोखा नहीं दिया गया, जबकि ईसा मसीह को अनके अनुयायियों में से एक ने धोखा दे दिया।
पाँचवी बात अंतर की यह है कि मूसा माता-पिता से उत्पन्न हुए थे। स्त्री एवं सन्तान से युक्त थे। ईसा मसीह तो बिना पिता के ही उत्पन्न हुए थे1 तथा उनके न तो कोई स्त्री थी और न तो कोई पुत्र ही था।
छठी बात अन्तर की यह है कि मूसा अपने जाति वालों को और अपने अनुयायियों को फ़िरौन की परतन्त्रता से मुक्त कराकर, उन्हें लेकर अपना देश छोड़कर अन्य देश को चले गए, परन्तु ईसा मसीह अपने जीवन में रोमन सरकार से अपने अनुयायियों व जाति वालों को नहीं मुक्त करा सके।
सातवीं बात अंतर की यह है कि मूसा ने अपनी जाति के लोगों को एवं अनुयायियों को पैलेस्टाइन पर अधिकार करने के लिए लड़ने का आदेश दिया था, जिसके फलस्वरूप मूसा के अनुयायियों के पैलेस्टाइन पर अधिकार हो गया था, परन्तु ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों को युद्ध करने के लिए कभी आदेश नहीं दिया।
आठवीं बात अंतर की यह है कि मूसा को ईश्वरीय विधान प्राप्त हुआ था। मूसा के विधान का नाम ‘लेविटिकस’ है। ईसा मसीह ने किसी भी नई व्यवस्था को नहीं स्थापित किया, अपितु उन्होंने स्पष्ट कह दिया था कि वह पुरातन विधान की पृष्टि के लिए आए थे और कोई नया विधान लेकर नहीं आये थे।1
नवीं बात अंतर की यह है कि मूसा बनी इस्राईल के नेता थे तथा बहुत ही उत्कृष्ट जीवन बिताते थे। ईसा मसीह तो अपने जीवन काल में अपनी जाति के नेता नहीं थे। ईसा को केवल बारह मनुष्यों ने अपना धर्म-गुरू तथा धर्म-नेता माना थ, जिसमें से एक ने इन्हें धोखा देकर गिरफ़्तार भी करा दिया था, इससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि ईसा मसीह के अनुयायी भी उनके प्रति श्रद्धा नहीं रखते थे।
दसवीं बात अंतर की यह है कि मूसा दीधार्यू में मरे थे। ईसा मसीह तो अल्पायु में ही मर गए थे।
अंतर की ग्यारहवीं बात यह है कि मूसा की मृत्यु के बाद उनसे पूर्व आदिष्ट ख़लीफ़ा ने पैसेस्टाइन और सीरिया पर विजय प्राप्त की थी परन्तु ईसा मसीह के विषय में ऐसी कोई भी बात नहीं घटित हुई। इस प्रकार ईसा मसीह उस ऋषि के पद पर खरे नहीं उतरते हैं जिसके लिए मूसा ने भाविष्यवाणी की थी। ईसा मसीह मूसा के समान नहीं थे, यह बात उपर्युक्त ग्यारह तर्कों से पुष्ट हुई।
अब देखना यह है कि क्या मुहम्मद साहब मूसा के समान थे? धर्मप्रसार में विध्न उपास्थित करने वालों के दमन करने वालों के दमन करने में मुहम्मद साहब मूसा के ही समान थे।
दूसरी समता यह थी कि मुहम्मद साहब के जन्म लेने से पहले उनके देश के लोग मूर्ति-पूजा में बहुत ही बुरी तरह से उसी प्रकार फंसे हुए थे, जिस प्रकार मूसा के जन्म लेने से पहले मूर्ती पूजा का अधिपत्य था।
समता की तीसरी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा ने अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त की, उसी प्रकार मुहम्मद साहब ने भी अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त की।
समता की चौथी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा को अनुयायियों द्वारा धोखा नहीं दिया गया, उसी प्रकार मुहम्मद साहब को भी उनके अनुयायियों द्वारा धोखा नहीं दिया गया।
समता की पाँचवी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा अपने माता-पिता से उत्पन्न हुए थे और सन्तान तथा स्त्री से युक्त थे, उसी प्रकार मुहम्मद साहब भी अपने माता-पिता से उत्पन्न हुए थे। मुहम्मद साहब ईसा मसीह की तरह कुंवारी के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुए थे। मुहम्मद साहब के पास भी मूसा की तरह पत्नी व संतान थी। ईसा मसीह की तरह मुहम्मद साहब विवाह के
बंधन से मुक्त न थे।
समता की छठी बात यह है कि जिस प्रकार मूसा ने अपने जाति वालों के और अनुयायियों को फ़िरौन के कारागार से मुक्त किया था, उसी प्रकार मुहम्मद साहब ने भी अपने जाति वालों और अनुयायियों को विपक्षियों के पंजे से मुक्त किया था।
समता की सातवीं बात यह है कि जिस प्रकार मूसा की आज्ञा से उनके अनुयायियों ने उनकी मृत्यु के बाद पैलेस्टाइन और सीरिया को मूसा के ख़लीफ़ा के निर्देशन में विजित किया, उसी प्रकार मुहम्मद साहब की आज्ञा से पैलेस्टाइन और सीरिया को उनके अनुयायियों ने उनके ख़लीफ़ा उमर के निर्देशन में जीता।
आठवीं बात समता की यह है कि जिस प्रकार मूसा को ईश्वरीय विधान प्राप्त हुआ था, उसी प्रकार मुहम्मद साहब को भी एक नई व्यवस्था प्राप्त हुई थी।
नवीं बात समता की यह है कि मूसा जिस प्रकार अपने जाति के धार्मिक नेता थे, उसी प्रकार मुहम्मद साहब भी अपनी जाति के नेता थे। मुहम्मद साहब ईसा मसीह की तरह नेतृत्वहीन नहीं थे।
दसवीं बात समता की यह है कि मूसा दीर्घायु में मरे थे। ठीक मूसा की ही तरह मुहम्मद साहब भी दीर्घायु में ही मरे थे।
इस प्रकार मूसा की तुलना मे मुहम्मद साहब ही उपयुक्त हैं, ईसा मसीह नहीं।
मूसा के भाईयों में से होना---मूसा के ऊपर अवतरित ईश्वर वाक्य के अनुसार वह ऋषि जो अन्त में आने वाला था, मूसा के भाइयों में से होगा, इस बात की पुष्टि भी मूसा की पाँचवी पुस्तक से होती है। मूसा के भाइयों में से होने का तात्पर्य यह है कि मूसा की संतान-परंपरा से न होकर वह उसके बन्धु वर्ग की वंश-परम्परा में से होगा। बाइबल के पुराने नियम के अन्तर्गत मूसा की पाँचवी पुस्तक ड्यूटेरानोमी के अनुसार यह सिद्ध होता है कि इस्राइल में मूसा की तरह पुनः कोई ऋषि नहीं होगा, जिसको ईश्वर के समक्ष अभिमुख होकर बात करने की सामर्थ्य प्राप्त हो। यद्यपि बाइबल के अनुसार अंतिम ऋषि के विषय में भूतकाल का प्रयोग हुआ है परन्तु वह भविष्य काल का द्योतक है। इस प्रकार वैदिक संस्कृत में ‘लुड्. लड्. लिटः’ सूत्र से भूतकाल सभी कालों में प्रयुक्त किए जा सकते हैं, उसी प्रकार क़ुरआन की भाषा का भी यही नियम है कि भविष्य में आने वाली बातों को भूतकाल में रखा गया है। बाइबल के अनुसार भी इस स्थल पर भविष्य काल की बात का उल्लेख भूतकाल में हुआ है। यदि इस सिद्धांत को न माना जाये तो सबसे बड़ी आपत्ति यह होगी कि मूसा के जीवित रहते हुए उसके ऊपर अवतरित ग्रन्थ में यह किसी भी प्रकार से नहीं कहा जा सकता, कि मूसा के समान कोई नहीं हुआ।
मूसा के भाइयों में से मुहम्मद साहब जिस सम्बन्ध से घटित होते हैं, उसका वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है। अब्राम, जो पितामह कहे जाते हैं, उनकी दो प्रधान संतानें थीं। इब्राहीम की पहली पत्नी का नाम सारै था, जिसके कोई भी संतान न थी। सारै की अनुनय पर अब्राम ने मिस्रदेशीया हाजिरा को पत्नी रूप मे स्वीकार कर लिया। कुछ समय बाद उससे इस्माइल नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। जिस समय इस्माइल का जन्म हुआ, उस समय अब्राम की आयु छियासी वर्ष की थी। सारै को जब इसहाक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, उस समय सारै की आयु नब्बे वर्ष की, और अब्राम की आयू सौ वर्ष की थी। निन्यानवे वर्ष की आयु में परमेश्वर ने अब्राम को यह वचन दिया कि वह अब्राम के वंश की पर्याप्त उन्नति करेगा। ईश्वर की वाणी सुनकर अब्राम ने ईश्वर को प्रणिपात किया, जिसे ‘इस्लाम धर्म’ के अन्तर्गत सजदः कहा जाता है। परमेश्वर से अब्राम का वार्तालाप कनान देश में हो रहा था, जहाँ अब्राम (इब्राहीम) परदेसी होकर रहता था। कनान को आजकल ‘पैलेस्टाइन’ कहा जाता है। परमेश्वर ने अब्राम को यह वचन दिया कि मैं तुझको और तेरे बाद तेरे वंश को भी यह सारा कनान देश जिसमे तू परेदेसी होकर रहता है, इस रीति से दूंगा कि वह युग-युग उनकी निज-भूमि रहेगी।1 बाइबल के पुरातन नियम के अनुसार यह सिद्ध होता है कि अब्राम को भविष्य पुराण मे अविराम कहा गया है, तथा कुरआन में इब्राहीम। अब्राम का इब्राहीम नाम तब से पड़ा, जब से ईश्वर ने अब्राम को जातियों के समूह का मूल पिता होने का वर दिया। पैलेस्टाइन में इब्राहीम की संतानों का अधिकार सर्वदा रहेगा। इस ईश्वरीय वाक्य से इतना तो स्पष्ट ही है, कि पैलेस्टाइन में रहेगा अधिकार तो इब्राहीम की संतानों का ही, चाहे वह जिस वर्ग की हों। इब्राहीम के इस्माइल नामक पुत्र की परम्परा के अन्तर्गत अरब की निवासियों का वर्ग आता है, और इस्माइल के सौतेले भाइ इस्हाक के वेश परम्परा में यहूदी लोग आते हैं। सौतेले भाइयों का पारस्परिक द्वेष ही अशान्तिमय होता है तो फिर सौतेले भाइयों की वंश-परंपरा में उत्पन्न होने वाले लोगों को पारस्परिक द्वेष-भाव का क्या कहना? यही कारण है कि पैलेसटाइन में अपने प्रभुत्व स्थापित रखने के उद्देश्य से अरब के लोग और यहूदी लोग परस्पर लड़ते रहते हैं। यह सौतेले भाइयों की वंश परम्परा में उत्पन्न हुए लोगों के पारस्परिक वैमनस्य की आग तब तक ठंडी नहीं हो सकती, जब तक कि वे परस्पर यह न समझ लें कि पैलेस्टाइन पर उन सभी का अधिकार है, जो इब्राहीम की वंश परम्परा में आते हैं।
इब्राहीम के प्रथम पुत्र इस्माइल की वंश-परम्परा संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत हैः
इस्माइल के पुत्रा का नाम क़ीदार था। क़ीदार के कई पीढ़ी बाद अदनान हुए। अदनान की कई पीढ़ी बाद कुरैश हुए और उनकी कई पीढ़ी बाद अब्दिमनाफ़ हुए। अब्दिमनाफ़ के बाद हाशिम, उनके बाद अब्दुलमुत्तलिब और अब्दुल्मुत्तलिब के बाद अब्दुल्लाह हुए, जिनके पुत्र मुहम्मद साहब थे।
इब्राहीम के द्वितीय पुत्र इसहाक की वंश-परम्परा का क्रम इस प्रकार हैः
इसहाक के बाद याकूब (इस्राइल), याकूब के बाद यहूदा तथा यहूदा की कई पीढ़ी के बाद मूसा हुए।
इस प्रकार यह स्पष्ट है, कि इब्राहीम के दो पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र की वंश परम्परा में मुहम्मद साहब आते हैं, और छोटे पुत्र इस्हाक की वंश परम्परा में मूसा आते हैं। मुहम्मद साहब मूसा के बन्धुओं में से थे, अतः मूसा पर अवतरित ब्रह्म वाक्य मुहम्मद साहब पर भी घटित होता है, यद्यपि मुहम्मद साहब यहूदियों में से नहीं थे, परन्तु इस्माइल के वंश में से थे। इस्माइल के छोटे भाई इसहाक़ के वंश में से मूसा थे। इस प्रकार मुहम्मद साहब का मूसा के बन्धु वर्ग में से होना तर्क संगत एवं उपयुक्त सिद्ध हुआ।
3. मूसा के ऊपर अवतरित ईश्वरीय वाणी के अनुसार जिसके भविष्य में होने की सूचना मूसा की पाँचवी पुस्तक ड्यूटेरानामी में दी गई है, वह मुहम्मद साहब ही थे। इस बात की पुष्टि भावी ऋषि पर ईश्वरीय वाक्यों के अवतरण से सम्बद्ध सिद्धांत से होती है। मुहम्मद साहब पर ईश्वरीय वाक्यों का अवतरण पवित्र आत्मा के सन्निकर्ष से हुआ। भावी ऋषि के विषय में मूसा का धर्मग्रन्थ यह कहता है कि वह ईश्वरीय आज्ञाओं का प्रसारक होगा। रेवरेण्ट बासवर्थ स्मिथ की पुस्तक ‘मुहम्मद एण्ड मुहम्मदेनिज्म’ में इस बात का स्पष्ट उल्लेख कि मुहम्मद साहब पर ईश्वरीय वाक्य अवतरित होता था, जिसको उन्होंने ‘क़ुरआन’ नामक ग्रन्थ के रूप में संकलित करके लोगों में प्रसारित किया है। मुहम्मद साहब ने वास्तव में ईश्वरीय आदेशें को ही प्रसारित किया। यदि मुहम्मद साहब मिथ्या ही ऋषि बने होते तो असत्य का प्रसार ईश्वर को साक्षी देकर किये होते तो मुहम्मद साहब जीवित न रहते, जैसा कि मूसा की पाँचवी पुस्तक में कहा गया है कि जिसके विषय में भविष्यवाणी की जा रही है, यदि उसके स्थान में कोई अन्य व्यक्ति ही अपने को ईशदूत बताकर लोगों को भ्रम में डालने का प्रयास करेगा, और असत्य बातों को प्रसारित करेगा तथा उसकी प्रसारित बातें असत्य सिद्ध होंगी, तो वह वास्त में लोगों द्वारा मार डाला जाएगा, तथा भावी महर्षि न माना जाएगा। महर्षि को पहचानने के लिए सबसे बडा साधन यह है कि यदि कोई अपने को ऋषि बताये और उसकी बात पूर्णरूपेण सत्य सिद्ध हो, तो उसे ऋषि मानना चाहिए, अन्यथा उसे ऋषि न मानना चाहिये और न ऐसे मिथ्याडम्बर युक्त व्यक्ति से भयभीत ही होना चाहिए।
मुहम्मद साहब पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि न तो मुहम्मद साहब ने अल्पायु में ही मृत्यु का आलंगिन किया और न तो वे लोगों द्वारा अकाल मृत्यु का ग्रास बनाये गये। ईश्वरीय बातों का प्रसार करने के उपलक्ष्य में मुहम्मद साहब के ऊपर दुष्ट लोगों द्वारा अनेकों आपत्तियों का प्रहार किया गया, परन्तु फिर भी मुहम्मद साहब सत्य के प्रसार से विचलित न हुए। कुछ परिस्थितियों में मुहम्मद साहब पर प्राण संकट भी आ गया, परन्तु ईश्वर ने उनकी रक्षा की। मुहम्मद साहब के लिए ईश्वर की ओर से यह प्रेरणा भी हुई कि वह किसी बात की चिन्ता न करें, क्योंकि ईश्वर उनका रक्षक है, अतः उन्हें धर्म प्रसार के व्याघातकारियों द्वारा दिये जा सकने वाले मृत्यु का भय नहीं है। यही कारण था कि मुहम्मद साहब ने निर्भयता-पूर्वक ईश्वरीय आदेशों को, जो ब्रह्म के रूप में उनके ऊपर अवतरित होते थे, प्रसारित करना प्रारम्भ कर दिया।
अब मुहम्मद साहब की बातों की सत्यता का प्रमाण प्रस्तुत किया जा रहा है।
मुहम्मद साहब ने जब धार्मिक प्रसार में अग्रसर होने का कर्म प्रारम्भ किया, तो मक्के के लोग विरोधी हो गये और परस्पर उन्होंने यह प्रतिज्ञापत्र लिखा, कि वे मुहम्मद साहब को अपनी जाति से बहिष्कृत कर देंगे। प्रतिज्ञापत्र में सभी वर्ग के लोगों के हस्ताक्षर हुए। प्रतिज्ञापत्र मक्का के शिवालय में लटका दिया गया था। मुहम्मद साहब अबू तालिब की घाटी में रहते थे, जो दो पहाड़ियों के बीच में थी। जिस स्थान में मुहम्मद साहब बहिष्कृत होने की अवस्था में रहते थे, वह स्थान शिवालय से तीन मील की दूरी पर था। तीन वर्ष जब मुहम्मद साहब को वहां रहते हुए व्यतीत हो गये, तब उन्होंने अपने पितृव्य अबूतालिब से मक्का वालों को कहला भेजा, कि प्रतिज्ञापत्र को तो अब दीमक चाट गये हैं, इसलिए प्रतिज्ञापत्र निरर्थक हो गया। अबू तालिब ने मक्का वालों से कहा कि अब मुहम्मद साहब को अपने वर्ग में सम्मिलित कर लेना चाहिए, क्योंकि प्रतिज्ञापत्र भी नष्ट हो चुका है, और मुहम्मद साहब को बहिष्कृत करना भी बहुत बुरी बात है। लागों ने स्वीकार कर लिया, कि यदि प्रतिज्ञापत्र नष्ट हो चुका होगा तो अवश्य मुहम्मद साहब को बहिष्कृत नहीं किया जायेगा, अन्यथा उन्हें इसी स्थिति में रहना पड़ेगा। जब प्रतिज्ञापत्र देखा गया तो परमेश्वर के नाम को छोड़कर शेष भाग लुप्त हो चुका था, इसलिए मुहम्मद साहब को मिला लिया गया। यह मुहम्मद साहब के बात की सत्यता का ही प्रमाण है कि तीन वर्ष तक लोगों से बहिष्कृत रहकर भी उन्होंने प्रतिज्ञापत्र के दीमक द्वारा चाट जाने की बात बतादी।
दूसरी घटना यह है कि मुहम्मद साहब ने यह एक भाविष्यवाणी की थी कि अरब के हिजाज प्रान्त में एक ऐसी अग्नि प्रज्जवलित होगी, जिसके प्रकाश में बसरा नगर की पहाड़ियाँ दृष्टिगत होंगी। मुहम्मद साहब के देहान्त के तैंतालिस वर्ष बाद सन् 54 हिजरी में मदीना से कुछ दूरी पर यह अग्नि प्रज्जवलित हुई, और काफी समय तक रही। तीसरी घटना की सत्यता का भी निरिक्षण करें, मुहम्मद साहब ने उस्मान को देखकर एक दिन कहा, कि यह लोगों द्वारा प्रहार किये जाने पर वीरगति को प्राप्त होंगे, इस बात का उल्लेख बुखारी की हदीस मे है। मुहम्मद साहब के देहान्त के चैबीस वर्ष बाद यह घटना सत्य प्रमाणि हई। एक बार मुहम्मद साहब ने अली से बताया था, कि तुम एक व्यक्ति के द्वारा सिर में प्रहार खाकर मर जाओगे, और रक्त तुम्हारी दाढ़ी को सिक्त कर देगा। मुहम्मद साहब की मृत्यु के तीस वर्ष बाद इब्नि मुल्जिम खारिजी ने अली के सर के ऊपर प्रहार किया जिससे रक्त बहकर उनकी दाढ़ी को भिगोने में समर्थ हुआ। एक बार मुहम्मद साहब प्रवचन कर रहे थे। उसी समय उनके बड़े नाती हसन भी उसी मंच पर चढ़कर बैठ गये। मुहम्मद साहब ने बताया कि मेरा यह बालक एक दिन बहुत बड़ा नायक बनेगा, और मुसलमानों के दो बड़े विरोधी वर्ग में मेल करा देगा। मुहम्मद साहब की मृत्यु के तीस वर्ष बाद सन् 40 हिजरी में जब हसन स्वयं ख़लीफ़ा थे, और अमीर मोआवियः से लड़ रहे थे, आपने उनसे मेल कर लिया, जिससे मुसलमानों में अपार आनन्द छा गया और हर्षातिरेक से यह स्वयं भी प्रफुल्लित हो गये।
मुहम्मद साहब की सत्यता से सम्बन्धित एक ओर घटना पर दृष्टिपात करना उचित है, जब मुहम्मद साहब मदीना जा रहे थे तो कुरैश ने इनको पकड़ने के लिए पुरस्कार निधार्रित किया।
जिससे पुरुस्कार के लोभ में आकर सुराका नामक एक व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर उन्हें खोजता हुआ पीछा करने लगा। मुहम्मद साहब ने सुराका को देखकर भूमि से कहा कि ‘ऐ भूमि इसे पकड़ ले।’ इतने पर सुराके के घोड़े के पैर भूमि में घुटने तक धंस गये। घबराकर सुराका ने मुहम्मद साहब की अनुनय की, तब घोड़ा मोहम्मद साहब की इच्छा के अनुसार भूमि में धँसने की स्थिति से बाहर हो गया। इसी प्रकार तीन बार होने के बाद सुराका ने प्रतिज्ञा की कि वह मुहम्मद साहब की बात किसी से नहीं कहेगा, और न मुहम्मद साहब को धोखा देगा। मुहम्मद साहब के चमत्कारों को देखकर सुराका बहुत ही प्रताभिव हुआ, और मुहम्मद साहब से अनुनय की कि मुझे आप एक वचन दें, जिससे मैं आपके राज्य होने पर सभी प्रकार की हानियों से परिवार सहित बचा रहूँ। मुहम्मद साहब ने स्वीकृति देते हुए उससे यह कहा, कि ऐ सुराका! तुम्हारी उस दिन क्या गति होगी जिस दिन ईरान के सम्राट किसरा के स्वर्णमय कंकड़ तुम्हारें हाथों मे पहनायें जाएंगे। मुहम्मद साहब के देहान्त के पाँच ही वर्ष के अन्दर सन् 165 हिजरी में दूसरे ख़लीफ़ा उमर के समय में साद सेनापति के द्वारा ईरान का सम्राट मारा गया, और वहाँ का बहुत सा सामान लूटा जाकर मदीना में लाया गया। उमर ने सब सामान स्ववर्गों में वितरित कर दिया, और कंकड़ को देखकर सुराका ने कहा, कि मुहम्मद साहब की वह भविष्यवाणी जो उन्होंने मेरे विषय में की थी, आज पूर्ण हुई, जिसे सुनकर उमर को भी मुहम्मद साहब की बात का स्मरण हुआ।
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि मुहम्मद साहब जो कुछ बताते थे, वह दैनिक जीवन में भी सत्य सिद्ध होता था, अतः जिसके विषय में मूसा ने भविष्यवाणी की है, वह मुहम्मद साहब ही थे, अन्य कोई नहीं, क्योंकि मूसा के समान मुहम्मद साहब थे, मूसा की बिरादरी में भी थे, तथा जो बातें बताते थे, सब सत्य हो जाती थीं।
अध्याय 5
वह ऋषि
अन्तिम ऋषि के विषय में अनेक प्रकार से भाविष्यवाणी की गई है। कहीं अंतिम ऋषि को किसी नाम से व्याहृत किया गया है, तो कहीं किसी नाम से। इन नामों की विविधरूपता को देखकर व्यक्ति के अंदर इस संशय का आना असम्भव नहीं, कि यदि एक ही ऋषि को लक्ष्ति करके भविष्यवाणियाँ हुई हैं, तो एक ही नाम सभी भविष्यवाणियों में आना चाहिए था, परन्तु ऐसा नही है, इसलिए भिन्न-भिन्न नामों से व्याहृत होने वाले भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के आने की सूचना उन भविष्यवाणियों में है। उपर्युक्त संशय का समाधान प्रस्तुत है। व्यक्ति विशेष के गुणों के आधार पर उसे अनेक उपाधियों से विभूषित किया जा सकता है, जो उसके नाम का स्थान ग्रहण कर लेती है। उदाहरणस्वरूप विष्णु को ही लीजिए-- वे पीला वस्त्रा धारण करते हैं इसलिए उन्हें पीताम्बर कहा जाता है। वह लक्ष्मी के पति हैं, इसलिए उन्हें लक्ष्मीपति कहा हाता है। वे चक्र धारण करते हें, इसीलिए उन्हें चक्ररी कहा जाता है। शंकर जी त्रिशूल धारण करते हैं, इसीलिए उन्हें त्रिशूली कहा जाता है। वे वृषम अर्थात् बैल की सवारी करते हैं, इसीलिए उन्हें वृषभवाहन कहा जाता है। सरस्वती की ही लीजिए---वे वीणा बजाती हैं, इसीलिए उन्हें वीणावादिनी कहा जाता है। वह ज्ञान और विद्या के सरोवरों से युक्त हैं इसलिए उन्हें सरस्वती कहा जाता है। इसी प्रकार अन्तिम ऋषि के विषय में जिस स्थान में जो वर्ण हुआ है, वह उस देश की भाषा में हुआ है, जिस देश की भाषा में ग्रन्था है, अतः उस देश की भाषा के अनुसार व्युत्पति - जन्य अर्थ उस नाम पर घटित होगा, जो नाम ऋषि का दिया गया है।
कुछ स्थलों में तो केवल ऋषि को वह कहा गया है। अब देखना यह है, कि जिस ऋषि को वह कहा गया है, वह कौन सा ऋषि है, और उसके विषय में क्या-क्या भविष्यवाणी हुई हैं? पहले हम भविष्यवाणियों को पूर्ववर्ती ऋषियों के मुख से प्रस्तुत कर रहे हैं--
यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। और मैं पिता से विनती करूंगा और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पितार मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुमसे कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।’ मैं अबसे तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है।3 परन्तु अब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। ‘तो भी मै। तुमसे सच कहता हूँ कि मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।’ परन्तु जब वह अर्थात सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आने वाली बातें तुम्हें बताएगा।
‘मैं तो पानी से तुम्हें मन-फिराव का बपतिस्म देता हूँ, परन्तु जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझसे शक्तिशाली है, मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।' उसका सूत्र उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उसे आग से जलाएगा जो बुझने की नहीं।'
भावी भविष्यद्वक्ता जिस जाती में पैदा होगा, इस विषय पर भी ईसा- मसीह के वचन ये हैं-- इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आएगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा? उन्होंने उससे कहा, वह उन लोगों की बुरी रीति से नाश करेगा, और दाख की बारी का ठीका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।’ ‘इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर का राज्य तुमसे ले लिया जाएगा, और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।’
उपर्युक्त भविष्यवाणियों के पहले तीन भविष्यद्वक्ता ऋषियों की प्रतीक्षा थी। प्रताक्षित ऋषियों में प्रथम था एलिय्याह और दूसरा था यीशु मसीहा। तीसरे ऋषि को वह ऋषि नाम से व्यवहृत किया गया है। सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर लेना आवश्यक है, कि प्रथम दो ऋषि हुए अथवा नहीं, क्योंकि दोनें के बाद ‘वह ऋषि’ का आविर्भाव निश्चित है।
1. एलिय्याहः-- ईसामसीह के पहले एलिय्याह के आने की भविष्यवाणी की गई थी। एलिय्याह ही यूहन्ना के रूप में प्रकट हुआ था, जैसा कि ईसा- मसीह ने स्वयं कहा है, कि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि एलिय्याह आ चुका, और उन्होंने उसे नहीं पहचाना, परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया। एलिय्याह के जीवनकाल में भी ईसा मसीह ने लोगों को सचेत किया था, कि युहन्ना नही एलिय्याह हैं! ईसा मसीह के शब्दों के अनुसार एलिय्याह से सम्बन्धित भविष्यवाणी यह हैः
‘यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यवाणी करते रहे। और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आने वाला था, वह यही है। जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।’
यूहन्ना ने राजा हेरोदास को इस बात के लिए कहा था, कि हेरोदास अपने भाई फिलिप्यूस की पत्नी को अपनी पत्नी के रूप में न प्रयुक्त करे। हेरोदियास जो पहले फिलिप्पुस की पत्नी थी, उसकी अनुमति से उसके तत्काल नियुक्त पति महोदय हेरोदोस ने यूहन्ना को कारागार में डाल दिया था। यूहन्ना ने राजा को हेरोदियास से विवाह करने के लिच मना किया था, अतएव हेरोदियास यूहन्ना को मरवा डालने के चिन्ता में सदा कोई न कोई उपाय खोजती रही थी। यूहन्ना की धार्मिकता और पवित्राता से प्रभावित होने के कारण राजा हेरोदोस उससे भयभीत था, और उसे सुरक्षित रखे हुए था, तथा यूहन्ना के प्रवचन सुन-सुनकर आनन्दित होता था। अपने जन्मदिन के उत्सव को मनाने की उत्कण्ठा से राजा हेरोदोस ने अपने प्रधानों कां एवं विश्ष्टि लोगों को भोजनार्थ निमन्त्रित किया। उसी दिन हेरोदियास की पुत्री ने अपनी नृत्यकला से राजा हेरोदोस को मुग्ध कर लिया, उससे विवश होकर राजा होरोदास ने लड़की से कहा, कि मेरे आधे राज्य तक भी जो कुछ तू मांगेगी, उसे प्रदान करने के लिए मैं सहर्ष उद्यत हूँ। लड़की ने अपनी माँ से पूछकर यूहन्ना के सिर को राजा से थाल में रखकर लाने का वर माँगा। राजा वचनबद्ध था, अतएव न चाहते हुए भी उसे ऐसा करना पड़ा। यह सत्य ही है, कि कुछ स्त्रियाँ अपने प्रेम के मार्ग की दीवार को भी गिरा देती हैं, तथा इतनी निर्दय होती हैं कि महात्माओं के जीवन को भी तृण के समान नगण्य समझती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि यूहन्ना ही एलिय्याह था, जिसके तत्काल बाद ईसा मसीह हुए। वैसे तो दोनों समकालीन थे, परन्तु जीवन-यात्रा के प्रसंग में परवर्ती ईसा-मसीह ही घटित होते हैं।
(2) यीशु मसीह-- इन्होंने ही इस बात की साक्षी दी थी, कि यूहन्ना ही एलिय्याह है। ये मरियम के पुत्र थे। इनकी माँ ने इन्हें कुमारावस्था में ही जन्म दिया था। इनके कोई पिता न थे। ईश्वर ने इन्हें वह शक्ति प्रदान की थी, जिसके प्रभाव के कारण वे रोगियों का स्पर्श करके भी उन्हें स्वस्थ कर देते थे। इनके उपदेश इतने प्रभावोत्पादक होते थे कि सुनने वाले भय से घबड़ा जाते थे। इनकी महत्ता को हूण देश वासियों ने नहीं समझा। भारत के राजा शकराज जो विक्रमादित्य के पौत्र थे, जब हूण देश के मध्य भाग में पहुंचे तो पर्वत में बैठे हुए, श्वेतवस्त्रों से अलंकृत एक पुरुष को देखा। उनसे शकराज ने पूछा कि आप कौन हैं, और आपका धर्म क्या है? तब इन्होने बताया कि मैं ईसा मसीह हूँ, और मेरा धर्म वैदिक जप को आश्रित करके निर्मलान्तःकरण होकर परमेश्वर का ध्यान करना है। उक्त स्थान में अपने आने का कारण भी ईसा मसीह यह बताते है कि सत्य के नष्ट हो जाने पर तथा मलेच्छदेश के मर्यादा से हीन हो जाने पर मैं मसीह यहाँ आया हूँ। अपने नामकरणर के विषय में ईसा मसीह यह बतलाते हैं, कि नित्य शुद्ध, कल्याण करने वाले परमेश्वर का ध्यान मैं सदैव करता हूँ, इसलिए मेरा नाम ईसा मसीह है। इतने बड़े महात्मा एवं धर्मोंपदेशक के संहार के लिए तद्देश्वासियों ने इतने भीषण प्रयास किए, कि दुःख है इस बात का, कि वे राक्षसों से बढ़कर दुष्कर्मी थे।
(3) वह ऋषि--- एलिय्याह और ईसा मसीह के हो जाने के बाद ‘वह’ के उत्पन्न होने का अवसर आता है, जिसके विषय में ईसा मसीह ने भविष्यवाणी की थी। वह ऋषि, जिसे ग्रीक भाषा में लिखे गये बाइबिल में ‘पेराक्लीट’ (फ़ारकलीत) कहा गया है, उसक विषय में विवरण प्रस्तुत किया जाएगा, कि वह कौन है?
वह ऋषि पेराक्लीट नाम से व्यवह्रत किया गया है। ‘पेराक्लीट’ शब्द र्के अर्थ पर विचार कर लेना आवश्यक है, कि उसका क्या अर्थ है?
पेराक्लीट का अर्थ--'पेराक्लीट’ शब्द का अर्थ बाइबिल के आजकल के अंग्रेजी अनुवाद में ‘कम्फ़ोर्टर’ आराम पहुंचाने वाला’ तथा हिन्दी अनुवाद में ‘सहायक’ दिया गया है। ‘संसार गुरु’ नामक पुस्तक में बाबा अलीमदास ने ‘पेराक्लीट’ को यूनानी भाषा में ‘फारकलीट’ नाम से व्यवहृत किया है, जिसका अर्थ उन्होंने ‘प्रशंसा योग्य’ बताया है। सर विलियम म्योर ने मुहम्मद साहब की जीवन-कथा लिखते समय अपने ग्रन्थ के संक्षिप्त संस्करण में उल्लेख किया है, कि अरब के लोगों के मध्य किसी लड़के का नाम ‘मोहम्मद’ पढ़ जाये, यह एक नवीन एवं विचित्र बात है। यद्यपि यह नाम अरब के लोगों के लिए अज्ञात नहीं था, परन्तु नवीन अवश्य था। ‘मोहम्मद’ शब्द, अरब के अरबिक की प्रशंसा अर्थ वाली हम्द धातु से निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ ‘प्रशासित’ होता है। हम्द धातु से निष्पन्न दूसरा शब्द ‘अहमद’ बनता है। बाइबिल के टेस्टामेण्ट के अरबी में अनुदित कुछ संस्करणों में ‘पेराक्लीट’ कार अर्थ ‘अहमद’ दिया हुआ है, जो मुसलमानों के धर्म की दृष्टि से मान्य तथा उनका समर्थक रहा। इसी कारण से मुसलमानों ने जूज और क्रिश्चियन को सम्बोधित करते हुए कहा, कि हमारे ऋषि का उल्लेख आप लोगों की धर्म पुस्तकों में भी है। जिस पेराक्लीट के विषय में बाइबिल में वर्णन आया है, उसकी सिद्धि मोहम्मद साहब पर होती है। सर विलियम म्योर ने इस बात का उल्लेख किया है, कि मरियम के पुत्र ईसा मसीह ने इस बात की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है, कि मैं पुरातन विधान की पुष्टि एवं समर्थन के लिए भेजा गया ऋषि हूँ परन्तु मेरे बाद भी एक होगा, जिसका नाम ‘अहमद; होगा। यहाँ अहमद नाम ‘पेराक्लीट’ के लिए प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि बाइबिल में ईसा मसीह ने अपने बाद आने वाले ऋषि को ‘पेराक्लीट’ शब्द से व्यवहृत करते हुए, उसकी बातों के मानने के लिए भी लोगों को उत्साहित किया है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है, कि ‘पेराक्लीट’ का अर्थ प्रशंसक होता है, जिसका अरबी अनुवाद ‘अहमद’ होता है।
बाइबिल के ‘न्यू टेस्टाममेण्ट’ में जिसके आने की भविष्यवाणी की गई है, उसमें क्या-क्या विशेष बातें होंगी, जिससे वह पहचाना जायेगा, इस बात पर विवरण प्रस्तुत है--
(क) ईसा मसीह द्वारा कही गई बातों का स्मरण कराने वालाः--- ईसा मसीह ने इस बात का स्पष्ट निर्देश किया है, कि वह नया विधान लेकर नहीं, अपितु पुरातन विधान की पुष्टि के लिए आए थे।1 ईसा मसीह जिस विधान की पुष्टि के लिए आए थे, वह विधान था--मूसा का विधान।
(ख) ईसा मसीह के पश्चात् आनाः--- वह ऋषि जिसके आने की भविष्यवाणी की गई है, वह संसार में ईसा मसीह के प्रस्थान के आद आएगा।
(ग) संसार के नायक के रूप में आगमनः---वह ऋषि जब आएगा, तो संसार के नायक के रूप में आएगा।
(घ) सत्य का मार्ग-प्रदर्शकः--वह ऋषि संसार को सत्य का मार्ग
दिखाएगा।
(ड.) पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देने वालाः---वह ऋषि पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्म देगा, इस बात की ओर संकेत बाइबिल के सेण्ट मैथ्यू (3/11) से मिलता है। इस भविष्यवाणी से कुछ लोग ईसा मसीह को ग्रहण करते हैं, परन्तु ईसा मसीह ने पवित्र आत्मा से बपतिस्मा तो दिया, परन्तु आग से बपतिस्मा नहीं दिया। आग से बपतिस्मा देने का तात्पर्य है, कि दुष्टों को मार्ग दिखाने के लिए उनके साथ युद्ध करके उन्हें पराजित करना और उन्हें ईश्वरीय मार्ग पर लाना। ईसा मसीह ने तो कोई भी युद्ध नहीं किया, अतः उक्त भविष्यवाणी ‘वह ऋषि’ को अधिकृत करके कही
गई है।
(च) हाथ में सूप रखने वाला तथा खलिहान साफ करने वालाः---बाइबिल में उल्लेख है कि भावी ऋषि हाथ में सूप रखेगा और खलिहान साफ़ करेगा। इतना ही नहीं, वह गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, और भूसी को गेहूँ से अलग करके आग में जला देगा। बाइबिल के उक्त कथन से कुछ लोग यह समझते हैं कि भावी ऋषि सदा अपने हाथ में सूप लिए हुआ घूमा करेगा और खलिहान साफ किया करेगा, तथा गेहूँ को खत्ते में एकत्रा करके भूसी को आग में जलाया करेगा। ऐसा समझने वालों की बुद्धि में जड़ता का पत्थर पड़ा हुआ है। बाइबिल में जो बताया गया है, वह अलंकारिक शैली में कहा गया है, जिसका अभिप्राय यह है, कि भावी ऋषि की बुद्धि सदसत् का विवेक करने वाली होगी। ‘सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय’ के सिद्धान्त से भावी ऋषि तत्व की बातों को ग्रहण करेगा, और तत्वहीन बातों को वान की आग में जला देगा। खलिहान साफ करने का अर्थ यह है, कि जिस व्यक्ति को तत्व की बातें बताएगा, पहले उसका अन्तःकरण साफ़ करेगा।’ ‘खलिहान’ शब्द ‘अन्तःकरण’ के लिए प्रयुक्त हुआ है, जिसमें कुछ रखने के पहले उसकी सफाई आवश्यक है।
(छ) अन्य जाति में आने वालाः भावी ऋषि अन्य जाति में आएगा, इस बात का उल्लेख बाइबिल में स्पष्ट रूप से किया गया है। ईसा मसीह ने (मैथ्यू-21, 43) स्पष्ट रूप से घोषित किया है, कि इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, कि परमेश्वर का राज्य तुमसे ले लिया जाएगा और ऐसी जाति को, जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। इससे स्पष्ट है कि भावी ऋषि उस जाति में पैदा होगा, जिससे भिन्न वे लोग हैं, जिन्हें सम्बोधित करके ईसा मसीह ने कहा था। इसीलिए ईसाईयों एवं जूजों को यह आशा छोड़ देनी चाहिए कि भावी ऋषि उनकी जाति में पैदा होगा।
अब हम प्रत्येक विशेषता के आधर पर उस व्यक्ति को प्रमाणित कर रहे हैं जो वह ‘ऋषि’ होने की योग्यता रखता है।
अन्तिम ऋषि की सिद्धिः--- 'पेराक्लीट’ का अर्थ ‘प्रशंसक’ होता है, जिसे अरबी भाषा में ‘अहमद’ कहते हैं। पहले इस बात को हम दिखा चुके हैं, कि अरबी में बाइबिल के अनुवाद में ‘पेराक्लीट’ का अर्थ ‘अहमद’ बताया गया है। उपयुक्त अर्थ मुसलमानों के समर्थन में था और ईसाई लोग स्वाभाविक रूप से मुसलमानों से द्वेषभाव रखते हैं, इसलिए उन्होंने उपर्युक्त अनुवाद को ग़लत सिद्ध किया।
आज जो अनुवावद बाइबिल के मिलते हैं, उनमें ‘पेराक्लीट’ का अनुवाद ‘कम्फ़ोर्टर’ (अंग्रेज़ी में) और ‘सहायक’ (हिन्दी में) दिया हुआ है। यदि हम ‘पेराक्लीट’ का अर्थ सहायक या कम्फ़ोर्टर ही मानें तो भी उपर्युक्त दोनों बातें मोहम्मद साहब के पक्ष में पूर्ण रूपेण घटित होती है।
सर्वप्रथम हम इस बात की पुष्टि कर रहे है, कि मोहम्मद साहब ‘सहायक’ थे। चादर ओढ़े हुए एक दिन मुहम्मद साहब नमाज़ पढ़ने जा रहे थे, तभी एक अरब देहाती ने आकर आपकी चद्दर की रगड़ से, आपकी गर्दन दुखने लगी। मुहम्मद साहब ने प्रश्न किया, कि तुम क्यों ऐसा कर रहे हो? अरबी देहाती ने उत्तर दिया कि मुझे एक आवश्यकता आ पड़ी है, उसकी आप पूर्ति करें। मुहम्मद साहब ने नमाज़ पढ़ना रोककर उस देहाती का काम कर दिया। प्रस्तुत उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुहम्मद साहब लोगों की सहायता करने में इतना आसक्त रहते थे, कि नमाज़ पढ़ना बन्द करके भी दूसर की सहायता करना उचित समझा, परन्तु आज के मुसलमान नमाज़ के आगे किसी मरते हुए प्यारे को सम्भवतः पानी भी न पिलाएँ।
‘कम्फ़ोर्टर’ का अर्थ होता है---'आराम देने वाला।’
मुहम्मद साहब सभी को आराम देने वाले थे। केवल मनुष्य को ही नहीं, उन्होंने पशुओं को भी आराम दिया। मुहम्मद साहब ने पशुओं के कान तथा पूंछ को काटने की परम्परा को बन्द कराया, और पशुओं के दागने का भी निषेध किया। सवारी पर काठी तथा जीन लगाकर देर तक खड़ा रखने का निषेध करने के अतिरिक्त मुहम्मद साहब ने पशुओं के पारस्परिक लड़ाए जाने को भी बुरा बताया। जीवित लड़कियों को मारकर उन्हें भूमि में गाड़ देने को भी मुहम्मद साहब ने बुरा बताया। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि मोहम्मद साहब ‘आराम देने वाले’ भी थे।
(क) ईसा मसीह की कही बई बातों का स्मरण करने वालाः---अन्तिम ऋषि को ईसा की कही गई बातों का स्मरण कराने वाला कहा गया है। मुहम्मद साहब ने अपने पहले आने वाले सभी ऋषियों का समर्थन किया है और प्रत्येक मुसलमान के लिए यह आवश्यक बताया है कि वह कुरान एवं इससे पूर्व उतारे गए सभी ईश्वरीय ग्रन्थों पर विश्वास रखें। इस प्रकार वेद, बाइबिल एवं क़ुरआन तीनों ही ग्रंथ प्रत्येक मुसलमान (आस्तिक) के लिए श्रद्धेय और मान्य सिद्ध होते हैं। क्योंकि ईसा मसीह मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती ऋषि हैं। ईसा मसीह मूसा के विधान की पुष्टि के लिए आए थे, और मूसा के विधान का समर्थन अत्यधिक प्राबल्य के साथ मुहम्मद साहब ने किया है।
(ख) ईसा मसीह के पश्चात् आनाः--- मोहम्मद साहब ईसा मसीह के परवर्ती थे।
(ग) संसार के नायक के रूप में आगमनःबाइबिल में अन्तिम ऋषि के लिए कहा गया है, कि वह संसार का नायक होगा। मुहम्मद साहब ने जिस धर्म का प्रचार एवं प्रसार किया उसे सनातन धर्म और सार्वभौम धर्म कहा। कुछ लोग यह ग़लत समझते हैं कि मुहम्मद साहब इस्लाम धर्म के संस्थापक थे, और इस्लाम धर्म तभी से इस जगतीतल में प्रसारित हुआ, जब से मुहम्मद साहब ने इसका प्रसार किया। ‘इस्लाम’ का अर्थ ‘ईश्वरीय’ होता है। इसे मुहम्मद साहब ने कहा है, कि यह सनातन धर्म है। सनातन का अर्थ होता हैः सब दिन से चला आने वाला। अपने जीवन काल में ही मुहम्मद साहब ने बहुसंख्यक लोगों का नेतृत्व प्राप्त कर लिया था। अरब में रहने वाले लोगों को और पिशाचों को अपने वश में कर लिया।
(घ) सत्य और मार्ग-प्रदर्शकः मुहम्मद साहब ने सत्य का मार्ग प्रदर्शित किया, और ईश्वर से पराड्.मुख लोगों को सत्य का ब्रह्म-मन्त्रा सिखाया- ला इलाह इल्लल्लाह, मुहम्मदुर्रसूलल्लाह’ ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ को वेदान्त में ‘एक ब्रह्म दितींय नास्ति’ कहा गया है।
(ड.) पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देना वाला--पवित्र आत्मा’ शब्द जिब्रील के लिए आया हुआ है। जिब्रील को ही सरस्वती कहा जाता है, जो ईश्वरीय ज्ञान को ऋषियों तक पहुंचाती है। मुहम्मद साहब को ईश्वरीय ग्रन्थ अध्ययन सरस्वती ने ही आकर पर्वतीय गुफा में कराया और मोहम्मद साहब ने उस ग्रंथ का ज्ञान लोगों तक पहुंचाया। दुष्टों को मार्ग दिखाने के लिए मुहम्मद साहब ने पहले तो शान्ति का आश्रय लिया, परन्तु जब शान्ति से वे लोग न माने और उद्दण्डता करते रहे, तो मुहम्मद साहब ने उनका दमन करने के लिए आग (उष्णता) अर्थात् युद्ध का आश्रय लिया।
(च) हाथ में सूप रखने वाला तथा खलिहान साफ़ करने वालाः-- हाथ में सूप रखने तथा खलिहान साफ करने का अर्थ तो पहले स्पष्ट किया जा चुका है, कि लोगों के अन्तःकरण को साफ करके उनमें यथार्थ बातों का समावेश करने वाला, तथा अपने अन्दर सत्य और असत्य का विवेचन करने वाला वह ऋषि होगा। सरस्वती के माध्यम से मुहम्मद साहब पर अवतीर्ण ग्रन्थ ‘क़ुरआन’ को ‘फुरक़ान’ भी कहा जाता है।
‘फुरकान’ का अर्थ होता हैः--सत्य और असत्य का विवेचन करने वाला।
(छ) अन्य जाति में आने वालाः-- अन्तिम ऋषि के रूप में मुहम्मद साहब ही पूर्ण-रूपेण सिद्ध होते हैं, क्योंकि वह ईसा एवं उनके द्वारा उपादिष्ट जूजों एवं यहूदियों की जाति में नहीं पैदा हुए थे। ईसा का सम्बन्ध इसहाक की वंश-परम्परा से है, और मुहम्मद साहब का सम्बन्ध इस्माइल की वंश परम्परा से है।
इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि जिस ऋषि के होने की भविष्यवाणी बाइबिल के न्यू टेस्टामेण्ट में दी गई है, वह मुहम्मद साहब ही हैं।
अध्याय 6
अन्तिम बुद्ध-मैत्रेय
‘ऋषि’ को बौद्ध धर्म की भाषा में ‘बुद्ध’ कहा जाता है। अन्तिम बुद्ध के विषय में भविष्यवाणी का स्वरूप प्रस्तुत है, जिसे गौतम बुद्ध ने अपने मृत्यु काल के समय अपने प्रिय शिष्य नन्दा से बताया था। ‘नन्दा! इस संसार में मैं न तो प्रथम बुद्ध हूँ और न तो अन्तिम बुद्ध हूँ। इस जगत में सत्य तथा परोपकारक की शिक्षा देने के लिए अपने समय पर एक और ‘बुद्ध’ आएगा। वह पवित्र अन्तःकरण वाला होगा। उसका हृदय शुद्ध होगा। ज्ञान और बुद्धि से सम्पन्न तथा समस्त लोगों का नायक होगा। जिस प्रकार मैंने जगत् को अनश्वर सत्य की शिक्षा प्रदान की है, उसी प्रकार वह भी जगत को सत्य की शिक्षा देगा। जगत् को वह ऐसा जीवन मार्ग दिखाएगा जो शुद्ध (अमिश्रित) तथा पूर्ण भी होगा। नन्दा् उसका नाम मैत्रेय होगा।’
‘बुद्ध’ का अर्थ ‘बुद्धि से युक्त’ होता है। बुद्ध मनुष्य ही होते हैं, देवता आदि नहीं।
बुद्ध की विशेषताएँ
बुद्ध ऐश्वर्यवान् एवं धनवान होता है।
बुद्ध सन्तान से युक्त होता है।
बुद्ध स्त्री तथा शासन से युक्त होता है।
बुद्ध अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहता है।
बुद्ध पद को प्राप्त व्यक्ति का यह सिद्धान्त होता है कि अपनी सिद्धी के लिए अपना कार्य स्वयं करना चाहिए। बुद्ध केवल धर्म प्रचारक होते हैं। ‘बुद्ध’ को ‘तथागत’ भी कहा जाता है। जिस समय बुद्ध एकान्त में रहता है, उस समय ईश्वर उसके साथियों के रूप में देवताओं और राक्षसों को भेजता है। प्रत्येक बुद्ध अपने पूर्ववर्ती बुद्ध का स्मरण कराता है और अपने अनुयायियों को ‘मार’ से बचने की चेतावदी देता है। ‘मार’ का अर्थ बुराई एवं विनाश को फैलाने वाला होता है। जिसे उर्दू भाषा में ‘शैतान’ तथा अंग्रेजी में ‘डेविल’ कहा जा सकता है। बुद्ध के अनुयायी पक्के अनुयायी होते हैं, जिन्हें कोई भी उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। संसार में एक समय में केवल एक ही बुद्ध रहता है।
बुद्ध के लिए सबसे आवश्यक इस बाचत का होना है, कि संसार का कोई भी व्यक्ति उसका गुरु न हो।
प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। हर एक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अलग-अलग वृक्ष निश्चित रहे हैं।
बुद्ध मैत्रेय की विशेषताएँ
मैत्रेय का अर्थ होता हैः दया से युक्त।
बुद्ध होने के कारण अन्तिम बुद्ध मैत्रेय में भी बुद्ध की सभी विशेषताएँ पाई जाएंगी।
मैत्रेय बोधिवृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करेगा।
बोधिवृक्ष के दो प्रकार हैं (1) सांसारिक वृक्ष, (2) स्वर्गीय वृक्ष।
बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।
इस समय हम स्वर्गीय बोधिवृक्ष के विषय में कुछ विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है।
2. ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है।
सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा बुद्धों के गर्दन की हड्डी अत्यधिक दृढ़ होती थी, जिससे वे गर्दन मोड़ते समय अपने पूरे शरीर को हाथी की तरह घुमा लेते थे।1 मैत्रोय में भी उक्त गुण का होना स्वाभाविक है।
अब हम यह सिद्ध करेंगे कि कौन ऐसा व्यक्ति है, जिस पर बुद्धों की सभी विशेषताएँ पूरी उतरती हैं और जो मैत्रेय की कसौटी पर खरा उतरता है।
क़ुरआन में मुहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान् और धनवान् होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि तुम पहले निधर्न थे, हमने तुमको धनी बना दिया। मुहम्मद साहब ऋषि पद को प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गये थे। मुहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध; ऊँट ‘अलकसवा’ था, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे, और बीस की संख्या में ऊँटनियाँ थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था। ऊँटनियों का दूध ही मुहम्मद साहब व उनके बाल-बच्चों का प्रमुख आहार था। मुहम्मद साहब के पास 7 बकरियाँ थीं, जो दूध का साधन थीं। मुहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भैंसें नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसें नहीं होतीं उनके सात बागें खजूर की थीं जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मुहम्मद साहब द्वारा दे दी गई थीं। मुहम्मद साहब के पास तीन भूमिगत सम्पत्तियाँ थीं, जो कई बीघे के क्षेत्रा में थीं। मुहम्मद साहब के अधिकार में कई कुँए भी थे। इतना स्मरणीय है, कि अरब में कुआँ का होना बहुत बड़ी सम्पत्ति समझी जाती है, क्योंकि वहाँ रेगिस्तानी भू-भाग है। मोहम्मद साहब के बारह पत्नियाँ, चार लड़कियाँ और 3 लड़के थे। बुद्ध के अन्तर्गत पत्नी और सन्तान का होना द्वितीय गुण है। मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाममात्र को पाया जाता था, परन्तु मुहम्मद साहब के पास उनका बारह गुना गुण विद्यमान था। उनकी पत्नियों के नाम हम नराशंस के वैदिक भाग में उल्लिखित कर चुके हैं।
मुहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवन काल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करके उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोजन पर्दाथ पूर्ववतः था।
मुहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहान्तवास नहीं हुआ और न तो वह किसी के द्वारा मारे गए।
मोहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने अपने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म-प्रचरक स्वरूप की पुष्टि अनेक इतिहासकारों ने भी की है। यद्यपि उनके विषय में यह बात अत्यधिक प्रसिद्ध है ही।
जिस समय मुहम्मद साहब एकान्त में रहते थे, उस समय कभी-कभी देवता और राक्षस भी उनके पास आ जाया करते थे।
मुहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा कुरआन देख सकते हैं। उदाहरण रूप में कुरआन में दूसरी सूरः में उल्लेख है कि ‘ऐ आस्तिको! (मूसलमानों) तुम कहो कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उस पर और जो-जो कुछ एब्राहीम, इस्माइल, इस्हाक और याकूब पर उनकी सन्तान (के ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गई, उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को, उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों में किसी प्रकार का अन्तर नहीं मानते और हम उसी एक ईश्वर के मानने वाले हैं।
मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। कुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है, कि जो शैतान को अपना मित्रा बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा।
मुहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मुहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते थे। मुहम्मद साहब का संग उनके अनुयायियों ने आमरण नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ा हो।
संसार में जिस समय मुहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मुहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय सम्पूर्ण संसार की सामाजिक और धार्मिक स्थिति, बहुत ही खराब थी, इस बात की पुष्टि ‘कल्कि अवतार और मोहम्मद साहब’ शोध पुस्तक में देख सकते हैं।
मुहम्मद साहब का कोई गुरु संसार का व्यक्ति नहीं था। मुहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसीलिए उन्हें ‘उम्मी’ भी कहा जाता है। ईश्वर द्वारा मुहम्मद साहब के अन्तःकरण में उतारी गई आयतों की संहिता कुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध मैत्रेय के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह है---कड़ी और भारयुक्त काष्ठ वाला वृक्ष।
मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदेबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रोय’ का अर्थ होता है--दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 लीडर पृ. 7 कालम 3 में एक बोद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण से मुहम्मद साहब को ‘रहमतुल्लिल्आलमीन’ कहा जाता है। जिसका अर्थ हैः समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ बुद्धों के अन्तर्गत पाई जाने वाली सभी विशेषताएँ मुहम्मद साहब में भी विद्यमान थीं।
मुहम्मद साहब ने भी स्वंय में एक वृक्ष को देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था, जो इतने बड़े क्षेत्र में था, जिसे एक घुड़सवार लगभग दौ सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पान नही कर सकता था।
मुहम्मद साहब ने भी स्वर्ग में वृक्ष को आँख बिना गिराए हुए देखा था।
मैत्रेय के विषय में जो यह कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। यही बात मुहम्मद साहब के भी विषय में थी, कि वह बातचीत करने में किसी मित्रा की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे।
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के होने की भविष्यवाणी की गई है, वह अन्तिम ऋषि ही है।
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